विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। लगभग 64-65 वर्ष पहले मुड़िया पूनों के पुनीत पर्व पर मथुरा में भी गोधरा कांड से मिलता जुलता एक वीभत्स हत्याकांड हुआ था, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए। यह हत्याकांड एक सिरफिरे कट्टरपंथी मुसलमान ने किया था, जो गोवर्धन में परिक्रमा देने हेतु आने वाले श्रद्धालुओं से नाराज था।
दिल दहला देने वाली यह दुखद घटना यमुना पर बने रेल के पुल पर हुई थी, रेल की छत पर बैठे अनगिनत लोग पुल के ऊपर बनी केंचियों से गाजर मूली की तरह कट गए। तथा न सिर्फ पूरा पुल और रेलगाड़ी के डिब्बे खून से रंग गए बल्कि यमुना की धारा भी लाल हो गई। यह हादसा मुड़िया पूनों वाले दिन की पूर्व रात्रि में लगभग 3-4 बजे के मध्य हुआ। इस हादसे मैं सैकड़ों लोगों की जान गई तथा सैकड़ों जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ढाई तीन सौ लोग मरे थे तथा ट्रकों में भर भर कर लाशें ले जायी गईं थी। इसके अलावा न मालूम कितने लोग उफनती यमुना के तेज बहाव में बह गए।
घटनाक्रम के अनुसार सवारी गाड़ी के सभी डिब्बों की छतें यात्रियों से लबालब भरी हुई थीं, राया रेलवे स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो रेलवे के अधिकारियों ने ऊपर बैठी सभी सवारियों से कहा कि नींचे उतर आओ मथुरा में पुल के ऊपर कैंची लगी हुई हैं, उनसे दुर्घटनाग्रस्त हो जाओगे किंतु हजारों की भीड़ में इस बात को कौन सुनने व समझने वाला था? लोगों को यह अनुमान था कि पुल से पहले रेल रुक जाएगी और हम उतर जाएंगे। हर वर्ष भी यही होता था, किंतु रेलगाड़ी का मुख्य ड्राइवर जो उग्र पंथी विचारों का अत्यंत कट्टरवादी मुसलमान था, के मन में कुछ और ही चल रहा था।
उस ड्राइवर ने राया स्टेशन छोड़ते ही गाड़ी की स्पीड बहुत तेज कर दी तथा बजाय पुल से पहले रोक कर यात्रियों को उतरने का मौका देने के, रेलगाड़ी को उसी तेज रफ्तार में पुल के अंदर घुसा दिया और पुल पार करके ही रोका। चारों ओर चीत्कार हो उठा। हर तरफ खून और कटे फटे मृत और जिंदा शरीरों का ढेर लग गया। लोग बताते हैं कि पुलिस वालों ने अनेक लाशों को यमुना के तेज बहाव में डाल दिया ताकि मृतक संख्या कम दर्शाई जा सके। उस समय मेरी उम्र लगभग 7-8 वर्ष की रही होगी। हमारा घर उसी रेल के पुल के निकट है। मैंने अपनी आंखों से ट्रकों में भर भर कर लाशों को जाते देखा था।
इस भयानक हादसे की गूंज पूरे देश में हुई थी। बताते हैं कि ऐसी दुखद और हृदय विदारक घटना के समय भी कुछ असामाजिक तत्वों ने बजाय घायलों की मदद करने के, मृतकों व घायलों की जेबों से पैसे निकालने व महिलाओं के आभूषण लूटने में दिलचस्पी दिखाई। इस दुखद घटना के बाद रेल विभाग ने पुल की कैंचियों को ऊंचा उठावा दिया यही नहीं पूरे देश में जहां जहां पुलों पर कैंची नींची थी उन्हें ऊंचा किया गया।
रेलगाड़ी के जिस कट्टरपंथी हैवान ड्राइवर ने इस घृणित कृत्य को अंजाम दिया था, बाद में एक वाहन दुर्घटना में उसकी दर्दनाक मौत हो गई। उस ड्राइवर के सहयोगी ड्राइवर ने उसे ऐसा घृणित कार्य करने से बहुत रोका किंतु उसके ऊपर तो हजारों लोग जो रेलगाड़ी के डिब्बों की छतों पर बैठे थे और गिरिराज जी की परिक्रमा लगाने को आतुर थे, को मौत के घाट उतारने का जुनून सवार था।
जो लोग पुल के एकदम निकट रहते हैं, वे बताते हैं कि कभी कभी रात्रि के सन्नाटे में बचाओ बचाओ की आवाजें सुनाई दे जाती हैं। लोगों का कहना है कि मृतकों की आत्मा आज भी इस पुल पर भटक रही है। आज भी जब कभी मुझे वह खौफनाक मंजर याद आता है तो कलेजा तड़पने लगता है। सोचता हूं कि उस नरपिशाच को अपने मन को सुकून देने के लिए क्या ऐसी नींचता करना जरूरी था? पता नहीं कितने घर उजड़े और बिगड़े होंगे? लानत है ऐसे नराधम को और धिक्कार है उसके उन माता-पिताओं को जिन्होंने अपनीं संतान को संस्कार नहीं दिए और धिक्कार उन कथित धर्म गुरुओं को जो धर्म के नाम पर अधर्म की शिक्षा देते हैं।