मथुरा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यस्थल पर सुरक्षित, आरामदायक और स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार है। दुर्भाग्य से हमारे यहां 50 फीसदी से अधिक महिलाएं समाज और अपने कार्यक्षेत्र में यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। इसे कैसे रोका जाए इसके लिए सरकार ने पीओएसएच अधिनियम बनाया है लेकिन यदि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकना है तो सभी को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। यह बातें जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा की महिला सेल द्वारा आयोजित कार्यशाला में अतिथि वक्ताओं ने संकाय सदस्यों, कर्मचारियों तथा बी.टेक और एमबीए के छात्र-छात्राओं को बताईं।
महिला सेल की अध्यक्ष डॉ. शिखा गोविल ने यौन उत्पीड़न, पीओएसएच अधिनियम द्वारा निर्धारित कानूनी ढांचे, एक सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल संस्कृति बनाने, निवारक उपायों और सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में चर्चा की। उन्होंने शिकायतें दर्ज करने और निवारण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के बारे में भी व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया। उन्होंने कहा कि एक नियोक्ता, प्रबंधक या पर्यवेक्षक की यह जवाबदेही है कि वह अपने कर्मचारियों को उत्पीड़न से बचाने को अपनी मौलिक जिम्मेदारी समझे।
डॉ. शिखा गोविल ने बताया कि कोई भी व्यक्ति जो अवांछित यौन व्यवहार का अनुभव करता है, चाहे वह मौखिक हो या शारीरिक, यौन उत्पीड़न की परिधि में आता है। ऐसे व्यवहारों में अवांछित निकटता, स्पर्श करना, व्यक्तिगत प्रश्न पूछने से लेकर मौखिक दुर्व्यवहार तक शामिल है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति अपने प्रति किए गए किसी भी यौन व्यवहार के परिणामस्वरूप असहज महसूस करता है, तो यह यौन उत्पीड़न है। कुछ मामलों में, कोई व्यक्ति कह सकता है कि उनका इरादा किसी को ठेस पहुँचाने या किसी को असहज महसूस कराने का नहीं था, लेकिन यह इसे स्वीकार्य नहीं बनाता है। यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि यौन उत्पीड़न को कभी भी ‘मजाक’ या मजाक के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए और किसी को भी यह महसूस नहीं कराया जाना चाहिए कि असहज महसूस करना गलत है।
कार्यशाला में कार्यक्रम की समन्वयक मेधा खेनवार ने पीओएसएच अधिनियम पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम), कार्यस्थल में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पीओएसएच अधिनियम पीड़ित महिलाओं के लिए सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में कार्य करता है, जो कार्यस्थल में उनके सम्मान, सुरक्षा और समानता के अधिकार की पुष्टि करता है। यह अधिनियम यौन उत्पीड़न से निपटने और समावेशी कार्य वातावरण बनाने के लिए नियोक्ताओं, सहकर्मियों और समग्र रूप से समाज की सामूहिक जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है।
श्रीमती खेनवार ने कहा कि पीओएसएच अधिनियम कार्यस्थल सम्बन्धों की जटिलताओं पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से पीड़ित महिलाओं और कथित उत्पीड़न में शामिल प्रतिवादियों के बीच बातचीत के संबंध में। यह अधिनियम यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र की आवश्यकता पर जोर देता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पीड़ित महिलाओं को प्रतिशोध या उत्पीड़न के डर के बिना समस्या निवारण के अवसर मिलेंगे। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संकाय सदस्य, कर्मचारी तथा बी.टेक और एमबीए के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन मेधा खेवनार और स्तुति गौतम ने किया।
कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न रोकना सामूहिक जिम्मेदारी, जीएल बजाज में पीओएसएच अधिनियम पर हुई कार्यशाला
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