Monday, November 11, 2024
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संस्कृति विश्वविद्यालय में मना ‘पुस्तकालय दिवस’, बताई उपयोगिता

मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय ‘पुस्तकालय दिवस’ का आयोजन हर्षोल्लास के साथ किया गया। डा. एसआर रंगनाथन की जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने पुस्तकालयों के महत्व और शिक्षण संस्थाऩों में इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एमबी चेट्टी ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि पुस्तकालय एक बहुत ही उपयोगी मंच है जो सीखने के इच्छुक लोगों को एक साथ लाता है। यह हमें सीखने और अपने ज्ञान का विस्तार करने में मदद करता है। हम पुस्तकालय से अपनी पढ़ने की आदत विकसित करते हैं और ज्ञान के लिए अपनी प्यास और जिज्ञासा को संतुष्ट करते हैं। यह एक व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास में मदद करता है।
उन्होंने कहा कि पुस्तकालय शोधकर्ताओं के लिए सूचना के प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोत प्रदान करते हैं। वे पुस्तकालय में मौजूद सामग्री का उपयोग करके अपने शोधपत्र पूरे कर सकते हैं और अपनी पढ़ाई कर सकते हैं। इसके अलावा पुस्तकालय अकेले या समूहों में बिना किसी व्यवधान के अध्ययन करने के लिए एक बेहतरीन जगह है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. के. के. सिंह ने डिजिटल युग में पुस्तकालयों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डिजिटलाइजेशन ने पुस्तकालयों को और सामर्थ्यवान बना दिया है। आज पुस्तकालयों में सारा संसार मौजूद है और विद्यार्थियों के लिए ये बहुत ही सहज ज्ञान का केंद्र बन गए हैं। संस्कृति विवि के पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. बृजेश कुमार वर्मा ने कहा कि पुस्तकालय हमारी एकाग्रता के स्तर को बढ़ाने में भी मदद करते हैं। चूँकि यह एक ऐसी जगह है जहाँ बिलकुल सन्नाटा होना ज़रूरी है, इसलिए कोई भी व्यक्ति एकाग्रता के साथ पढ़ाई कर सकता है। यह हमें अपनी पढ़ाई पर ज़्यादा कुशलता से ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। पुस्तकालय हमारी सोच को भी व्यापक बनाते हैं और हमें आधुनिक सोच के प्रति ज़्यादा खुला बनाते हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय लाइब्रेरी एडवाइजरी कमेटी की चेयरपर्सन डॉ. कंचन कुमार सिंह, निशांत मधुकर, शिवम पचौरी, दीनदयाल, गौरव शर्मा, सुश्री श्रद्धा मिश्रा, सुश्री स्वाति शुक्ला और सुश्री कविता जदौन, राकेश शर्मा (उप पुस्तकालयाध्यक्ष), पवन कुमार (सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष), समस्त पुस्तकालय कर्मचारी जैसे रघुवीर, दशरथ, भगत सिंह, हरीशचंद्र और लोकेश आदि उपस्थित रहे।

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