विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। किसानों के नाम पर जो यह हुड़दंग बाजी हो रही है और पहले भी होती रही है। इस परिप्रेक्ष्य में जरा विचार करके देखो कि क्या ये सच्च मुच्च के किसान हैं? ईमानदारी से देखा जाए तो सारी स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि ये कौन हैं? और इनका उद्देश्य क्या है? इनके पीछे कौन है? और उनकी फंडिंग कहां से हो रही है?
कंगना रनौत ने जब इनके बारे में सच्चाई बयां की तो बखेड़ा खड़ा कर दिया। जरा सोचो कि पांच सितारा होटलों जैसी मौज मस्ती पिछले आन्दोलनों के दौरान देखी गई वह सब भार कौन उठा रहा था? अगर देखा जाए तो इनमें से एक प्रतिशत भी किसानी नहीं करते सिर्फ किसानों के नाम पर अपनी नेतागिरी चमकाने और विरोधी दलों के इशारों पर नाचने का काम ही इनका धर्म है।
जो सच्चे किसान है उन्हें तो इन सब बवंडर बाजियों से कोई मतलब नहीं वे तो अपने खेतों में जुताई बुवाई और कटाई में व्यस्त और मस्त रहते हैं। बड़ी हैरत की बात है कि जो कानून किसानों के हित में बनाऐ गये हैं उन्हें ये किसान विरोधी बातकर भ्रम फैला रहे हैं।
जब मैं अखबारों में इस शब्द को पढ़ता हूं कि “किसान आन्दोलन” तब मेरा मन जल भुन कर राख हो जाता है, ठीक वैसे जैसे असामाजिक यानी अराजक तत्वों को साधु संत कहकर संबोधित किया जाय। ज्यादा कुछ कहने और लिखने की जरूरत नहीं सब लोग समझते हैं और जानते हैं कि किसानों का मुखौटा लगाऐ ये कौन हैं। एक कहावत है की “दुकानदारी नरमी की और हाकिमी में गर्मी की” अब मैं सौ की सीधी एक बात पर आता हूं कि मोदी जी ने एक से बढ़कर एक अजब गजब के काम कर दिये। और तो और पूरा विश्व भी उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व का मुरीद हो चला है।
मेरा मानना है कि अब तो मोदी जी को कुछ ऐसा करना होगा जो “भूतो न भविष्यते” कहने का मतलब है कि चाहे किसानों के नाम पर बेवजह उपद्रव करने वाले ये पाखंडी हों चाहे देश के प्रति गद्दारी करने वालों की जमात हो या किसी भी तरह के आपराधिक कार्य हों। भले ही राजनीति के नाम पर गुंडागर्दी वाले ही क्यों न हों सभी को ऐसा शंट करें जो हमेशा के लिए नजीर बन जाए और देश आसुरी प्रवृत्ति से हटकर देवत्व की ओर बढ़ने लगे।
कहते हैं “लातों के भूत बातों से नहीं मानते” किसी को बुरा लगे या भला मेरा मन घूम फिर कर पुनः आपातकाल के दौर में पहुंच गया जब अपराधों की स्थिति ऐसी हो गई जैसे गधे के सर से सींग। हत्या, लूट, डकैती, भ्रष्टाचार आदि का नामोनिशान मिट गया। पूरा देश अनुशासित होकर तरक्की की ओर अग्रसर हो गया। रेलें विफोर टाइम चलने लगीं और तो और अदालतों के निर्णय भी बड़े सोच समझकर किए जाने लगे।
हां यह भी सच है कि इंदिरा गांधी ने अपने आप को सत्ता पर काबिज बनाए रखने के लिए इमरजेंसी लगाई किंतु यह इमरजेंसी देश के लिए रामबांण दवा सिद्ध हुई। इस बात को भी मानना होगा कि शासन चलाने वाला हो तो संजय गांधी जैसा हो। भले ही कोई मेरी बात से नाइत्तफाकी रखता हो किंतु यह भी ध्रुव सत्य है कि संजय गांधी महान हिंदूवादी भी थे। अगर आज संजय गांधी जिंदा होते और इमरजेंसी चल रही होती तो विश्व में भारत का स्थान नंबर वन पर होता और शायद डॉलर के स्थान पर रुपए के चलन की बात आगे बढ़ रही होती। किंतु देश का दुर्भाग्य था जो इंदिरा गांधी चुनाव करा बैठीं।
अब मेरी बात पर गौर करके देखो कि मैं गलत कह रहा हूं या सही? शायद ज्यादातर लोग मुझे गलत ठहराएंगे। चलो मैंने मान भी लिया कि इमरजेंसी गलत थी। इसीलिए इमरजेंसी के बाद चुनाव में इंदिरा गांधी को जनता ने पूरी तरह नकार दिया। किंतु उसके बाद जब चुनाव हुए तब सत्ता में बैठे विरोधियों को चारों खाने चित्त करके फिर दोबारा इंदिरा गांधी को दो तिहाई से भी ज्यादा बहुमत से जिताकर सर आंखों पर क्यों बैठाया? इसका जवाब है किसी के पास? शायद नहीं और ना ही कभी होगा। जय इमरजेंसी जय भारत।