राधा रानी ब्रजयात्रा आज चौथे दिन बरसाना से चलकर ब्रजेश्वर महादेव ,करहला ,बज्रनाभ समाधी,पिसाया मंदिर होते हुए पिसाया झाड़ी विश्राम स्थल पहुँची ।
मार्ग में पड़ने वाले लीला स्थलों के संदर्भ में जानकारी देते हुए राधा कान्त शास्त्री ने बताया कि राधा रानी के पिता श्री वृषभानु बाबा के इष्ट ब्रजेश्वर महादेव हैं । सभी यात्रियों ने भोले बाबा के दर्शन किए ।यहीं प्राचीन लीला स्थल रबड़ वन और पाडर वन भी दर्शनीय हैं ।इनके भी यात्रा ने दर्शन किए ।इसके पश्चात यात्रा का कारवां करहला पहुँचा।घमंड देवाचार्य ने यहीं से रास का शुभारंभ किया था ।कहते हैं कि अदृष्ट शक्ति ने घमंड देवाचार्य जी को स्वर्ण मुकुट दिया था । वही मुकुट महारास के दिन आज भी धारण कराया जाता है ।यात्रियों ने रासमण्डल पर खूब रास किया । यहाँ से वज्रनाभ जी की समाधी के दर्शन किए ये भगवान के प्रपौत्र थे ;इन्होंने ब्रज की पुरातन लीला स्थलियों की खोज की थी ।
अंत में पहुँचे ग्राम पिसाया जिसे पिपासा वन कहते हैं यहाँ भगवान श्री कृष्ण को प्यास लगी तो आवाज लगाई वहाँ करहला की गोपी ने हाथ हिलाया की मैं आरही हूँ ।कर हिलाने से गाँव का नाम करहला पड़ गया ।पिपासा वन में यात्रिओं ने भगवन्नाम संकीर्तन की मधुर ध्वनियों का श्रवण करते करते हुए शयन किए ।भक्त शरणजी ने समस्त लीला स्थलों की महिमा का उल्लेख किया ।पिसाया की झड़ी में कहते हैं कि श्रापित अश्वत्थामा आज भी निवास करते हैं। यहाँ से कोई लकड़ी भी नहीं काट सकता है ।यदि कोई लकड़ी काटता भी है तो उसके यहाँ कोई दुर्घटना अवश्य हो जाती है ।इस तरह यह बड़ा ही चमत्कारी स्थान है ।
बरसाना – चमत्कारिक है पिसाये की झड़ी – राधारानी ब्रजयात्रा
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