मथुरा। बात लगभग तीन दशक पुरानीं है दोपहर का समय था। मैं अपने यहां मौजूद दो घायल गायों की सेवा में लगा हुआ था।
हालत मेरी अस्त व्यस्त और जल्दबाजी भी बहुत थी क्योंकि मुझे गायों की चाकरी के बाद स्नान व यमुना जी की हाजिरी लगाने जाना और फिर पेट पूजा की भी जल्दी पड़ रही थी। इसी दौरान स्व. शंकरलाल खंडेलवाल जिनकी होलीगेट पर शंकर मिठाई वालों के नाम से दुकान है तथा स्व. ठाकुर शिव मोहन सिंह प्रेम होटल वाले आ गए।
क्षण भर की औपचारिक दुआ सलाम के बाद शिवमोहन सिंह जो हमारे बड़े भाई सीताराम जी के सहपाठी व अभिन्न मित्र थे, ने मुझसे कहा कि “भैया बड़ी विकट समस्या आ गई है बामें मैं तुम्हारी मदद की जरूरत है”। मैंने मन ही मन माथा ठोका कि अब यह क्या मुसीबत आ गई। मुझे तो जल्दी पल्दी काम निपटा कर नहाने धोने की पड़ रही है और पता नहीं ये क्या बबाल ले आऐ।
अचानक मुझे क्या सनक सूझी कि मैंने उनसे कहा कि तुम्हारी मदद की तो बाद में सोचूंगा पहले मेरी मदद तुम करो। वे बोले बताओ क्या सेवा है? मैंने कहा कि गायों का गोबर पड़ा है इसे उठाकर बाहर डाल दो। मेरा इतना कहना था कि दोनों ने बगैर हिचके और बगैर झिझके यह कहते हुए कि अरे यह तो हमारा सौभाग्य है, दोनों हाथों से गोबर उठाकर डालना शुरू कर दिया। जैसे ही उन्होंने एक बार गोबर बाहर डाला मैंने तुरंत रोक कर कहा कि बस अब और रहने दो क्योंकि मुझे मन ही मन अपने कृत्य पर खुद ही शर्मिंदगी सी होने लगी थी। पता नहीं मेरे मुंह से यह बात उस समय कैसे निकल गई। जहां तक मेरा अंदाज है इसलिए निकली होगी कि यदि वे ना नुकुर करेंगे तो फिर मैं भी उन्हें पीठ दिखा दूंगा और वे गऊ माता की सेवा वाली भावना से इस पुनीत कार्य को कर देंगे तब तो मैं भी उनकी मदद में जी जान से जुट जाऊंगा।
उनकी प्रतीकात्मक सेवा ने मेरे मन को मोह लिया। अब मैं अपनी जल्दबाजी को भूल गया तथा इत्मीनान से उनकी बात सुनी। उन्होंने अपनी व्यथा बताई। दरअसल बात यह थी कि भ्रष्ट सरकारी नौकरशाहों ने मोटी रकम न मिलने पर किसी मामले में “शंकर मिठाई वाला” फर्म को फांस लिया, शायद यह मैटर फूड से संबंधित था। इसके बाद उनके एक पुत्र की गिरफ्तारी भी हो गई। कौन सा पुत्र था तथा उसका क्या नाम था यह मुझे याद नहीं।
इसके पश्चात इनकी ओर से अदालत में जमानत की अर्जी भी खारिज होने के बाद दूसरे दिन जिला जज के यहां सुनवाई होनीं थी। मामले को जानबूझकर इस प्रकार जटिल बनाया गया कि जिला जज के यहां से भी जमानत न हो तथा हाई कोर्ट से जमानत होने का मतलब कई दिन और घूम जाना था। अतः शंकर लाल जी का परेशान होना स्वाभाविक था। शंकर लाल जी व ठाकुर शिव मोहन सिंह की दांत काटी रोटी थी। किसी प्रकार इन्हें यह पता चला कि मेरे और तत्कालीन जिला जज श्री जगमोहन पालीवाल के मधुर संबंध हैं। अतः इसीलिए यह मेरे पास आऐ।
इनकी बात सुन और समझ कर मैंने इनसे कह दिया कि अब आप जाओ और जो भी संभव होगा मैं प्रयास करूंगा। मैं इनकी गऊ सेवा वाले भाव पर मुग्ध हो गया तथा मुझे पक्का विश्वास था कि गऊ माता की कृपा व आशीर्वाद से शंकर लाल जी की परेशानीं समाप्त हो जायगी। मैंने अपने बाकी के कार्यों को जल्दी पल्दी निपटाया और शाम को जिला जज पालीवाल जी के यहां पहुंच गया। मुझे अपने घर आया देख पालीवाल जी जो बड़े सज्जन और मिलनसार स्वभाव के थे, खुश हो उठे तथा बोले कि गुप्ता जी आज आपको कैसे टाइम मिल गया? आप तो कभी आते नहीं क्या कोई खास बात है?
जज साहब की बात सुनकर मैंने झूठ बोल दिया कि कोई खास बात नहीं है। बहुत दिन से आपसे भेंट नहीं हुई आपकी याद आई और चला आया। वैसे तो मैं सच बोलने का कट्टर समर्थक हूं और अपने आप को बहुत बड़ा सच्चाधारी मानता हूं तथा लोग भी मुझे सच्चा इंसान समझने की गलत फहमी में रहते हैं किंतु उस दिन तो मेरे मुंह से सफेद भक्क झूठ निकल पड़ा। खैर इस गैरजरूरी प्रसंग को आगे बढ़ाना ठीक नहीं है। अब मैं असली बात पर आता हूं।
जज साहब के बगीचे में मुझसे पहले ही कुछ अन्य व्यक्ति बैठे थे, उनमें एक हमारे स्नेही स्व. ब्रजेश पालीवाल भी थे, जो मथुरा के पूर्व जिलाधिकारी डॉ हरीकृष्ण पालीवाल के साले लगते थे, क्योंकि उनकी बहन हरिकृष्ण जी के भाई को ब्याही थीं। सब लोगों में बातचीत चल रही थी तथा इसी दौरान सरकारी अफसरों के भ्रष्टाचार का मुद्दा चल उठा। मैं तो ऐसे ही मौके की तलाश में था। मैने जज साहब से कहा कि ये भ्रष्ट और निकम्मे लोग देश को घुन की तरह चाटे जा रहे हैं। अभी हाल फिलहाल का ही वाकया देख लो शंकर मिठाई वालों के साथ कैसा अन्याय हो रहा है जबकि वे बेचारे कितने सज्जन व धर्मात्मा हैं तथा शंकर लाल जी के बारे में सब कुछ बताया।
जज साहब चुपचाप सब सुनते रहे ज्यादा कुछ बोले नहीं शायद सिर्फ उन्होंने यह पूंछा कि आप उन्हें जानते हैं क्या? मैंने कहा कि मैं ही नहीं पूरा शहर उनको व उनकी भलमन साहत को अच्छी तरह जानता है। खैर कुछ देर बातचीत के बाद मैं अपनी व्यस्तता का हवाला देकर वहां से टरक लिया।
घर पहुंचे हुए मुझे बमुश्किल एक घंटा भी नहीं हुआ होगा कि शिवमोहन सिंह जी का फोन आ गया। वे बोले कि “भैया आज तौ तैनैं कमाल कर दौ” मैंने कहा कि “का कमाल है गयौ” इस पर उन्होंने बताया कि मोय सब मालुम पड़ गई है। फिर उन्होंने वह सब कुछ मुझे बता दिया जो वहां बातचीत हुई थी। दरअसल वहां मौजूद स्व. ब्रजेश पालीवाल या अन्य किसी व्यक्ति ने शंकर लाल जी को फोन करके सारा वृत्तांत बता दिया था।
शिव मोहन सिंह जी ने कहा कि अब कोई ताकत नहीं जो जमानत को रोक पाए और मुझे तो पहले से ही आत्मविश्वास था कि गऊ माता की सेवा और शंकर लाल जी के सद्कर्म जरूर अपना कार्य करेंगे। हुआ भी यही यानीं कि दूसरे दिन सुबह ही जज साहब ने जमानत स्वीकार कर गऊ सेवा रूपी यज्ञ में अपनी भी आहुति डाल दी।
जिस गऊ माता में तेतीस करोड़ देवी देवताओं का वास होता है उस गऊ माता की सेवा बड़े भाग्य से मिलती है तथा यह सेवा कब किस रूप में फलीभूत होकर वरदान बन जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। आज हम लोग केवल इसलिए सुखी नहीं है कि कमोवेश हम सभी ने गऊ माता को दुखी कर रखा है। इस बात का यह अर्थ नहीं है कि सिर्फ गाय को ही सुखी रखो बाकी को मारकर खा जाओ या अन्य तरह तरह से उन पर अत्याचार करो।
हर प्राणी में ईश्वर का अंश है हां इतना जरूर है कि गाय तो केंद्र बिंदु है। बाकी सभी को भी तो जीने का अधिकार है। आज हम इन निरीह प्राणियों के अधिकारों का हनन करेंगे तो कल हमारे अधिकारों की क्या गति होगी? शायद वही जो आज इन निरीहों हो की हो रही है। विजय गुप्ता की कलम से
गऊ सेवा का चमत्कार
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