Monday, September 30, 2024
Homeशिक्षा जगतछात्र-छात्राएं डिजिटल दुनिया का कम से कम करें इस्तेमालः विश्वरूपा

छात्र-छात्राएं डिजिटल दुनिया का कम से कम करें इस्तेमालः विश्वरूपा

  • जीएल बजाज में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

मथुरा। खराब मानसिक स्वास्थ्य छात्र-छात्राओं के ऊर्जा स्तर, एकाग्रता, विश्वसनीयता, मानसिक क्षमता तथा आत्मविश्वास को प्रभावित करता है, इसके परिणामस्वरूप उनका शैक्षिक प्रदर्शन गिरता है तथा मनवांछित सफलता हासिल करने से वंचित हो जाते हैं। डिजिटल दुनिया का अधिक इस्तेमाल भी हमें मानसिक तकलीफ देता है लिहाजा इसका कम से कम प्रयोग करना चाहिए। यह बातें सोमवार को जीएल बजाज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा में आयोजित मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यशाला में मुख्य अतिथि मनोवैज्ञानिक और परामर्शदाता विश्वरूपा ने छात्र-छात्राओं को बताईं।
विश्वरूपा ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सभी शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि वही छात्र-छात्राओं के असली मार्गदर्शक होते हैं। उन्होंने शिक्षकों और छात्र-छात्राओं का आह्वान किया कि वे कॉलेज समय में मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन में कमजोर साथियों की पहचान कर उनकी सहायता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समय के साथ खराब मानसिक स्वास्थ्य और समर्थन की कमी के कारण कई तरह की शैक्षणिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य छात्र-छात्राओं की कक्षा में खराब उपस्थिति, सामाजिक एकीकरण में कमी, नई परिस्थितियों या समायोजन में परेशानी का कारण बन जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर चर्चा करते हुए विश्वरूपा ने कहा कि जब छात्र उदास महसूस करते हैं तो उनका समर्थन करना महत्वपूर्ण है, शिक्षकों के रूप में हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम उन्हें सही देखभाल और सहायता प्रदान करें ताकि वे अपने शैक्षणिक और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। मनुष्य स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी है, इसलिए स्कूल-कॉलेजों में दूसरों के साथ मजबूत और स्वस्थ संबंध बनाना एक छात्र के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण पहलू है।
उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर खुलकर चर्चा करने में सक्षम होना शैक्षणिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 50 फीसदी से अधिक व्यक्ति दैनिक आधार पर खराब मानसिक स्वास्थ्य से जूझते हैं, फिर भी कोई भी इसके बारे में बात नहीं करता है। भावनाओं को दबाने से हमारे आस-पास के लोगों, हमारे दोस्तों, परिवार और साथियों के साथ हमारे व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मनोवैज्ञानिक तनाव के कारण अक्सर निष्क्रिय आक्रामकता, दूरी, सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए ऊर्जा की कमी, यहां तक कि करीबी लोगों या अन्य छात्रों के साथ अवांछित संघर्ष भी होता है। विश्वरूपा ने कहा कि सही सहायता सेवा के माध्यम से छात्र-छात्राओं की इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
विश्वरूपा ने अपने व्यावहारिक उद्बोधन में छात्र-छात्राओं को मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक बुद्धिमत्ता के महत्व से रूबरू कराने के साथ ही उन्हें जंक फूड से बचने तथा सामाजिक सम्पर्कों में अधिक समय न बिताने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि हम जितना डिजिटल दुनिया से दूर रहेंगे उतना ही अपने आपको तरोताजा महसूस करेंगे। विश्वरूपा ने छात्र-छात्राओं को व्यक्तिगत और शैक्षणिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए खुद को कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर निकलने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि उत्पादकता भीतर से आती है लिहाजा प्रत्येक छात्र-छात्रा को अपनी आंतरिक शक्तियों और मेधा का उपयोग करना चाहिए। कार्यक्रम में एक लाइव बातचीत तथा कला प्रतियोगिता भी आयोजित की गई, जिसमें छात्र-छात्राओं ने अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त किया। कार्यशाला के अंत में डॉ. शताक्षी मिश्रा ने मुख्य अतिथि विश्वरूपा को स्मृति चिह्न भेंटकर बहुमूल्य समय देने के लिए आभार माना।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments