- श्रावण मास की एकादशी से रक्षाबंधन तक चलेगा झूला महोत्सव
- पंद्रह फीट ऊंचे हिण्डोले में दर्पण के माध्यम से झूलते हैं दाऊजी महाराज
बलदेव : श्रावण मास के महीने में झूला झूलने की परम्परा पहले की अपेक्षा कम होती जा रही है, पर देवालयों मे देवताओं को आज भी झूला-झूलाया जाता है। वर्षों से दाउजी मंदिर में हिंडोला उत्सव की अनूठी परंपरा यथावत कायम है। विश्वविख्यात श्री दाऊजी महाराज के मंदिर में सूर्य अस्त होते ही राधे झूलन पधारो, झुक आये बदरा… जैसे सुरमयी आवाजों से दाऊजी मंदिर प्रांगण गूंज उठता है। यह सुरमयी आवाज मंदिर बंद होने तक सुनाई देती है।
श्रावण मास की कृष्ण पक्ष एकादशी की बात ही निराली है, जिसमें कोयल की मीठी कूक, मोर का नृत्य पूरे वेग से बहती यमुना मन को आनंदित कर देती है। ब्रज मंडल में ब्रज के राजा ठाकुर श्रीदाउजी महाराज के मंदिर में हिंडोला उत्सव की झांकियां भक्तों को प्रेम संदेश प्रदान करती हैं। भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलदाऊजी महाराज जिन्हें श्रद्धालु प्रेमवश दाऊजी कहते हैं के झूलना उत्सव की बात ही निराली है। श्रावण मास की एकादशी से रक्षाबंधन तक लाला ठाकुर के स्वरूप को हिंडोले में झूलाकर परंपरा निर्वहन किया जाता है।
बलदेव जी मंदिर में हिंडोला उत्सव की अनूठी परंपरा है। दाऊजी महाराज का विशाल व अत्यन्त मनोहारी विग्रह लगभग आठ फुट उंचा और करीब साढे तीन फुट चौड़ा है। दाउजी महाराज के विशाल विग्रह पर सात नाग भी हैं। विशाल विग्रह को झूला-झुलाना असंभव है। ऐसे में श्रीदाऊजी महाराज के विग्रह के ठीक सामने जगमोहन प्रांगण में हिण्डोला स्थापित किया जाता है। लगभग पंद्रह फुट उंचे हिण्डोले में ठाकुर श्रीदाऊजी महाराज को उनके स्वर्ण जडित दर्पण के माध्यम से झूला-झुलाया जाता है। आरती से पूर्व दर्पण में उनकी छवि को झुलाया जाता है। आरती के पष्चात् उनके मुकुट और मुरली को हिण्डोले में रखा जाता है, जिसमें ठाकुर बलदेवजी की छवि दिखाई देती है।
अनूठी है समाज गायन की परंपरा
बलदेव : श्रावण मास में दाउजी महाराज के झूला-झूलने के साथ-साथ समाज गायन की अनूठी परंपरा है। पण्डा समाज के लोग एकजुट होकर झांझ-मजीरा बजाकर श्रीदाउजी और माता रेवती की समाज गायन करते हैं। इस अवसर पर झांझ-मजीरा की धुन को सुनकर दर्शक भी भाव-विभोर हो उठते हैं, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शकों की भीड लग जाती है।