विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। बात लगभग 4 दशक पुरानी है। एक बार कुंवर नटवर सिंह जो इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री थे, मथुरा से लोकसभा का चुनाव लड़े, पर भी जीते नहीं हार गए। उस दौरान में “आज” अखबार को देखता था। उन दिनों “आज” की बड़ी धमक थी। हुआ यह कि चुनाव के दौरान मैं अपने स्वभाव के अनुसार ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ता जब कुंवर नटवर सिंह को नश्तर लगाया जा सके।
मेरी इस हरकत से नटवर सिंह के खेमे में बेचैनी बढ़ने लगी। नटवर सिंह के चुनाव प्रभारी थे स्व० श्री मदन लाल अग्रवाल भट्टे वाले। वे भरतपुर में नटवर सिंह के साथ पढ़े हुए थे। उनकी लड़की रीता मेरे साथ पढ़ी थी। मदन लाल जी का मेरे पास फोन आया कि “बेटा विजय बहुत दिन से मिलना नहीं हुआ है, मेरी तुमसे मिलने की इच्छा है। मैंने कहा ठीक है आता हूं आपसे मिलने और फिर मैं अगले दिन उनके घर जा पहुंचा।
जिस समय मैं डैंपियर नगर स्थित उनके घर पहुंचा संयोग से नटवर सिंह जो उस समय भी विदेश मंत्री थे, की पत्नी श्रीमती हेमेंद्र कौर जो पटियाला के महाराजा की बेटी थीं तथा राजकुमारी के नाम से विख्यात थीं, भी अंदर मौजूद थीं। मेरे आने की सूचना जैसे ही अंदर पहुंची, राजकुमारी जी तेजी से बाहर आईं और बगैर मुझसे नजरें मिलाये यानी अनभिज्ञता का नाटक करते हुए गाड़ी में बैठीं और फुर्र हो गईं। आगे का हाल बताने से पहले बता दूं कि राजकुमारी जी बड़े अच्छे डीलडोल की तेज तर्रार और धाकड़ जाटनी थीं। थीं तो वे औरत पर उनके सामने अच्छे-अच्छे मर्दों की भी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। एक बार तो उन्होंने राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष गिरिराज तिवारी में भी सार्वजनिक रूप से झापड़ जड़ दिया था और वे गाल सहलाते रह गए। यह मामला अखबारों की सुर्खी भी बना।
अब आगे का हाल बताता हूं, जो बड़ा रोचक है। नटवर सिंह जी की धर्मपत्नी के जाने के बाद जब मैं अंदर पहुंचा तो मदनलाल जी व उनकी धर्मपत्नी ने मुझे बड़ा स्नेह दिया। कुछ इधर-उधर की बातें और चुनावी चर्चा के बाद मदन लाल जी ने मेरे हाथ में लगा बैग जिसमें मेरी डायरी व अन्य कागजात रहते थे, जबरदस्ती ले लिया और उसमें 100-100 के नोटों की आधी गड्डी यानी 5000 रुपए रखकर बोले कि हमारी तरफ से आशीर्वाद स्वरुप रख लो। मैं भौंचक्का सा रह गया तथा पूंछा कि ये किस बात के? इस पर उन्होंने कहा कि “ज्यादा सवाल जवाब मत कर, बस रख ले तू मेरी बेटी रीता के साथ पढ़ा हुआ है। अतः मेरे बेटे के समान है, मैं तेरा गार्जियन जैसा हूं। तेरे भले की बात सोच रहा हूं।
मैंने दो टूक मना करते हुए कहा कि मैं नहीं लूंगा, इस पर वे जिद पड़ गए और फिर अपनीं कसम दिलाकर बोले कि तुझे मेरी सौगंध है। यदि अब भी नहीं लेगा तो समझूंगा कि तू मेरी सौगंध की भी कोई अहमियत नहीं समझता। उन्होंने यह भी कहा कि ये तो तेरे लिए अलग से हैं तथा अखबार को विज्ञापन भी खूब दिलवाऊंगा क्योंकि मैं तेरा गार्जियन जो हूं और तेरे भले की ही सोचता हूं। खैर अंत में हार झक मारकर मुझे 5000 रुपए लेने ही पड़े। फिर थोड़ी बहुत देर बाद जब मैं चलने को हुआ तब मैंने मदन लाल जी से कहा कि अब तो आप की कसम पूरी हो गई? इस पर वे बोले कि बिल्कुल हो गई।
फिर मैंने उनसे कहा कि अब मैं आपको अपनी कसम दिलाकर कह रहा हूं कि अब आप इन्हें वापस रख लो। वे बोले कि फिर क्या फायदा हुआ? इस पर मैंने उनसे कहा कि आपकी कसम पूरी करने को मैंने रुपए कुछ देर को रख लिए थे, पर अब आप भी मेरी कसम पूरी कर दो। इस पर वे बोले कि यह भी कोई बात हुई? जब वे ज्यादा आनाकानी करने लगे तो मैंने उनसे कहा कि आप मेरे कैसे गार्जियन हो? यदी मैं कोई गलत काम करता हूं तो गार्जियन होने के नाते आपको मुझे रोकना और टोकना चाहिए लेकिन जब मैं सही बात कह रहा हूं तो आप उल्टे मुझे ही गलत काम के लिए मजबूर कर रहे हैं। क्या यह उचित है?
इस पर वे निरुत्तर हो गए और उन्होंने केवल यही कहा कि मैडम ने मुझे यह जिम्मेदारी दी है। जब उन्हें यह पता चलेगा तो बुरा मानेंगी। मैंने कहा कि मैडम से मैं निपट लूंगा। इसके बाद तो मैंने नटवर सिंह को नश्तर लगाना छोड़ इंजेक्शन देने शुरू कर दिए। एक-दो दिन ही हुए होंगे की रात्रि के लगभग 8-9 बजे के करीब सफेद रंग की एक एंबेसडर कार हमारे घर के आगे रुकी और ऊपर मेरे पास सूचना आई कि मैडम यानी नटवर सिंह की पत्नी आपसे मिलने आईं हैं। अब तो मेरी हवा खराब हुई और सोचा कि लो बच्चू अब तुम्हारी शामत आई। गिर्राज तिवारी मैं तो एक झापड़ पड़ा था और अब पता नहीं मुझे कितने पड़ेंगे?
खैर में तरह तरह की शंकाएं मन में लिए नींचे पहुंचा और बड़े सम्मान के साथ हाथ जोड़े तथा अच्छी तरह झुक कर उन्हें नमस्कार किया। राजकुमारी जी की रुख रंगत उग्र न होकर शांत और सौम्य थी। उन्होंने कहा कि आपसे मिलने की इच्छा हुई इसलिए आई हूं। उनके साथ उस जमाने के वरिष्ठ अधिवक्ता स्व० श्री बाल कृष्ण शर्मा जो बाढ़पुरा में रहते थे तथा उस समय के जिला जज श्री गंगा शरण शर्मा के पुत्र अमित शर्मा तथा राजकुमारी जी के निजी सहायक भी थे। मैं उन सभी को बड़े सम्मान के साथ घर में ऊपर लाया तथा बातचीत हुईं।
मैडम जी ने बड़े स्नेह और आत्मीयता से कहा कि अब जो कुछ अतीत में हुआ उसे भूल जाओ व नाराजी दूर करो, यह बात तो सही है कि हम लोगों ने आप को पहचानने में भूल की किंतु अब आगे ऐसी कोई गलती नहीं होगी। उन्होंने यह भी कहा कि अब आप हमारा सहयोग करो। इसी आशा के साथ आई हूं। उनके इस व्यवहार से मैं पानीं पानीं हो गया और इंजेक्शन लगाना बंद कर दिया। फिर उसके बाद यह हुआ कि नटवर सिंह की ओर से मुझे आज अखबार के लिए भरपूर विज्ञापन मिले। यानीं अमर उजाला से भी ज्यादा।
मेरे लिए यह सौदा बहुत बढ़िया रहा क्योंकि 5000 से कई गुना ज्यादा तो मेरा कमीशन बना तथा ऊपर से ईमानदारी का चोला भी धारण किए रहा। हर्द लगै ना फिटकरी रंग चोखौ ही चोखौ। यानी आम के आम और गुठलियों के दाम।