Wednesday, October 23, 2024
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नयति की गति टाइटैनिक जैसी और के० डी० लहरों पर भी झूम रहा है

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। नयति हॉस्पिटल की गति तो टाइटैनिक जैसी हुई और के०डी० मेडिकल समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर भी झूमे जा रहा है। ऐसा क्यों? इसकी खोज करने की मुझे जरूरत ही नहीं पड़ी। कुछ हालात ऐसे बने की खुद ब खुद रिजल्ट यानी दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ गया। कहते हैं कि बिना मरे स्वर्ग दिखाई नहीं देता, किंतु इस कहावत को उलटते हुए मैंने बिना मरे ही स्वर्ग न सही पर उसकी झलक तो देख ही ली। इस झलक को देखने के लिए मुझे भले ही मरना न पड़ा हो किंतु अधमरा जरूर होना पड़ गया।
     अब पहेलियां बुझाने के बजाय सीधी बात पर आता हूं। दरअसल उम्र के तकाजे ने प्रोस्टेट का ऐसा गिफ्ट दे दिया कि अधमरा होकर मुझे के०डी० मेडिकल के शरणागत होकर ऑपरेशन कराना पड़ गया। ऑपरेशन भी छोटा-मोटा नहीं बड़ा था। उस दौरान मुझे के०डी० मेडिकल में मरीजों की भीड़ का सैलाब देखने को मिला जिससे मैं बड़ा आश्चर्य चकित हुआ क्योंकि जब के०डी० मेडिकल कॉलेज और के०डी० मेडिकल अस्पताल का निर्माण हुआ था तब तो सन्नाटे से रहते थे, क्योंकि या तो मैं शुरुआती दौर में गया और या फिर अब।
     ऐसा मेला सा लगा हुआ था जैसे अस्पताल न होकर कोई नामचीन मंदिर हो। सचमुच में देखा जाए तो के०डी० मेडिकल मरीजों और गरीबों के लिए मंदिर ही है। यह बात में रामकिशोर जी जो के०डी० के जनक हैं, की चापलूसी में नहीं बल्कि वास्तविकता से रूबरू होकर लिख रहा हूं। अंदर की बात बताऊं कि मैं चापलूसी के बजाय खोचड़ी वाले स्वभाव का इंसान हूं, इसीलिए मुझे पानी में देखने वालों की संख्या अधिक है।
     अब दूसरी और रुख करता हूं काफी वर्ष पूर्व मथुरा में एक बहुत बड़ा अस्पताल खुला जिसका नाम था “नयति”। इस अस्पताल का संचालन नामचीन हस्तियों के हाथों में था। अब बीच में रुककर यानी ब्रेक लेकर प्रसंग से हटकर एक बात बताता हूं। एक बार मैंने अपने पिताजी के सामने अपनी नई डायरी रखी और कहा कि इस पर कुछ लिख दो उन्होंने लिखा कि “न सूरत बुरी है न सीहत बुरी है, बुरा है वही जिसकी नीयत बुरी है”।
     मतलब की बात यह है कि नयति की नीयत सही नहीं थी इसीलिए उसका भट्टा बैठ गया। यानी टाइटैनिक जहाज जैसा हश्र हुआ अब तो नयति को बंद हुए भी अरसा गुजर गया। कुछ स्थानींय लगुओं भगुओं ने अपनी दूषित नीयत के कारण भसड़ फैला दी तथा जहाज जैसे ही हिचकोले लेने लगा तुरंत कूद कर पार हो गए और जहाज को डूबने के लिए छोड़ दिया। यह कहानी लंबी है इसे यहीं समाप्त कर दिया जाए वही बेहतर होगा। सारी दुनियां जानती है कि क्या हुआ और क्या-क्या नहीं हुआ।
     अब वापस लौटता हूं के०डी० मेडिकल की ओर जहां बड़े मनोयोग से मरीजों की सेवा हो रही है और ऐसा अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसकी वजह से शायद सदियों तक डॉ० रामकिशोर अग्रवाल को याद रखा जाएगा। भले ही सदियों तक न याद किया जाए पर कई दशकों तक तो रामकिशोर जी को लोग भूलेंगे नहीं।
     इस अस्पताल के जनरल वार्ड में मरीजों का बैड फ्री, खाना फ्री यहां तक कि अधिकांश जांचें फ्री। शायद किसी को आसानी से इस बात पर विश्वास नहीं होगा किंतु यह एकदम सच है। हां कुछ जांचें 50% शुल्क पर होती हैं। साधु महात्माओं का पूरा इलाज व दवाई फ्री तथा कोई ऐसा व्यक्ति जो लाचार होकर रामकिशोर जी तक पहुंच जाए और गिड़गिड़ाये कि हुजूर मेरे पास तो दवाई के पैसे तक नहीं है, उसका भी रामकिशोर जी सब कुछ फ्री कर देते हैं। है न अजब गजब की बात। अगर किसी को विश्वास न हो तो चला जाए वहां और भर्ती होकर देख ले अपनी आंखों से सब कुछ।
     के०डी० मेडिकल की सेवा और बहुत कुछ फ्री ही फ्री के बारे में मुझे जिज्ञासा हुई और मैंने रामकिशोर जी से पूंछा कि इस धन की आपूर्ति कैसे करते हो? तो उन्होंने बताया कि इस मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंटों की जो भारी भरकम फीस आती है उसे इसी में लगा देता हूं। रामकिशोर जी कहते हैं कि “गुप्ता जी खाली हाथ आया हूं और खाली हाथ ही एक दिन चला जाऊंगा साथ में तो सिर्फ परमार्थ ही जाएगा”।
     वाह रामकिशोर जी वाह आप धन्य हैं। दूधों नहाओ और पूतों फलो। पूत तो अब क्या फलेंगे? किंतु जो पूत फल गए हैं वे भी बड़े सपूत हैं और रामकिशोर जी की भावना के अनुसार चलकर उनकी लकीर को बड़ी करने में जुटे रहते हैं। यही कारण है कि मथुरा के मेडिकल कॉलेज के बाद एक और मेडिकल कॉलेज नोएडा तथा उसके बाद अब तीसरे मेडिकल कॉलेज की प्रक्रिया जेबर में भी शुरू हो चुकी है।
     जब रामकिशोर जी ने यह सब बताया तो सुनकर बजाय खुश होने के मुझे बड़ी कोफ्त हुई और मुंह से निकाल बैठा कि इतनीं हवस क्यों हो रही है? क्या एक मेडिकल से सेवा की तृप्ति नहीं हो पा रही? मेरे इस बुरबोले पन से रामकिशोर जी दुःखी हो गए और बोले कि गुप्ता जी आपने तो झट से कह दिया कि इतनी हवस क्यों हो रही है? आप मेरी भावना को समझो। बात यह है कि गांव देहात के इन गरीब और लाचार लोगों की सेवा जितनी अधिक से अधिक हो जाए वही मेरी कमाई है और यही दौलत मेरे साथ जाएगी।
     रामकिशोर जी की बात से मैं निरुत्तर होकर अपने मुंह से निकली जहरीली बात से खुद व खुद शर्मिंदगी सी महसूस कर खुद पर लानत डालने लगा। अब अंत में यह जरूर कहूंगा कि रामकिशोर जी ने न सिर्फ मेडिकल कॉलेज का तोहफा दिया बल्कि मथुरा में उच्च शिक्षा के जनक कहलाने का गौरव भी प्राप्त किया। शुरूआत इन्होंने बी०एस०ए० इंजीनियरिंग कॉलेज से की और फिर तो मथुरा से लेकर नोएडा तक उच्च शिक्षा के कॉलेजों की झड़ी लगाकर जो कीर्तिमान स्थापित किया उसे आज तक कोई तोड़ने की बात तो दूर छू तक नहीं पाया। कभी-कभी तो मैं भी अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं कि ऐसे महापुरुष की मित्रता का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। अब मैंने इनका नाम राम के बजाय कृष्ण और अपना सुदामा रख लिया है। ईश्वर इन्हें शतायु करें।
   

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