विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। वृंदावन में सैकड़ो हरे पेड़ों और उन पर बसेरा करने वाले हजारों परिंदों के हत्यारे बड़े राक्षस हैं। दो लोग आपस में बातचीत कर रहे थे। एक ने कहा कि देखो बड़े लोगों की करतूत कितनी निम्न स्तर की है। दूसरे ने जवाब दिया के इन्हें बड़े कहकर अपने मुंह को क्यों गंदा कर रहे हो? ये बड़े कहां है? अगर बड़े हैं तो बड़े राक्षस हैं।
कहने सुनने में तो बात बड़ी साधारण सी लगती है, किंतु अगर हम इस दिशा में गंभीरता से मनन करें तो लगेगा की बात बड़ी है। बड़ी नहीं बहुत बड़ी है। बहुत बड़ी के अलावा बड़े ही मार्के की है। हम पैसे की तृष्णा में किस हद तक नींचे जा चुके हैं। ऐसा लगता है कि अब तो कलयुग का प्रभाव अपने चरम पर है। धन लिप्सा की अंधी दौड़ यह नहीं देख रही कि जो कुछ हम कर रहे हैं, वह हमारे लिए ही घातक है। हमारा जन्म जन्मांतर बिगड़ रहा है। हमारी अगली पीढ़ी के संस्कार बिगड़ रहे हैं। पता नहीं इस प्रकार के जघन्य पापों को करने के बाद आगे चलकर हमारा जन्म किस योनि में होगा और क्या-क्या भोग हमें भोगने पड़ेंगे।
भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि नींच कर्म करने वालों को मैं बारंबार शूकर कूकर आदि नींच योनियों में गिराता हूं। अब इसी बात पर एक छोटी सी घटना आपको बताता हूं। यह घटना भले ही छोटी सी है किंतु इसके पीछे का मर्म बड़ा गहरा, गंभीर और चिंतनीय है।
कुछ दिन पहले की बात है एक कुत्ता जिसकी नार के ऊपर कटोरे जितना बड़ा घाव था। उसमें कीड़े कुलबुला रहे थे। कुछ और कुत्ते उस पर भौंके जा रहे थे तथा उसे एक क्षण के लिए भी कहीं टिकने नहीं दे रहे थे। वह कुत्ता अपनी जान बचाता फिर रहा था। जब वह इधर-उधर छिपता तो आसपास के इंसान उसे दुत्कार कर भगा देते। उसके घाव में इतनी भयंकर दुर्गंध कि दूर से ही लोग अपनी नाक को ढके जा रहे थे।
यह सब घटनाक्रम देखकर मेरे मन में आया कि सेवा का असली पात्र यह घायल कुत्ता है। इसे किसी प्रकार पकड़ कर बेहोश कर दिया जाए और फिर उसके बाद उसके जख्म की सफाई और दवाई का काम हो तो कितना अच्छा हो। इससे बड़ी सेवा और कोई नहीं होगी। यह सब सोचते सोचते मेरे मन में कुछ और चलने लगा।
मेरे मन में विचार आया कि भले ही हम सोचें विचारें और कुछ करें न करें यह बात अलग है, किंतु इसके कर्म भोगों को कहां ले जाएंगे? यह कुत्ता जरूर कोई जघन्न अपराधी रहा होगा, तभी ईश्वर ने इसकी यह दशा की है। अब आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं सब कुछ साफ है।
हमें यह विचार करना चाहिए कि हमारा भविष्य कहीं ऐसा न हो जो हम किसी न किसी प्रकार की घृणित दुर्गतियों से गुजरें। कोई माने या ना माने यह ध्रुव सत्य है कि अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। चाहे इस जन्म में भोगें या अगले जन्मों में। यह क्रम सदा से चला आया है और सदा चलता रहेगा। इस दिशा में इंसान को जरूर सोचना चाहिए और किसी भी प्रकार के बुरे कर्मों से हमेशा दूर रहकर अपना जीवन गुजारते हुए सद्गति प्राप्त करनी चाहिए। वर्ना उस कुत्ते जैसी दुर्गति का इंतजार करना चाहिए। कभी कभी लोग बुरे कर्म करने वालों के लिए कह देते हैं कि कुत्ते की मौत मरेगा। अब तय कर लो कि कुत्ते की मौत मरना है या सुख शांति से मरकर सद्गति प्राप्त करनी है?