Friday, September 20, 2024
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जीएलए में आयोजित बृज मंथन में पांडुलिपियों को संरक्षित रखने पर हुई चर्चा- जीएलए के ब्रज मंथन कार्यक्रम में पहुंचे ब्रज साहित्य विषेशज्ञ

मथुरा। ब्रज रज को मस्तक से लगाने के बाद भक्त अपने आप को धन्य महसूस करता है। इस बृज का साहित्य, संस्कृति एवं ज्ञान को देश-दुनियां में पहुंचाने के प्रयास में जीएलए विश्वविद्यालय, डा. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय आगरा और मेरो बृज ज्ञान परिषद ने मिलकर राष्ट्रीय संगोष्ठी ’बृज मंथन 2024’ का आयोजन किया।
“बृज साहित्य संरक्षण में पुस्तकालयों की भूमिका“ विशय पर आयोजित संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य बृज साहित्य, जो पांडुलिपियों एवं अन्य स्रोतों में हमारे घरों, मंदिरों, मठों एवं स्थानीय पुस्तकालयों में पारंपरिक संरक्षण के तहत रखा गया है, उसको सामाजिक पटल पर लाना, इसका आधुनिक भाषा में अनुवादित करना, उसे डिजिटाइज़ करना, उसे एकीकृत कर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सभी समाज के वर्गों मुख्यतः शोधार्थी एवं अन्य ज्ञान के इच्छुक व्यक्तियों के लिए सुलभ कराना है।
समारोह के मुख्य अतिथि जीएलए के कुलपति प्रो. फाल्गुनी गुप्ता ने कहा कि साहित्य संरक्षण में पुस्तकालयों की अहम भूमिका रही है और बृज ज्ञान साहित्य को सुलभ कराने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। मुख्य वक्ता कलानिधि प्रभाग आईजीएनसीए नई दिल्ली के निदेषक प्रो. रमेश चंद्र गौड ने कहा कि बृज साहित्य बहुत प्राचीन और वृहद है और यहां यह घर-घर में फैला हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि इस ज्ञान को डिजिटाइज़ करने और सुरक्षित रखने के लिए हम राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के अंतर्गत इसे संरक्षित कर सकते हैं।
संगोश्ठी के आयोजक डॉ. राजेश कुमार भारद्वाज ने कहा कि बृज में ज्ञान हर घर में है। हर घर का मतलब विशेषकर गोस्वामी समाज, हमारे मंदिर और मठ ज्ञान के भंडार हैं, जिन्हें सर्व समाज के लिए सुलभ कराना हमारा उद्देश्य है। उन्होंने आगे कहा कि घरों में रखी पांडुलिपियों या पोथियों, जो सदियों से रखे हुए है, उनके जीर्ण-शीर्ण होने का खतरा बना हुआ है। अगर इन ज्ञान के स्रोतों को सुरक्षित नहीं किया गया तो, यह हमारे समाज के लिए एक बहुत बड़ा बौद्धिक नुकसान होगा। क्योंकि हर पाण्डुलिपि की निश्चित आयु होती है और अगर हमने उसे संरक्षित नहीं किया तो, वह ज्ञान विलुप्त हो जाएगा और अगर ऐसा होता है तो, यह हमारे लिए नालंदा विश्वविद्यालय के जलने के बराबर त्रास्दी होगी। इसलिए इस ज्ञान को बचाने के लिए यथाशीघ्र प्रयास जरूरी हैं।
बृज साहित्य एवं इसके संरक्षण के लिए प्रमुख व्यक्तियों को प्रोत्साहन दिया गया। संगोष्ठी में बृज साहित्य के चिंतक, लेखक एवं प्रख्यात विद्वान श्री वृन्दावन बिहारी जी को ’मेरो बृज ज्ञान शिरोमणि सम्मान’ से अलंकृत किया गया और युवा पीढ़ी के उभरते हुए विख्यात बृज लेखक डॉ. राजेश कुमार शर्मा को ’मेरो बृज ज्ञान गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि वीआरआई के निदेषक डॉ. राजीव द्विवेदी ने संगोष्ठी की सार्थकता पर प्रकाश डाला और विशिष्ट अतिथि गीता षोध संस्थान के ब्रज संस्कृति विषेशज्ञ डॉ. उमेश चंद्र शर्मा एवं वरिश्ठ पत्रकार चंद्र प्रताप सिंह सिकरवार ने बृज संस्कृति और ज्ञान की व्यापकता और महत्ता पर प्रकाश डाला।
जीएलए के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता एवं कुलसचिव अशोक कुमार सिंह ने इस संगोष्ठी में अपना सम्पूर्ण सहयोग दिया और कहा कि जीएलए विश्वविद्यालय बृज साहित्य, संस्कृति, ज्ञान संरक्षण एवं विकास के लिए प्रतिबद्ध है। संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों एवं संस्थानों से आये 110 प्रतिनिधियों ने भाग लिया एवं 15 शोधार्थियों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
जीएलए विष्वविद्यालय के प्रो. आशीष शुक्ला, डॉ. सुनीता पचार, सुशील कुमार सिंह एवं समस्त पुस्तकालय स्टाफ और डा. भीमराव अम्बेडकर विष्वविद्यालय के प्रो. उमेष चंद्र षर्मा एवं अभय वषिश्ठ, डा. किरण चौधरी, राम कुमार शर्मा एवं मेरो ब्रज ज्ञान परिशद का इस कार्यक्रम को सफल बनाने में उल्लेखनीय योगदान रहा। उपपुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. शिव सिंह ने संगोष्ठी का संचालन किया और बृज साहित्य संरक्षण में जीएलए पुस्तकालय के प्रयासों के बारे में बताया।

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