रिपोर्ट राघव शर्मा
बरसाना राधाष्टमी महोत्सव के बाद गुरुवार को बरसाना में बूढ़ी लीला महोत्सव की शुरुआत हो गईं। ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित मोरकुटी पर राधाकृष्ण के स्वरूपों द्वारा मयूर लीला की गई। मान्यता है कि एक समय कुंवरि राधिका मोरकुटी आई, नृत्य मयूर कौ देख उत्कंठा जाइ। एक बार राधारानी अपनी सखियों के साथ विचरण करती हुई गहवरवन में मोर देखने गई थी। लेकिन वहां एक भी मोर न दिखने पर वो मायूस हो गई। बृषभान नन्दनी को मायूस देख खुद भगवान श्रीकृष्ण मोर का रुप धारण कर नृत्य करने लगे। इस दौरान मोर को नाचता देख राधारानी उसे लड्डू खिलाती है तो तभी उनकी सखिया पहचान जाती है कि खुद श्याम सुंदर मयूर बन के आयौ है ऒर कहती है राधा ने बुलायो कान्हा मोर बन आयो। वहीं स्वामी हरिदास जी द्वारा भी मयूर लीला का वर्णन अपने पदों में कुछ इस प्रकार किया गया। नाचत श्याम मोरन संग मुदित ही श्याम रिहझावत, ऐसी कोकिला अलावत पपैया डेत स्वर ऐसो मेघ गरज मृदंग बजावत। मयूर लीला का मंचन देख श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे। राधाकृष्ण के जयकारों से मोरकुटी गूंज उठा।
मोरकुटी स्थल के महंत स्वामी जयदेव दास ने बताया कि मोरकुटी वहीं प्राचीन लीला स्थली है। जहां भगवान श्याम सुंदर द्वापरयुग में राधा के लिए मोर बने थे। आज भी यह लीला भाद्रपद सुदी नवमीं के दिन होती है।