Saturday, November 23, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेनानीं मर कर हो गईं जिन्दा

नानीं मर कर हो गईं जिन्दा

मथुरा। घटना लगभग 75-80 वर्ष पुरानी है। हमारी नानीं बरफी देवी जो नाई वाली गली की रहने वाली थीं। दो बार मर कर जिंदा हो गईं।
     नानी जिसे हम अम्मा कहते थे हम क्या पूरा खानदान रिश्तेदार व गली मुहल्ले तक सभी उन्हें अम्मा ही कह कर पुकारते थे सिवाय नाना जी श्री नाथ दास जी को छोड़कर। नानीं पहली बार मर गईं काठी कफन व अन्तिम संस्कार का सभी सामान जुटने लगा कि अचानक नानीं के शरीर में हरकत होने लगी और वह उठ बैठी। घर में रोमन पिट्टन बंद हो गई और खुशी की लहर दौड़ गई। हल्ला मच गया की अम्मा जिन्दा हो गई।
     नानीं ने बताया कि यमदूत आकर उन्हें ले गए। अपने गंतव्य तक पहुंचने पर नानीं ने देखा कि एक बुजुर्ग सा व्यक्ति जो चश्मा लगाए हुए था बही खातों को देख कर जोर से बोला कि अरे यह वो वाली बरफी नहीं है। जाओ जाओ इसे जल्दी वापस छोड़ कर आओ और फिर यमदूत नानीं को वापस छोड़ गए। थोड़ी देर बाद पता चला कि बरफी नाम की एक अन्य महिला का निधन हो गया वह भी इसी गली में रहती थीं।
     कुछ वर्ष बाद फिर अम्मा का निधन हो गया। घर में रोमन पिट्टन मच गई। काठी बनकर तैयार हो गई और अम्मा को उस पर लिटा दिया गया किंतु अचानक अम्मा जोर से चिल्लाई “अरे मौकू मार डारो रे” और फिर तो वह यमदूतों को कोसने लगे कि “नाशपीटेऔ तुम्हारौ सत्यानाश जाय” फिर नानीं ने धीरे-धीरे बताया कि यम दूतों ने मुझे ऊपर से ही नीचे फेंक दिया मेरी तौ कमर टूट गई।
     अम्मा की कमर में सचमुच नील पड़ी हुई थी और वह जोर-जोर से कराहती रहीं और यमदूतों को कोसती रहीं। अम्मा ने बताया कि पहले की तरह मुझे उसी जगह पर ले गए और वह चश्मा पहने हुए जो बुड्ढा बैठा था बही खाते देखकर उसने फिर वही बात कही कि अरे  इसे क्यों ले आए यह वह वाली बरफी नहीं है। इसके बाद यमदूतों ने मुझे ऊपर से ही नीचे फेंक दिया। यह पता नहीं कि फिर और कोई दूसरी बरफी देवी मरी या नहीं किंतु हमारी नानीं यानी अम्मा की कमर में जीवन पर्यंत बुरी तरह कसक बनी रही और वह अक्सर दर्द से कराहती रहती थीं।
     अम्मा ने बताया कि जहां मुझे ले जाया गया था वहां पानीं से भरे काफी घड़े तला ऊपर यानीं एक के ऊपर एक रखे हुए थे। अम्मा के बारे में हमारी माताजी बतातीं थीं कि वह अक्सर मन्दिरों में पानीं का दान बहुत करती थीं। गर्मियों में तो बड़े बड़े घड़ों को मन्दिरों में भिजवाना और फिर उनमें रोजाना पानी भरवाने का उन्हें बहुत चाव था। खैर लगभग साठ वर्ष पूर्व अम्मा फिर तीसरी बार स्वर्ग सिधार गईं लेकिन पिछली दो बार की तरह वापस नहीं लौटीं।
     अम्मा मर गई और फिर जिन्दा हो गई यह घटनाक्रम तो रोमांचकारी है किंतु सिर्फ पानी के घड़ों का मिलना तथा पकवानों का न होना मेरे लिए टेंशन दे रहा है। यह घटनाक्रम लिखते समय अब मुझे चिंता सताने लगी है कि जब मेरा नम्बर आएगा तब कहीं ऐसा न हो कि वहां पर सिर्फ समर्सिबल वाला एक नलकूप लगा मिले कि ले बेटा पी जितना पी सके पीले या डुकास ले पर मिलेगा सिर्फ पानीं ही।
     दूसरी बात यह मन में विचर रही है कि 75-80 वर्ष पूर्व चश्मा वाला बुजुर्ग था लेकिन अब शायद कानों में मोबाइल की लीड लगाऐ यंग लड़का होगा और बही खातों की जगह लैपटॉप या कंप्यूटर होगा और जब मैं उससे पूछूंगा कि खाली पानी ही क्यों पकवान भी तो होने चाहिए मेरे लिए। इस पर वह जवाब देगा कि सर आपने भी तो लोगों को पानीं ही पिलाया था रात दिन यदि पानीं के साथ साथ खाने पीने को लंगर चलाते तो फिर पकवान जरूर मिलते। इस पर मेरे पास सिर्फ माथा पीटने के अलावा और कोई चारा नहीं होगा।

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