Sunday, September 8, 2024
Homeविजय गुप्ता की कलम सेसिर्फ एक बंदर ने पूरे शहर का जीना हराम कर दिया

सिर्फ एक बंदर ने पूरे शहर का जीना हराम कर दिया

मथुरा। बात लगभग साढ़े चार दशक पुरानीं है जब मात्र एक बंदर ने पूरे शहर के लोगों की रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया। इस खतरनाक बंदर के उपद्रव से न सिर्फ यहां के वासिन्दों का जीना हराम हो गया बल्कि पूरी पुलिस और प्रशासन की नाक में दम हो गई। सारे राज काज प्रभावित होने लगे तथा पुलिस वाले इस बंदर के चक्कर में चारों और लाठियां फटकारते फिरते थे। इस शैतान बंदर का आतंक शायद एक महीने से भी ज्यादा चला।
     ऐसा लगता था कि वह बंदर सामान्य बंदर न होकर अद्भुत आसुरी शक्ति धारण किए हुए कोई बबाल था। उस बंदर का रंग सामान्य बंदरों की अपेक्षा कुछ कालेपन पर था और आकार भी थोड़ा बड़ा था। वह दिन के बजाय रात में लोगों पर हमला करके बुरी तरह काट खाता था। वह धूर्त बंदर अक्सर कर महिलाओं को अपना शिकार अधिक बनाता था। महिलाओं के साथ अभद्रता करने की काफी शिकायतें भी प्रकाश में आई।
     बंदर का आतंक पूरे शहर में ऐसा जबरदस्त था कि लोग रात्रि में घरों के अंदर दुबके रहते और भयंकर गर्मी होते हुए भी छतों के बजाय अंदर सोते तथा जो लोग छतों पर सोते भी थे वह बड़े-बड़े बल्ब जलाकर सोते या पास में लालटेन अथवा टॉर्च व लाठी रखे रहते थे।
     जैसे ही बंदर के आने की आहट होती तुरंत छतों पर हल्ला मच जाता कि आयौ बंदर आयौ बंदर और यह आवाज एक छत से दूसरी और दूसरी से अन्य छतों से होती हुई पूरे मुहल्ले और फिर मुहल्ले से शहर भर में पूरी रात गूंजने लगती। आगे चलकर आयौ बंदर आयौ बंदर की आवाज ने शार्ट रूप ले लिया तथा आयौ आयौ का हल्ला मचने लगा। कुछ शरारती तत्वों को इसमें खूब मजा आता कभी-कभी वह बगैर बंदर के आये ही हल्ला मचाने लगते और फिर छतों पर सोने वाले अपने कमरों में भागते या फिर लाठी डंडे फटकारते। फिर तो अब आयौ आयौ का ऐसा फैशन चल निकला कि दिन में भी छतों या गलियों में यह आवाजें गूंजती रहती।
     पुलिस बाजारों गलियों और मुहल्लों में आयौ आयौ की आवाज लगाने वाले उत्पाती तत्वों पर लाठियां भांजने लगी। बहुत से लोग छतों पर पहुंचकर पुलिस वालों को चिढ़ाने के लिए और भी अधिक जोर से आवाजें लगाते थे। यह ऊधम चौबिया पाड़ा क्षेत्र में कुछ अधिक होता था। संपूर्ण शहर में चारों ओर यही चर्चा होती रहती थी। एक नहीं दो नहीं दर्जन दो दर्जन नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाएं व पुरुष उस बंदर ने बुरी तरह घायल कर डाले। इस शैतान ने कभी-कभी तो लोगों को ठौर कुठौर भी काट खाया।
     जैसे जैसे समय निकलता गया वैसे वैसे इस आतंकवादी बंदर का खौफ बढ़ता गया पहले शहर में और फिर धीरे धीरे अन्य शहरों में भी यह बात फैल गई तथा स्थानींय समाचार पत्रों के अलावा राष्ट्रीय स्तर तक के अखबारों में यह खबर रोचकता के साथ छपने लगी। इसके बाद शासन द्वारा प्रशासन को इस बंदर को पकड़वाने के लिए निर्देश दिए प्रशासन ने भी बंदर पकड़ने वालों को बुलवाया किंतु हाथ खाली क्योंकि बंदर हाथ नहीं आता और उसके चक्कर में साधारण बंदर पकड़े जाते। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि दिन हो या रात किसी को भी कोई बंदर दिखाई दे जाय तो तुरंत ईट पत्थरों की वर्षा होने लगती। परिणाम स्वरूप साधारण बंदरों का जीना भी हराम हो गया।
     उन दिनों मेरी पत्रकारिता का शुरुआती दौर था। उस समय लोकल में नंबर एक पर अमर उजाला ही चलता था तथा दूसरे नंबर पर सैनिक था। सैनिक की प्रसार संख्या अमर उजाला की तुलना में काफी कम थी। क्योंकि रेल के पुल पर गैलरी बनवाने की मुहिम के चक्कर में मेरी अखबार वालों से अच्छी रैट पैट हो चुकी थी। मैं अमर उजाला के जिला प्रतिनिधि श्री कांति चंद्र अग्रवाल तथा सैनिक के जिला प्रतिनिधि श्री नरेंद्र मित्र जी का समाचार संकलन में शौकिया सहयोग करता था वह भी मेरी लगन से बड़े प्रभावित रहते और जो कुछ मैटर में लाकर देता उसे तुरंत छाप देते थे।
     मुझे जैसे ही भनक मिलती कि फलां जगह फलां व्यक्ति को बंदर ने काट लिया है मैं तुरंत साइकिल से वहां पहुंच जाता व समाचार संकलित करके कांति चंद्र जी व मित्र जी को दे देता और वे प्रमुखता से छाप देते लेकिन लोकल अखबारों की देखा देखी राष्ट्रीय अखबारों में भी बंदर की खबरें छपने लगीं। पुलिस बजाय रूटीन के कामों को देखने के बंदर के चक्कर में भागी दौड़ी फिरती थी। अंत में पुलिस ने कह दिया कि कोई बंदर नहीं है यह तो सिर्फ अफवाह है। उस समय जिलाधिकारी बीडी माहेश्वरी थे उन्होंने अखबार वालों से संपर्क किया तथा बंदर की खबरों को न छापने का अनुरोध किया किंतु मैंने तो बंदर डिपार्टमेंट पूरी तरह संभाल रखा था भला मैं कहां मानने वाला था। अतः मैंने अपनी सक्रियता में कोई कमी नहीं आने दी तथा नाम पते व कहां इलाज चल रहा है यानी कि कौन से अस्पताल में भर्ती है या किस डॉक्टर से उपचार कराया यह सब विवरण एकत्र करके देता रहा और अमर उजाला व सैनिक में समाचार छपते रहे।
     इससे पूरा प्रशासन व पुलिस वाले और भी अधिक परेशान होने लगे अतः जिला अधिकारी बीडी महेश्वर ने पत्रकार वार्ता बुलाई और बुरी तरह झल्लाये। उन्होंने कांति चंद जी को अप्रत्यक्ष रूप से एक इंगित करते हुए कटाक्ष किया कि जो बंदर की खबरें छापते हैं वे खुद ही बंदर होते हैं। पत्रकार वार्ता से लौटकर कांति चंद्र जी ने मुझे यह बात बताई फिर तो मुझे बड़ा क्रोध आया क्योंकि कांति चंद्र जी बहुत ही सज्जन और देव तुल्य व्यक्ति थे तथा मित्र जी और कांति चंद्र जी पत्रकारिता के मेरे गुरु भी थे।
     उसी दिन बिल्ली के भागों छींका टूटा यानीं कि सदर बाजार क्षेत्र के एक दरोगा की पत्नी को बंदर ने बुरी तरह घायल कर दिया। जैसे ही मुझे भनक लगी तुरंत साइकिल लेकर भागा तथा दरोगा की पत्नी किस अस्पताल में किस बैड पर भर्ती हैं और दरोगा व उनकी पत्नी द्वारा दिए गये बयान के साथ पूरा समाचार बड़ी रोचकता के साथ अमर उजाला व सैनिक में छपवा दिया। इसके बाद तो फिर दो बंदरों का आतंक मच गया एक बंदर पूंछ वाला था और दूसरा बगैर पूंछ का।
     पूंछ वाला बंदर वारदातों को अंजाम देता और बगैर पूंछ वाला बंदर इन वारदातों को हाईलाइट करता था। अब तो और भी हड़कंप मच गया। उस समय सीओ सिटी केडी दीक्षित तथा कोतवाल व्यास देव श्रोत्रिय थे। ये लोग मुझसे बड़ा स्नेह मानते थे क्योंकि इन्होंने पुल पर पैदल रास्ता बनवाने के दौरान मेरी लगन या यौं कहिए कि सनक देखी थी। केडी दीक्षित और व्यास देव श्रोत्रिय हमारे घर पर आए तथा बोले कि विजय बाबू अब इस तमाशे को कैसे भी खत्म कराओ क्योंकि इस बंदर के चक्कर में हम लोगों की नाक में दम हो रही है।
     मैंने केडी दीक्षित से कहा कि अंकल आप के डीएम साहब दो कांति चंद्र जी के लिए इस प्रकार की भाषा बोल रहे थे क्या ये उचित है? इस पर वे बोले कि भाई वे दोनों तो बड़े हैं और तुम बच्चे हो तुम तो बच्चे ही बने रहो क्योंकि बच्चों को बड़ों की बातों में नहीं पड़ना चाहिए आदि आदि कहकर हुए मुझे बैलाने व पुचकारने लगे। बंदर का यह प्रकरण कुछ ही दिन और चला उसके बाद कृष्णापुरी स्थित ब्लैक स्टोन स्कूल में वह बंदर गोली से मारा गया।
     बंदर के मरने की सूचना कांति चंद्र जी को जैसे ही मिली उन्होंने मुझे वहां भेजा। मैंने देखा कि वह बंदर सामान्य बंदरों से कुछ अधिक बड़े आकार का था तथा उसका रंग कुछ कालेपन पर था। वह बंदर स्कूल के हॉस्टल के अंदर घुस कर रात्रि में शिक्षिकाओं पर हमला कर रहा था तभी एक कर्मचारी ने अपनी लाइसेंसी बंदूक से उस पर गोली मार दी। जब मैं ब्लैक स्टोन स्कूल पहुंचा तो वहां के इंचार्ज ने सभी शिक्षिकाओं व स्टाफ को बुलवाकर उनकी आपबीती सुनवाई जो हैरान करने वाली थी उनके द्वारा दबी जुबान से बताई गई बातों से ऐसा महसूस हुआ कि वह हनुमान जी की सेना वाला सामान्य बंदर न होकर राक्षसी प्रवृत्ति का कोई अद्भुत बंदर था।

विजय गुप्ता की कलम से

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