मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ एजुकेशन में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का आयोजन किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने देश के प्रथम शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अबुल कलाम को याद किया और उनके शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों को विस्तार से बताया।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एम.बी. चेट्टी बताया कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद या अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान थे। वे कवि, लेखक, पत्रकार और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पद पर रहे। वे महात्मा गांधी के सिद्धांतो का समर्थन करते थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने। वे 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रहे। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर जिले से 1952 में सांसद चुने गए और भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उनके द्वारा शिक्षा की क्षेत्र में अनेक कार्य किये गए, जिनमें यूजीसी, तकनीकी, जामिआ मिलिया विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना जैसे प्रमुख कार्य भी शामिल हैं।
स्कूल ऑफ़ एजुकेशन की डीन डॉ. रेनू गुप्ता ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के देश भर में सीखने के अवसरों के विस्तार के प्रति उनके समर्पण के बारे में बताया। डॉ. निशा चंदेल ने राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के महत्व पर प्रभावशाली संबोधन दिया, जिसमें भारत की शैक्षिक नीति पर मौलाना आज़ाद के प्रभाव को दर्शाया गया। डॉ. मृत्युंजय मिश्रा ने छात्रों से शिक्षा को व्यक्तिगत और सामाजिक विकास की आधारशिला के रूप में महत्व देने पर बल दिया एवं नई तकनीकी के साथ आगे बढ़ने के लिए छात्रों को प्रेरित किया। इस अवसर पर छात्रों को मौलाना अबुल कलाम आजाद की डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई।
संस्कृति विश्वविद्यालय ने मनाया राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
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