विजय गुप्ता की कलम से
मथुरा। जिस प्रकार हज यात्रा करने वालों को हाजी जी कहा जाता है वैसे ही कुम्भ में जाकर स्नान करने वालों को भी कुम्भी जी कहना चाहिए। यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि जो कुम्भ में जाकर स्नान कर आए वे तो अब महान हो गए, अब उन्हें साधारण इंसान नहीं माना जा सकता क्योंकि वर्तमान हालातों से तो यही प्रतीत हो रहा है।
बचपन में अक्सर टिड्डी दल को देखा करते थे ठीक वही स्थिति अब दिखाई दे रही है। बल्कि यौं कहा जाए कि जानबूझकर मरने के लिए इस तरह बेताब हो रहे हैं जैसे पतंगे आग में जाने के लिए। अब तक हजारों मर चुके फिर भी पागलपन का नशा नहीं उतर रहा।
लोग कहेंगे कि हजारों कैसे मर गए? तो मैं अभी सिद्ध किये देता हूं कि हजारों की संख्या पक्की है। पहले तो कुम्भ में मची भगदड़ में मरे, उसके बाद दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर। इन मृतकों से भी कहीं ज्यादा तो तभी से मर रहे हैं जब से कुंभ की शुरुआत हुई थी। लोग कहेंगे कि वह कैसे? तो इसका जवाब यह है कि रोजाना तमाम खबरें पूरे देश के विभिन्न हिस्सों से मिल रही हैं, कि फलां जगह वाहन टकराये, बस पलटी, असंतुलित होकर गड्ढे में जा गिरी आदि आदि। अखबारों में छपी खबरों में लिखा रहता है कि ये लोग कुम्भ जा रहे थे या कुम्भ से लौट रहे थे। अनेक कुम्भ यात्री मौत के मुंह में जा रहे हैं और उससे भी ज्यादा घायल हो रहे हैं। क्या इनकी संख्या कुम्भ से नहीं जुड़ेगी?
मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं कोई सनातन विरोधी हूं। पर यह तो सोचना चाहिए कि ऐसी भीड़ में हम क्यों जाएं? यदि कुम्भ नहीं जाएंगे तो क्या आगे की जिंदगी नहीं चलेगी? या कुम्भ न जाने पर समाज में अछूत की तरह माने जाएंगे। मैं यह देख रहा हूं कि लोग अपने घटिया कर्मों को तो त्याग नहीं रहे और कुम्भ में जाने के लिए पगलाए जा रहे हैं। हत्यारे, चोर, उचक्के, दुराचारी, लुटेरे, बेईमान, झूठ बोलने वाले, मांसाहारी, शराबी तथा भ्रष्टाचारी आदि दुर्गुण संपन्न भी कुम्भ में डुबकी लगाने की होड़ा-होड़ी में मरे जा रहे हैं। ये लोग सोच रहे होंगे कि अब तो हमारे सभी पाप पुण्य के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे और स्वर्ग लोक की गारंटी पक्की।
मेरा मानना तो यह है की कुम्भ में तो सिर्फ उन्हीं लोगों को जाना चाहिए जो ईश्वर में आस्था रखने वाले सदाचारी हों हर प्रकार के दुर्गुणों से दूर रहकर अपनी जिंदगी को सादगी और परमार्थ के साथ जी रहे हों। नास्तिक सोच रखने वाले धूर्त लोगों के जाने से तो गंगा जमुना और भी दूषित होंगी। अंत में मुझे सिनेमा का वह गाना याद आ रहा है कि “राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते।