विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। पिछले काफी समय पूर्व मैंने अपनी फेसबुक पर एक लेख लिखा था कि “जघन्य अपराध करने वालों के परिवारी जनों को भी दंडित किये जाने का प्रावधान होना चाहिए”। मेरी यह बात कुछ लोगों को रास नहीं आयी किंतु चीन सरकार द्वारा बच्चों के अपराध पर माता-पिता को भी सजा दिए जाने का कानून बनाया जा रहा है, जो इस बात का द्योतक है कि मेरी बात में दम है।
मेरा मानना है कि चाहे बच्चे हों या बड़े जो भी अपराध करे उनके घर वालों को भी कुछ न कुछ सजा अर्थात उनकी भी जवाबदेही होनी चाहिए। यदि हमारा समाज भी इस दिशा में आगे बढ़ता है तो अपराधों में कमी जरूर आएगी क्योंकि फिर लोग न सिर्फ अपनी औलादों बल्कि अन्य परिजनों को भी अपराध करने से रोकेंगे।
पुराने जमाने में सामूहिक जुर्माना लगाये जाने का चलन भी इसी बात का द्योतक था। इसके अलावा मैं तो यहां तक मानता हूं कि अड़ौस पड़ौस के लोगों तक को अदालतें तारीखों पर बुलवाकर पूछताछ करें व उनकी भी जवाबदेही सुनिश्चित करें ताकि लोग अपराध करने वालों को रोका टोकी करें कि तुम्हारी वजह से हमें भी मुसीबत झेलनी पड़ेगी। अतः यह सब गलत कृत्य मत करो यानी और कुछ नहीं तो दवाब तो बनेगा ही।
हालांकि मेरी बातों को लोग गंभीरता से नहीं लेंगे उल्टे उपहास करेंगे किंतु यह कटु सत्य है कि अपराधियों का निर्माण करने के पीछे उनके मां-बाप व अन्य परिजनों के अलावा पड़ौसी पड़ौसी भी कुछ न कुछ उत्तरदायी जरूर होते हैं। हम लोग यदि जो भी कुछ गलत हो रहा हो उसे चुपचाप देखते रहने या मुंह फेरने की आदत के बजाय जितनी भी हो सके यानी यथासंभव अपनी जिम्मेदारी या यौं कहिए कि सजगता निभाने के कर्तव्य का पालन करें तो समाज व देश की दिशा बदल सकती है।
यह बात मैं केवल कह ही नहीं रहा हूं बल्कि फटे में पैर देने का काम अपनी सामर्थ्य के अनुसार किशोरावस्था से ही कर रहा हूं। इसी चक्कर में अनेक बार मुझे दुश्मनीं भी गले लगाने पड़ जाती है। चाहे कोई अपराध, अन्याय या उद्दंडता हो उसे देखकर मैं अपने आपको को रोक नहीं पाता। हमारे निवास नलव नलकूप के आसपास का माहौल खुद ब खुद इस बात की पुष्टि करता है।