Tuesday, September 17, 2024

संत का एक साल

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। हमारे जिलाधिकारी संत शैलेंद्र कुमार सिंह को यहां आऐ पूरा एक वर्ष हो चुका है। पिछली जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व ही इन्होंने चार्ज लिया था। अब बात आती है कि ये तो अधिकारी हैं संत कैसे हो गए? संत महात्मा या साधु सन्यासी तो वे होते हैं जो गेरुआ वस्त्र पहने हों। गले में रुद्राक्ष की मोटी सी माला और माथे पर चंदन का लेप तथा बीच में मोटी सी बिंदी हो। इसके अलावा खोपड़ी घोट-मोट अथवा लंबी-लंबी जटाऐं हों।
     हां साधु संत का स्मरण आते ही कुछ ऐसी ही छवि दिमाग में उभरती है। लेकिन वस्तु स्थिति ऐसी नहीं कि संतों की वेरिफिकेशन सिर्फ इसी रूप में हो। संत तो पेंट, शर्ट और धोती कुर्ता में भी हो सकते हैं और संत दिखने के लिए दुनिया भर का स्वांग रच कर संत रूप में शैतान भी हो सकते हैं। हो सकते क्या ज्यादातर ऐसे ही हैं। इन ढोंगी पाखंडियों की भीड़ में सच्चे संत तो इक्का दुक्का ही होंगे।
     अब मूल मुद्दे पर आता हूं। कहने का मतलब है कि मथुरा जनपद का यह सौभाग्य है कि जिलाधिकारी के रूप में ग्रहस्थ के एक दुर्लभ संत मिले हैं और उन्होंने अपना एक वर्ष पूरा कर लिया है। इनका लगभग एक वर्ष का कार्यकाल और शेष है रिटायर होने में। ईश्वर, योगी आदित्यनाथ और परम पूज्य देवराहा बाबा के परम प्रिय शिष्य संत शैलजा कांत जी की कृपा रही तो शायद सेवा निवृत्ति का विदाई समारोह मथुरा में ही होगा।
     मैं संत शैलेंद्र कुमार जी को तभी से जानता हूं जब ये मथुरा के सिटी मजिस्ट्रेट थे। उसी समय मैंने महसूस किया कि यह कोई विलक्षण व्यक्ति हैं। उनकी ईमानदारी, सज्जनता, सरलता, दयालुता और कर्मठता आदि हर किसी का दिल जीत लेती हैं। जब ये मथुरा से पदोन्नत होकर अलीगढ़ के ए.डी.एम. बनकर गए तब उनके साथ हृदय विदारक घटना घटी यानी इन्हें पत्नी वियोग सहना पड़ा। शुभचिंतकों ने इनसे बहुत कहा कि दूसरी शादी कर लो किंतु इन्होंने दो टूक मना कर दिया। मुझे याद है कि मैंने भी फोन करके दूसरी शादी करने के लिए कहा पर इन्होंने साफ इनकार कर दिया।
     इनका मानना था कि यदि मैं दूसरी शादी कर लूंगा तो दोनों छोटे-छोटे बच्चों के साथ न्याय नहीं हो पाएगा। भरी जवानी में त्याग की ऐसी दुर्लभ भावना रखने वाला इंसान संत से भी अधिक ऊंचाई रखने वाला ही होगा। एक और बात जो इनके त्यागी तपस्वी और विरक्त जीवन की झलक दिखाने वाली मुझे पता चली है। हालांकि यह किसी अधिकृत सूत्र से नहीं बल्कि स्टाफ में होने वाली कानाफूंसी वाली चर्चा से छनकर आई है।
     अलीगढ़ में उनके यहां एक महिला फॉलोअर कार्यरत थी जो अति सुंदर थी। पत्नी वियोग के बाद इन्होंने बड़ी विनम्रता के साथ उससे कहा कि आप कहीं दूसरी जगह कम तलाश लो, जब तक दूसरा काम न मिले तब तक यदि कुछ आर्थिक मदद की जरूरत हो तो बता देना। उस महिला ने आर्थिक मदद नहीं ली और उसी दिन से काम छोड़ दिया तथा शैलेंद्र जी ने उसकी जगह एक अन्य व्यक्ति को रख लिया। बताने की जरूरत नहीं है कि इसके पीछे इनका कितना बड़ा संतत्व था। इस घटनाक्रम की मैंने इनसे पुष्टि नहीं की क्योंकि ये साफ मना कर देते कि भाई साहब इसे छापना मत यह निजी बात है। किसी के निजी जीवन की बातों को सार्वजनिक करना अपराध की श्रेणी में आता है। यह जानते हुए भी मैं अपराध कर रहा हूं, इसके लिए मैं शैलेंद्र जी से क्षमा मांगता हूं। मेरा उद्देश्य इनके अंदर मौजूद एक दिव्य पुरुष की छवि से लोगों को रूबरू कराना है। ईश्वर इन्हें शतायु करें तथा हमेशा सुख शांति इनके इर्द-गिर्द बनी रहे।

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