Saturday, September 28, 2024
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पप्पन जी के एक वाक्य से ऐसी शर्मिंदगी हुई कि धरती फट जाय और मैं उसमें समा जाऊं

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। घटना लगभग 20-25 साल पुरानी है। श्री ग्रुप वालों के यहां कोई कार्यक्रम था। श्री ग्रुप को गगनचुंबी ऊंचाई देने वाले सुदीप अग्रवाल जिन्हें दुनिया वाले पप्पन के नाम से जानते हैं, ने किसी से मेरा परिचय कराते हुए कुछ ऐसी बात कह दी जिससे ऐसी शर्मिंदगी हुई कि धरती फट जाय और मैं उसमें समा जाऊं।
     हुआ यह कि कार्यक्रम में जैसे ही मेरा और पप्पन जी का आमना सामना हुआ उन्होंने साथ में खड़े किसी व्यक्ति से मेरा परिचय कराते हुए कहा कि “ये हमारे मकान मालिक हैं। जिस व्यक्ति की गणना मथुरा ही नहीं उत्तर भारत के प्रमुख बिल्डरों में होती हो, जिसके द्वारा बनाई गई अनगिनत कॉलोनियों के घरों की छत के नींचे लाखों लोग रहते हों, वह इंसान मध्यम वर्गीय किसी मामूली से व्यक्ति को अपना मकान मालिक बताये यह अकल्पनीय बात है।
     बस इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पप्पन नाम के इस इंसान की क्या क्वालिटी होगी? इसका कद कितना विराट होगा? इसकी सोच कितनी दूरगामी होगी? इसकी सौम्यता, सज्जनता, उदारता के तो कहने ही क्या। इसके अंदर अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का अंदाजा श्री ग्रुप द्वारा बनाई गई कॉलोनियों के नामों से ही लग जाता है।
     अब इस बात पर आता हूं कि पप्पन जी ने मुझे अपना मकान मालिक क्यों बताया? दरअसल बात यह थी कि पुराने जमाने में पप्पन जी के पूर्वज हमारे पूर्वजों के किराएदार थे। इसी कारण पप्पन जी ने मेरे और अपने बीच किराएदार और मकान मालिक का रिश्ता जोड़ लिया। भले ही इस बात को 20-25 साल हो गए किंतु जब-जब पप्पन जी के वे शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं, उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान का ज्वार भाटा उमड़ पड़ता है। भले ही पप्पन जी मुझसे उम्र में काफी छोटे हैं किंतु उनके अंदर की विराटता के आगे में नितांत बौना हूं।
     इंसान अपने कर्मों से बड़ा छोटा या अच्छा बुरा होता है। पप्पन जी के अंदर मैंने कुछ विलक्षणताऐं महसूस की हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इनके अंदर सबका साथ सबका विकास वाली भावना बड़ी दुर्लभ है, जो आज के जमाने में दिखाई नहीं देती। भले ही श्री ग्रुप को गगनचुंबी ऊंचाई देने वाले मास्टरमाइंड ये ही हैं। किंतु अपने घर परिवार वालों को पूरे सम्मान से अपने साथ जोड़ रखा है। घर परिवार के अलावा जो पार्टनर हैं उनको भी अपने से अलग नहीं समझते अपने से ज्यादा उनका ख्याल रखते हैं। इसी श्रेणीं में कर्मचारी भी आते हैं।
     यदि इनके अंदर यह दुर्लभ सोच न होती तो शायद श्री ग्रुप की भी वही गति होती जो “कर्मयोगी” वालों की अतीत में हो चुकी है। किसी जमाने में “कर्मयोगी बिल्डर्स” का बड़ा जलवा था किंतु आपा पूती की भावना ने सब कुछ मटिया मेट करके रख दिया पुराने लोग सब जानते हैं, कर्मयोगी के हश्र की कहानी।
     यह सब लिखकर मैं श्री ग्रुप की वकालत नहीं कर रहा। श्री ग्रुप की गेट बंद कॉलोनियों में बड़ी-बड़ी वारदातें भी हो चुकी हैं। एक ओर जहां श्री ग्रुप की कॉलोनियों में रहने वाले अनेक लोग बड़ी सुकून की जिंदगी जी रहे हैं। वहीं आलोचकों की भी कमी नहीं है। तमाम लोग रुष्ट भी हैं। नोटबंदी व जी.एस.टी. वगैरा का जब भूचाल आया था तब अच्छे अच्छों की हवा बिगड़ गई थी और उससे श्री ग्रुप भी अछूता नहीं रहा। भगवान की कृपा और पूर्वजों के आशीर्वाद का ही परिणाम रहा कि मझधार में फंसी श्री ग्रुप की डूबती नैया को पप्पन जी किनारे पर ले आये। ईश्वर इन्हें शतायु करें।

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