मथुरा। पिछले दिनों नरेंद्र मोदी और पूरी भाजपा ने इमरजेंसी के खिलाफ खूब भड़ास निकाली तथा कहा कि इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी थोपकर पूरे देश को जेल के रूप में तब्दील कर लोकतंत्र का गला घोंट डाला। बात तो सही है और कहने और सुनने में भी बड़ी अच्छी लगती है किंतु इसका दूसरा पहलू भी देखना चाहिए।
मेरा मानना कुछ और है यानी इमरजेंसी के खिलाफ आग उगलने वालों के विचारों से एकदम उलट। मैं डंके की चोट पर कहता हूं की यदि आज देश में इमरजेंसी होती तो शायद हमारा देश चीन से भी अधिक शक्तिशाली होता। मेरी बात से कुछ लोगों को पीड़ा हो सकती है। ये वे लोग होंगे जो इमरजेंसी के दौरान त्रस्त हुए होंगे यानी जेल गए होंगे या अन्य किसी प्रकार सताए हुए होंगे या फिर पार्टी के दृष्टिकोण की वजह हो।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इमरजेंसी में ज्यादतियां नहीं हुई। ज्यादतियां हुईं और खूब हुईं अनेक निर्दोष लोग जेल गए। बूढों व साधु महात्माओं तक की जबरदस्ती नसबंदी हुई। पुलिस व सरकारी अफसरों का रवैया तानाशाही हो गया। कांग्रेसियों का ऐसा बोल वाला हो गया कि उन्हीं की बात सुनी जाती हर क्षेत्र में।
अब दूसरे पहलू पर भी गौर करें। इमरजेंसी में भ्रष्टाचार और अपराधों की स्थिति गधे के सिर पर सींग जैसी हो गई। रेल समय पर चलतीं ज्यादातर बिफोर टाइम प्लेटफार्म पर आ जातीं। हर आदमी नियम कानून का पालन करने लगा। रिश्वतखोरी के लिए सबसे अधिक बदनाम पुलिस महकमा तक एकदम सुधर गया यानी एक पैसा भी कोई नहीं लेता था।
आज हम सीना तानकर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्री होने का जो गुमान करते हैं, मेरी नजर में तो हमें शर्म से सर झुका लेना चाहिए। आज जो कुछ हमारे देश में हो रहा है उसके बारे में बताने की जरूरत नहीं है। सच में पूंछा जाए तो इमरजेंसी ऐसी दवा थी जैसे कुनैन। पुराने समय में कुनैन का प्रयोग बहुत होता था वह बहुत कड़वी तो होती थी किंतु रोगी के लिए रामबाण रहती।
भले ही इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी अपने आप को सत्ता पर काबिज रखने के लिए लगाई किंतु यह देश के लिए अमर बूटी से कम सिद्ध नहीं हुई। यह भी सच है कि इंदिरा गांधी दूध की धुली हुई नहीं थीं। वे अपने सामने रोडा़ बनने वालों को ठिकाने लगाना भी अच्छी तरह जानती थीं। यानी साम, दाम, दंड, भेद की विद्या में पारंगत थीं। कहते हैं की दुकानदारी नर्मी की और हाकिमी गर्मी की। इंदिरा गांधी एक दबंग महिला थीं वह शासन चलाना जानती थीं।
इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि इंदिरा गांधी की ही कुब्बत थी जो पाकिस्तान के दो टुकड़े करके बांग्लादेश बनवा दिया। यह भी मानना होगा कि उस दौरान पंजाब में खालिस्तानीं उग्रवादियों ने देश को दो टुकड़ों में बांटने का जबरदस्त उपद्रव मचा रखा था। यह इंदिरा की ही हिम्मत थी कि उग्रवादियों में भुस भर कर रख दिया। भले ही इसके लिए उन्हें अपनी जान की कीमत चुकानीं पड़ी।
यह भी कटु सत्य है कि इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरू की वजह से भारत के दो टुकड़े हुए। यदि वे प्रधानमंत्री बनने की लालसा का त्याग कर जिंन्ना को ही प्रधानमंत्री बन जाने देते तो भारत का विभाजन नहीं होता। अब एक और कटु सच यह भी कहना चाहूंगा कि आज देश की दुर्गति के लिए मोहन दास करम चंद गांधी जिम्मेदार हैं। उनकी वजह से सीनियर होते हुए भी सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री न बनाकर अपने मुंह लगे जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनवा दिया। ये दोनों ही एक ही बिरादरी के थे यानी नारी प्रेमी।
अब लगे हाथ एक और महा कटु सच कहे बगैर नहीं रहा जा रहा। वह यह कि आजादी मिलते ही गांधी नेहरू आदि कांग्रेसियों ने आरक्षण का जहरीला बीज बो दिया। उस समय कहा गया कि नींची जातियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए दस वर्ष के लिए आरक्षण किया जा रहा है। अब सोचिए कि क्या यह आरक्षण कभी समाप्त होगा? इस आरक्षण रूपी दैत्य ने ही देशवासियों को दो भागों में बांट ही नहीं दिया बल्कि देश की तरक्की में ब्रेक भी लगा दिया। सभी जानते हैं कि यह आरक्षण नींची जातियों के वोट हड़पने के लिए था। अब प्रसंग की भटकन से अलग होकर सही मुद्दे पर आगे बढ़ता हूं।
अगर इमरजेंसी की बात चली है तो संजय गांधी की चर्चा न करना उनके साथ अन्याय होगा। संजय गांधी ने देश की कमान को अप्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले लिया था। इमरजेंसी में देश जिस प्रगति की ओर बढ़ रहा था वह दुर्लभ और ऐतिहासिक थी। उसे प्रगति में संजय का योगदान भी कमतर करके आंकना भी नाइंसाफी होगी। अंत में एक बात और वह यह कि संजय गांधी में हिंदुत्व कूट-कूट कर भरा हुआ था। वह गाल बजाने वाले हिंदूवादी नहीं थे बल्कि प्रैक्टिकल में हिंदुत्व का अलख जगाने वाले थे। उनकी परछाई पुत्र वरुण में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। अब आखिर में मुझे इस बात का फक्र है कि इंदिरा और संजय ने कुछ ऐसे विलक्षण काम कर दिखाऐ जो आज तक कोई नहीं कर पाया। यही कारण था कि अटल जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा भवानी की उपमा दी थी।
इसका मतलब यह नहीं कि मैं कोई कांग्रेसी हूं। मैं तो नरेंद्र मोदी का मुरीद हूं किंतु विश्लेषण गुंण दोष के आधार पर होना चाहिए। भले ही मैं नरेंद्र मोदी का मुरीद हूं किंतु उनकी कुछ बातें मुझे बेहद अखरती भी हैं। जैसे मुलायम सिंह को पद्म विभूषण से नवाजा जाना जैसे अतीत में योगी आदित्यनाथ जैसे अनमोल हीरे को काकस के इशारे पर निशाने पर लेने का असफल प्रयास किया जाना। अब आखिर में इमरजेंसी जिंदाबाद और ऐसा दिखावटी और मिलावटी लोकतंत्र जो देश को पुनः गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने की ओर धकेल रहा है मुर्दाबाद उद्घोष के साथ समापन करता हूं।
विजय गुप्ता की कलम से