- पैराट्यूबरक्लोसिस बीमारी के कारण किसानों को हो रहा आर्थिक नुकसान, सरकार करे सहयोग
मथुरा : जॉन्स रोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) बीमारी एक लाइलाज बीमारी है। इसके निदान के लिए कई देश एकजुट होकर रिसर्च में जुटे हुए हैं। भारत में इस संक्रमण को लेकर कई रिसर्च भी हो चुके हैं, जिसमें से एक जॉन्स डिजीज वैक्सीन भी तैयार हो चुकी है। बस अब जरूरत है तो सिर्फ सरकार के सहयोग की।
यह बात जीएलए विश्वविद्यालय के बायोटेक विभाग द्वारा वृंदावन स्थित एक होटल में आयोजित सम्मेलन में मुख्य अतिथि इंडियन काउंसिल ऑफ मेड़िकल रिसर्च (आईसीएमआर) के पूर्व निदेशक प्रो. एनके गांगुली ने कहीं। प्रो. गांगुली ने कहा कि भारत में 30 प्रतिशत के करीब पशु जॉन्स रोग (पैराट्यूबरक्लोसिस) से संक्रमित हैं। इस कारण अगर को पशु ऐसे अपने बच्चे को जन्म देता है तो वह संक्रमण उसमें भी पाया जा रहा है। इसी संक्रमण के चलते पशुओं की प्रजजन क्षमता लगभग खत्म होने के कगार पर है।
उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सरकारों ने इस पर अधिक ध्यान दिया और सभी जानवरों का चेकअप कराकर वेक्सीनेशन कराया। वहां लगभग यह बीमारी खत्म हो गई, लेकिन भारत में सभी प्रदेशों की सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। यहां भी जानवरों का चेकअप हो और वेक्सीनेशन हो।
विशिष्ट अतिथि इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च के पूर्व डीडीजी एनीमल साइंस डा. एमएल मदन ने बताया कि अधिकतर देशों में पशुओं में यह बीमारी पाये जाने पर उनको खत्म कर दिया जाता है। भारत देश में पशुओं को मारने पर सख्त कानून है। इस कारण यहां वेक्सीन बनाना बहुत जरूरी है। क्योंकि जॉन्स बीमारी सिर्फ पशुओं में ही नहीं बल्कि, उनके माध्यम से यह लोगों में भी फैल रही है। इसी बीमारी से कहीं हद तक निजात पाने के लिए जीएलए विश्वविद्यालय बायोटेक विभाग प्रो. शूरवीर सिंह ने मखदूम फरह से एक रिसर्च कर जीएलए पहुंचकर एक वेक्सीन को तैयार किया। अगर यही वेक्सीन पूरे देश में पहुंच जाये और पशुओं और उनके बच्चों में वेक्सीनेशन बहुत जरूरी है। इसके लिए सरकार को भी सहयोग देने की जरूरत है।
दुवासु मथुरा के पूर्व कुलपति प्रो. केएमएल पाठक ने कहा कि घरेलू पशुओं की पैराट्यूबरकुलोसिस (पीटीबी) नामक अत्यधिक व्यापक संक्रामक बीमारी के खिलाफ ‘ओरल वैक्सीन‘ विकसित करने के लिए परियोजना तैयार हो चुकी है। इस रोग को जॉन्स रोग (जेडी) के रूप में भी जाना जाता है, यह गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ऊंट, याक आदि की एक लाइलाज बीमारी है। यह पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों को नुकसान पहुंचाती है। इस संक्रमण से पशु को दीर्घकालिक दस्त और वजन कम हो जाता है और पशु एक या दो प्रसव के भीतर अनुत्पादक हो जाता है। ऐसे संक्रमित पशुओं के दूध को मनुष्यों द्वारा सेवन करने पर यह संक्रमण मनुश्यों में तथा पशुओं की आने वाली अगली पीढ़ी में संचारित होता रहता है।
यह भी कह सकते हैं कि यह एक दूध के माध्यम से पशुओं की अगली पीढ़ी तथा मनुष्यों में फैलने वाले संक्रमण को रोकने के लिए ही जीएलए के नेतृत्व में बायोटेक टीम पहले ही इंजेक्शन के रूप में एक अत्यधिक प्रभावी टीका जॉन्स रोग के विरूद्ध विकसित कर चुकी है।
ईरान के अदुल्ला डेराकसंदेह ने कहा कि भारत में वृंदावन की इस पावन धरा पर मुझे भले ही एक सम्मेलन में शामिल होने का अवसर मिला हो, लेकिन बहुत खुश हूं। उन्होंने कहा कि वह एंटीजन वेक्सीन के पक्षधर हैं। बेजुबानों को बचाने के लिए हम सभी एक होने की जरूरत है।
जीएलए के प्रतिकुलपति प्रो. अनूप कुमार गुप्ता ने कहा कि यह एक बड़ा अवसर है कि पावन धरा पर एक सम्मेलन के बहाने देश-विदेश के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ एकजुट होकर बेजुबानों को बचाने के लिए अपने विचार रख रहे हैं। ऐसे कार्यक्रम विज्ञान की आधुनिकता को लोगों के सामने रखते हैं। कार्यक्रम में जीएलए बायोटेक के विभागाध्यक्ष प्रो. शूरवीर सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत और परिचय कराया।
इस मौके पर आईसीएमआर के पूर्व निदेशक डा. वीएम कटोच, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल वेंक्टेश, पूर्व निदेशक आईसीएआर-आईवीआरआई बरेली के डा. नेम सिंह, पूर्व निदेशक आईसीएआर, सीआईआरजी, आईवीआरआई के डा. एमसी शर्मा, आईसीएआर के पूर्व एएच कमीशनर डा. लालकृष्ण, दुवासु मथुरा के कुलपति प्रो. एके श्रीवास्तव, शेर ई कश्मीर यूनिवर्सिटी जम्मू के कुलपति प्रो. बीएन त्रिपाठी, पूर्व सीनियर सलाहकार डीबीटी के डा. मौ0 आलम आदि विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों ने किसानों को लाभ पहुंचाने पर विचार विमर्श किया।
कार्यक्रम में बायोटेक विभाग के सभी पदाधिकारियों का सहयोग रहा।