- के.डी. मेडिकल कॉलेज में आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित
- पाठ्यक्रम में यूपी, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड के परास्नातक छात्रों ने लिया हिस्सा
मथुरा। चिकित्सा क्षेत्र में निरंतर तकनीकी बदलाव हो रहे हैं, ऑर्थोपेडिक्स भी इससे अछूता नहीं है। नवीनतम सर्जिकल तकनीकों से लेकर नवीनतम इम्प्लांट तकनीकों तक ऑर्थोपेडिक सर्जनों के लिए उपलब्ध उपकरण और विधियां लगातार परिवर्तनशील अवस्था में हैं, ऐसी स्थिति में प्रत्येक परास्नातक मेडिकल छात्र का यह दायित्व है कि वह अपने आपको हमेशा अपडेट रखे। यह बातें शनिवार को के.डी. मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर में उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल तथा मथुरा जिला ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के शुभारम्भ अवसर पर देश के जाने-माने हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिल ढल ने विभिन्न राज्यों से आए परास्नातक छात्रों को बताईं।
के.डी. मेडिकल कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम का शुभारम्भ डीन और प्राचार्य डॉ. आर.के. अशोका तथा देश के विभिन्न शहरों से आए हड्डी रोग विशेषज्ञों द्वारा विद्या की आराध्य देवी मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम के आयोजन अध्यक्ष डॉ. विक्रम शर्मा तथा सचिव डॉ. विवेक चांडक ने हड्डी रोग विशेषज्ञों का परिचय देते हुए उनका स्वागत किया तथा के.डी. मेडिकल कॉलेज को आयोजन का दायित्व सौंपने के लिए उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल का आभार माना। डॉ. विक्रम शर्मा ने पाठ्यक्रम में हिस्सा ले रहे के.डी. मेडिकल कॉलेज के साथ ही अलीगढ़, आगरा, सैफई, देहरादून, लखनऊ, अमृतसर, पानीपत, रोहतक आदि के परास्नातक ऑर्थोपेडिक्स छात्रों का आह्वान किया कि दो दिवसीय पाठ्यक्रम में विशेषज्ञों से जो अनुभव और ज्ञान मिले उसे आत्मसात कर उस पर अमल करने की कोशिश करें।
परास्नातक ऑर्थोपेडिक्स पाठ्यक्रम में हिस्सा ले रहे छात्रों को सम्बोधित करते हुए डॉ. अनिल ढल डीन ईएसआईसी, फरीदाबाद (पूर्व प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष ऑर्थोपेडिक्स एमएएमसी) ने कहा कि ऑर्थोपेडिक्स चिकित्सा में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं, ऐसे में प्रत्येक छात्र को उपकरणों और कामकाज के तरीकों में हो रहे बदलाव पर सतत नजर रखनी होगी। उन्होंने कहा कि ऑर्थोपेडिक्स में निरंतर सीखने के लिए सबसे व्यापक प्रेरकों में से एक तकनीकी उन्नति है। जिसे कभी क्रांतिकारी ऑर्थोपेडिक प्रक्रिया माना जाता था, वह अब चिकित्सा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के कारण रोजमर्रा की बात हो गई है। न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी, रोबोट-सहायता प्राप्त प्रक्रियाएं और 3डी-प्रिंटेड इम्प्लांट कुछ ऐसे परिवर्तन हैं जो हाल के वर्षों में चलन में आए हैं।
डॉ. संदीप कुमार विभागाध्यक्ष आर्थोपेडिक्स हमदर्द इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस ने पीजी छात्रों को बताया कि ऑर्थोपेडिक्स में निरंतर सीखने से सबसे ज़्यादा फायदा मरीज़ों को होगा। जब विशेषज्ञ सर्जन नवीनतम विकास से अवगत रहते हैं तो मरीज को अधिक सटीक निदान, कम आक्रामक उपचार, बेहतर शल्य चिकित्सा परिणाम, स्वास्थ्य लाभ की अवधि कम तथा बेहतर दीर्घकालिक परिणाम मिलते हैं। इसके अतिरिक्त जो शल्य चिकित्सक निरंतर सीखते रहते हैं, वे कठिन मामलों को संभालने में बेहतर रूप से सक्षम होंगे तथा प्रत्येक रोगी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत देखभाल प्रदान कर सकेंगे।
आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम में मेडिकल पीजी छात्रों को वीडियो व्याख्यान, नैदानिक परीक्षण के प्रदर्शन, केस-आधारित शिक्षण, एक्स-रे प्रदर्शन, सिद्धांत नोट्स, ओएससीई स्टेशन, शल्य चिकित्सा प्रक्रिया आदि के माध्यम से समझाया गया। इस अवसर पर मथुरा जिला ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. आदेश शर्मा, डॉ. अमित शर्मा, डॉ. आर.के. गुप्ता विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) केएम मेडिकल कॉलेज, डॉ. अश्वनी सदाना विभागाध्यक्ष (हड्डी रोग) एफएच मेडिकल कॉलेज, डॉ. डीपी गोयल, डॉ. निर्विकल्प अग्रवाल, डॉ. अमन गोयल आदि ने भी अपने-अपने अनुभवों से छात्रों का मार्गदर्शन किया।
ब्रज क्षेत्र में पहली बार के.डी. मेडिकल कॉलेज में आयोजित आर्थोपेडिक्स स्नातकोत्तर शिक्षण पाठ्यक्रम की सराहना करते हुए आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल ने कहा कि विशेषज्ञों से मिली जानकारी भावी सर्जनों के जीवन भर काम आएगी। प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने कहा कि ऑर्थोपेडिक मामलों में निरंतर सीखना आवश्यकता नहीं बल्कि अनिवार्यता है। श्री अग्रवाल ने कहा कि नई तकनीकों को अपनाना, निरंतर प्रशिक्षण और हाल के अनुसंधानों से अपडेट रहना ऑर्थोपेडिक पेशेवरों को यह आश्वस्त करने की अनुमति देता है कि वे अपने रोगियों को सर्वोत्तम सेवा प्रदान करते हैं। डॉ. विक्रम शर्मा, डॉ. विवेक चांडक, डॉ. अमित रे, डॉ. प्रतीक अग्रवाल, डॉ. सौरभ वशिष्ठ आदि ने इस कार्यक्रम को परास्नातक छात्रों के लिए मील का पत्थर करार दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमित अग्रवाल तथा डॉ. अनन्या ने किया।