मथुरा। बात काफी दिन पहले की है। मेरी बात संत शैलजाकांत मिश्र की स्क्वैड के ड्राइवर सत्य प्रकाश से हो रही थी। चर्चा चल पड़ी मिश्रा जी के बारे में, इसी दौरान वे बोले कि हमारे साहब तो संतो से भी बड़े संत हैं। मैंने पूंछा कैसे? तो वे बोले कि अभी कुछ दिन पहले की बात है साहब ने मुझसे मेरे निजी जीवन के बारे में कुछ कहा वह बात पांच सात दिन के बाद ही सच हो गई। उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या बात थी और मैंने पूंछा भी नहीं।
वे यहीं नहीं रुके और बोले कि उसके बाद अभी दो-चार दिन पहले की बात है। साहब कहीं निकलने को थे। तभी उनकी नजर बंगले की छत पर बैठे एक मोर पर पड़ी उसे देखकर वे ठिठक गए इसके पश्चात वे एकटक मोर को देखते रहे फिर उसके बाद ड्यूटी पर तैनात लोगों से कहा कि इस मोर का ध्यान रखना कहीं मर न जाय। शाम होते होते वह बेचारा मोर मर ही गया। शायद मोर की जिंदगी इतनी ही थी और मिश्रा जी को इस बात का पूर्वाभास हो गया होगा।
मेरा मिश्रा जी से संपर्क तभी से है जब वे मथुरा में पुलिस कप्तान रहे थे। कुछ बातें तो मैंने भी महसूस की हैं कि ब्रह्म ऋषि देवराहा बाबा जो मिश्रा जी से बेहद लगाव रखते थे, द्वारा इन्हें अपनी अलौकिक शक्तियों में से कुछ न कुछ अंश जरूर दे रखा होगा। मैंने उनसे इस बाबत कोई पूंछा ताछी भी नहीं की क्योंकि मुझे पता है कि उनका क्या उत्तर होगा। कुछ बतायें उससे पहले तो यही कहेंगे कि विजय बाबू इसे छापा छूपी मत करना। विजय बाबू इतने भले कहां जो अपनी मन की बात को अखबार में छापे या फेसबुक पर लिखे बगैर रह जांय। कुछ मामलों में तो मैं उनकी बात को मान भी जाता हूं और जब मेरे ऊपर छापने या फेसबुक पर लिखने का भूत सवार होता है तो फिर अनुनय विनय करके अनुमति ले ही लेता हूं।
संत शैलजाकांत में ऐसी क्या खास बात है जो सर्विस के दौरान और सर्विस से रिटायर होने के बाद भी मौज में हैं? इसका सीधा-सीधा उत्तर है कि यह इनके इस जन्म के और शायद पूर्व जन्मों के सद्कर्मों का ही फल है। ऊपर से सौने में सुगंध का कार्य ब्रह्म ऋषि देवराहा बाबा की विशेष कृपा ने किया है। बाबा ने तो उसी समय इनसे यह कह दिया था, जब ये पुलिस कप्तान थे, कि शैलेश भगत तुमको रिटायर होने के बाद भी बृजभूमि की सेवा करने को आना है और यहीं की मिट्टी में लोटपोट होना है। तुम्हें सेवा के लिए यहां पर खुद सरकार ही भेजेगी वह भी मनामने करके। मिश्रा जी ने काफी दिन पूर्व मुझसे कहा था कि मैं बड़े असमंजस में रहता कि रिटायर होने के बाद सरकार यहां पर क्यों और कैसे भेजेगी? जो बाद में समझ आया।
बाबा ने मिश्रा जी से कहा था कि बच्चा शैलेश कभी अपने रहने के लिए जमीन मत खरीदना और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मंजरी देवी से कहा कि बेटी कभी सौना धारण मत करना। आज मिश्रा जी की पूरे देश में कहीं एक इंच भी जमीन नहीं है और उनकी धर्मपत्नी ने सौने का एक कांटा भी धारण नहीं कर रखा है। इसीलिए यह दंपत्ति सुख शांति का जीवन व्यतीत कर रहा है। यदि हम लोगों को अपने जीवन को सुखमय बनाना है तो धन लिप्सा से दूर रहकर सद्कर्मों में लगे रहना और सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए।
यदि हम इस दिशा में आगे बढ़ते हैं तो न सिर्फ हमारा यह जन्म अपितु अगला जन्म भी सुखमय रहेगा। यही नहीं देखा देखी हमारी अगली पीढ़ी भी इस ओर अग्रसर हो कर लाभान्वित होगी यानी पूरी वंशावली की दिशा और दशा बदल जायगी।
विजय गुप्ता की कलम से