विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। इनकी दोस्ती कातिलानी, इनकी दुश्मनी कातिलानी, इनकी नजर कातिलानी इनकी हर अदा में कातिलाना पन समाया हुआ है। और तो और उम्र को गच्चा देने के मामले में भी ये बड़े ही कातिल हैं। इन्होंने रेखा और हेमा मालिनी तक को पीछे धकेल रखा है। जीवन की सत्तर सीढियों तक पहुंच कर भी सत्रह वालों तक को जमीन सुंघाने की कुब्बत रखते हैं।
नाम है इनका महेश पाठक दूसरा उपनाम है “नानू”। नानू नाम पर बटन दबाते ही इनकी जन्मपत्री खुल जाती है। ना ये एम.पी. हैं, न एम.एल.ए. और ना ही मिनिस्टर पर अपनी निराली अदाबाजी के कारण इनसे भी आगे बहुत कुछ हैं। इनका सबसे निराला अंदाज है “जब प्यार किया तो प्यार किया जब नफरत की तो नफरत की, इनका सिद्धांत है आपको ना मानें ताके बाप को ना मानें”।
अब इनके बारे में ज्यादा बताने जताने की कोई जरूरत नहीं। दुनियां वाले जानते हैं कि महेश पाठक कौन है? और क्या उसकी क्षमताएं हैं? बस इतना जरूर कहूंगा की बचपन से लेकर अब बुढ़ापे तक। क्षमा करें मैं बुढ़ापा गलत लिख गया। भूल सुधार करते हुए बुढ़ापे की जगह सत्तर सीढ़ी चढ़ने तक किए देता हूं। यानी पांच छः दशकों से इन्होंने अपना झंडा फहरा रखा है वह मथुरा के इतिहास में बेमिसाल है। हर वर्ष की तरह कंस का मेला आ गया। कंस को मारने वालों की अगुवाई लंबे समय से कर रहे हैं। कंसों के वध के तो ये पुराने शौकीन हैं ही।
अंत में एक बात और कह कर लेखनी को विराम देता हूं कि इनके यहां पित्रों की बड़ी जबरदस्त मानता है। शायद पित्र भक्ति की शक्ति ही इनके साथ रहती है। इनकी पित्र भक्ति को मेरा सलाम।