Saturday, November 23, 2024
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देवों में देव महादेव और सेठों में सेठ नारायण सेठ

विजय गुप्ता की कलम से

     मथुरा। देवों में देव महादेव वाली कहावत तो हम बचपन से सुनते आए हैं किंतु सेठों में सेठ नारायण सेठ वाली बात भले ही किदवंती में न हो किंतु मैं लगभग आधी शताब्दी से देख रहा हूं। देख ही नहीं रहा हूं बल्कि खुद अनुभव भी कर रहा हूं। प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या, अभी खुद व खुद साबित हो जाएगा कि मेरी बात में कितना दम है।
     कुछ दिन पहले की बात है। मेरी नारायण दास जी से फोन पर बात चल रही थी। मैंने उनसे कहा कि सेठ जी बहुत दिन पहले आपने मुझसे कहा था कि जब भी कभी मेरी किसी भी प्रकार की मदद की जरूरत पड़े तो निसंकोच बता देना। नारायण दास जी ने तुरंत कहा कि हां कहा था। मैंने उनसे कहा कि अब मुझे दस लाख रुपयों की सख्त जरूरत है दे दोगे क्या? वे बोले कि हां दे दूंगा। इस पर मैंने पूछा कि कब आ जाऊं? उन्होंने बगैर क्षण भर की देर किए तपाक से कहा कि अभी आ जाओ। उनके इस जवाब से मैं नतमस्तक हो गया। मैंने उनसे कहा कि सेठ जी आप धन्य है अब आपने मुझे दस लाख दे दिए और मैंने मान लिए कि मेरे पास आ भी गए।
     अब दूसरी घटना जो लगभग 25-30 साल पुरानी है। हमारे एक साथी स्व० विनोद आचार्य की लड़की की शादी जयपुर जाकर होनी थी रुपयों का इंतजाम हो नहीं पा रहा था। जहां से व्यवस्था होनी थी वहां धोखा मिला शादी में मात्र तीन-चार दिन बाकी रह गए। विनोद बाबू बुरी तरह परेशान, मुझसे उनकी यह हालत देखी नहीं गई और मैं भागा भागा नारायण दास जी के पास पहुंचा। सारी बात उन्हें बताई उन्होंने कहा कि शादी में कितने रुपए खर्च होंगे? मैंने कहा कि कम से कम एक लाख होंगे। तथा कुछ मैं तथा हमारे अन्य परिजन कर देंगे।
     नारायण दास जी ने झट से अपनी ड्राज खोली और पचास हजार रुपए निकाल कर मेरे सामने रख दिए। उनकी दरिया दिली देखकर में भावुक हो उठा। उन दिनों पचास हजार रुपए बहुत मायने रखते थे। मैंने उनके प्रति कृतज्ञता का इजहार किया तो वे बोले कि भाई साहब आप कौन से अपने लिए ले जा रहे हो। आप तो परमार्थ के लिए ले जा रहे हो यहां तो चंदे चिट्ठे वालों की लाइन लगी रहती है। कभी-कभी हम यह महसूस करते हैं कि यह पैसा गलत जा रहा है फिर भी ना नहीं कर पाते और मजबूरी में देना पड़ता है, पर आप तो नेक कार्य को ले जा रहे हो, धन्यवाद और कृतज्ञता की क्या जरूरत है।
     अब तीसरी घटना जो उस समय की है जब जी.एल.ए. को विश्व विद्यालय का दर्जा मिला था। विश्वविद्यालय बनने के बाद जी.एल.ए का दैनिक जागरण से डिस्काउंट रेट पर एक पैक्ट हो गया जिसके तहत लगभग एक माह तक 5-6 पेज के विज्ञापन छपवाए गए। इन विज्ञापनों को देखकर मेरे मुंह में लार टपकने लगी किंतु यह सभी विज्ञापन केवल जागरण में छप रहे थे। इसी वजह से पूरे महीने में चुप रहा पर अंत में मेरा धैर्य जवाब दे गया तथा लालच मेरे ऊपर एक प्रेत की तरह सवार हो गया।
     मैं जी.एल.ए. पहुंचा और कहां कि सेठ जी ये सभी विज्ञापन मुझे भी छापने हैं। उन दिनों मैं अकिंचन भारत को देखता था जिसका सर्कुलेशन कम था। नारायण दास जी ने कहा कि शुरुआत में कहते तो कुछ आपको भी दिला देता किंतु अब तो सब खेल खत्म हो चुका है। यदि मैं आपको दे देता हूं तो अनगिनत अखबार वाले मेरी जान को आ जाएंगे, दूंगा तो मुश्किल नहीं दूंगा तो मुश्किल। उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की पर मेरी बुद्धि पर तो पत्थर पड़ गए थे लालच के चक्कर में। मुझे तो यह लग रहा था कि इतने सारे विज्ञापनों का कमीशन ही लाखों में होगा।
     खैर मेरी बेशर्मी के आगे उन्होंने हार मान ली। पहले तो उन्होंने अपने दोनों हाथों से अपना माथा कसकर दबाया और लगभग आधा मिनट तक चुपचाप कुछ सोचते रहे। इसके तुरंत बाद उन्होंने अपने सामने रखे इंटरकॉम को उठाकर कहा “नीरज तेरे पास वह सीडी है न जिसमें सारे विज्ञापन जो जागरण में छपे हैं, उसे गुप्ता जी के पास भेज देना, वे अकिंचन भारत में छापेंगे। दूसरी ओर से नीरज ने क्या कहा वह तो मुझे पता नहीं किंतु नारायण दास जी बोले कि जो मैं कह रहा हूं वही कर और कुछ मत बोल।
     इसके बाद नारायण दास जी ने मुझसे कहा कि गुप्ता जी अब आप जाओ सीडी आपके पास पहुंच जाएगी। मैं अपने आप को विजेता जैसी स्थिति में समझ रहा था। उस समय मेरी खुशी चरम पर थी। अब क्या होता है कि जैसे ही में जी.एल.ए. से निकलकर घर की ओर बढ़ा तो पता नहीं क्यों मेरी आत्मा ने मुझे धिक्कारा और ऐसा लगा कि मैं कोई अपराध करके जा रहा हूं। मेरे मन में चलने लगा कि मैंने मित्र होकर शत्रुता निभाई है अंदर ही अंदर मुझे ग्लानि होने लगी। घर आते-आते में अपने आपको अपराधी जैसा समझने लगा।
     मैंने घर आते ही फोन उठाया और नारायण दास जी से कहा कि सेठ जी मैं अपने स्वार्थ में अंधा होकर यह सब कर आया। मैं आपका मित्र हूं और आपके साथ शत्रुता जैसा काम कर आया इसके लिए क्षमा करें। अब आपसे मैंने कुछ कहा नहीं तथा आपने कुछ सुना नहीं बात खतम हुई। अब आप नीरज से कह दो कि सीडी मेरे पास न भेजे। सेठ जी हंस कर बोले ठीक है। भगवान की कृपा से मैं बड़े पाप से बच गया। इसके बाद भले ही बात आई गई हो गई किंतु इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात और हुई।
     हुआ यह कि अजय खंडेलवाल भरतपुरिया जो उस समय अमर उजाला में थे, किसी कार्यवश नीरज अग्रवाल के पास गए तथा नीरज जी ने उनसे कहा कि हमारे पापा जी विजय गुप्ता जी को बहुत ज्यादा मानते हैं। अजय ने पूंछा वह कैसे? तब नीरज ने पूरा घटनाक्रम बताया और कहा कि जब गुप्ता जी चले गए तब मैं पापा जी के पास गया और कहा कि आप यह क्या कर रहे हैं? एक तो अकिंचन भारत का सर्कुलेशन कम है, दूसरे सभी अखबार वाले टूट पड़ेंगे। कितना मोटा नुकसान होगा? इसके अलावा टेंशन भी बहुत हो जाएगी। इस पर नारायण दास जी ने नीरज से कहा के “देख नीरज मथुरा में कुछ ही लोग ऐसे हैं जिनसे मैं किसी भी बात के लिए ना नहीं कर सकता।
     अब कोई बताए कि सेठ नारायण दास जैसे बड़े दिलवाला मथुरा में और कोई है क्या? आज के समय में छोटी-छोटी रकम के लिए भाई-भाई का कत्ल कर रहा है, बेटा बाप को गोली से उड़ा रहा है। चारों ओर त्राहिमाम ही त्राहिमाम मच रही है। धन दौलत वाले तो और भी बहुत हैं, किंतु इतने बड़े दिलवाला मथुरा में तो कोई माई का लाल मुझे नजर नहीं आ रहा। इसीलिए मैं कहता हूं कि देवों में देव महादेव और सेठों में सेठ नारायण सेठ।
     बात नारायण दास जी की चल रही है तो उनके बारे में यह बताना भी जरूरी है कि ये केवल धन दौलत के मामले में ही दिलेर नहीं बल्कि पुराने जमाने से ठांय ठू के मामले में भी जीदार रहे हैं। लाइसेंसी रिवाल्वर बगल में लगाकर चलते थे। इन्होंने उस जमाने में ऐसे ऐसे खूंखार लोगों तक से टक्कर ली थी, जिनके मारे पूरा जिला थर्राता था। अच्छों अच्छों की अकल ठिकाने लगाने की कला में माहिर रहे हैं। अकल क्या इससे भी बहुत कुछ आगे जाकर ठिकाने लगाने की कला में भी ये मास्टरमाइंड रहे हैं। भले ही ये न एम.पी. हैं न एम.एल.ए. ना ही पार्टी में कोई बड़ा पद है किंतु इनकी पकड़ मिनिस्टरों से भी अधिक ऊंचाई वाली है। इस बात को सभी जानते हैं। ये ज्यादा बोलते नहीं, सिर्फ लिमिटेड शब्दों का प्रयोग करते हैं, किंतु बिना बोले सामने वाले की बोलती बंद करने की कला में पी.एच.डी. किए हुए हैं। इनके बारे में लिखने को तो बहुत अजब गजब की बातें हैं किंतु लेख बहुत लंबा हो रहा है। अब लेखनी को सुस्ताने दे रहा हूं। इनकी जीदारी और दरिया दिली को मेरा सलाम – नारायण नारायण ।
    

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