
मथुरा में पत्रकारिता के जनक स्व पंडित शिवचरण लाल शर्मा का जन्म सन 1898 में उत्तर प्रदेश के एटा जनपद के नगला डरु ग्राम में हुआ था। अपने बड़े भाई पंडित रामचरण लाल शर्मा जिन्हें सन 1909 में राजद्रोह के आरोप में 30 साल काला पानी की सजा हुई थी और अंडमान भेज दिया गया था, का अनुसरण करते हुए पंडित शिवचरण लाल शर्मा भी देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। वह सरदार भगत सिंह और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे महान क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। सन 1918 में पंडित शिवचरण लाल शर्मा और सरदार भगत सिंह दिल्ली में एक जब्त पुस्तक -“अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली” को बांट रहे थे तभी किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दे दी। पुलिस को देखते ही शर्मा जी ने सरदार भगत सिंह को इशारा करके भगा दिया और खुद गिरफ्तार हो गए। 1 सितंबर 1919 को पंडित शिवचरण लाल शर्मा को मैनपुरी सड़यंत्र केस में पांच साल की हुई। वह 1924 में रिहा हुए। सन 1930 में अजमेर में बंदी बनाए गए और जनवरी 1931 को रिहा हुए। सन 1932 में आई. पी. सी. की धारा 108 के अंतर्गत एक वर्ष की सजा हुई ये सजा पंडित जी ने फैजाबाद जेल में काटी थी। वह स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी के क्रांतिकारी पत्र “प्रताप” में सन 1918 में रिपोर्टर तथा 1924 में उसके संपादकीय विभाग में उप संपादक भी रहे। पंडित जी आगरा से प्रकाशित समाचार पत्र सैनिक के प्रथम मुद्रक, प्रकाशक एवम उप संपादक रहे थे। इसी दौरान उनका नाम “काकोरी सडयंत्र केस” में आ गाया और गिरफ्तारी से बचने के लिए वह अपने बड़े भाई पंडित रामचरण लाल शर्मा जिन्होंने अंडमान में “काला पानी” की सजा काटकर फ्रांसीसी शासित पांडचेरी में शरण ले ली थी के पास पहुंच गए और वहीं पर अपनी फरारी काटने लगे। वरना उन्हें या तो आजीवन कारावास की सजा होती अथवा गर्दन लंबी हो जाती।
स्व. पंडित शिवचरण लाल शर्मा ने देश की आजादी के बाद पत्रकारिता को ही अपनी जीविकोपार्जन का साधन बनाया। वह मथुरा से अनेक हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू समाचार पत्रों के संवाददाता रहे। वह मथुरा में टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, अमृत बाजार पत्रिका, नेशनल हेराल्ड, नवजीवन, हिंदुस्तान स्टेंडर्ड, उर्दू के मिलाप, नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका आदि अनेक समाचार पत्रों के प्रतिनिधि/ संवाददाता रहे। वह मथुरा में जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष के अलावा भारत सेवक समाज, हिंदी साहित्य सम्मेलन उत्तर प्रदेश, रोटरी क्लब आदि लगभग दो दर्जन संस्थाओं/समितियों से संबद्ध रहे। उन्होंने मथुरा में कृष्णापुरी हाउसिंग सोसाइटी की भी स्थापना की और पांच कोठियों का निर्माण भी कराया जिन्हें उनकी लायक संतानों ने खुर्द बुर्द कर दिया।
क्रांतिकारी स्व. पंडित शिवचरण लाल शर्मा से ब्रिटिश सरकार कितनी खोफजदा थी इसकी जानकारी ब्रिटिश इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर की पुस्तक “कम्यूनिश्म इन इंडिया” में पंडित शिवचरण लाल शर्मा को ब्रिटिश सरकार के लिए बहुत ही खतरनाक व्यक्ति बताया।
यह अति करुणा और वेदना का विषय है कि मथुरा के पत्रकारों ने इस महान क्रांतिकारी को बिल्कुल भुला दिया और उनका नाम तक नहीं लेते। भारत सरकार ने न तो इनके नाम पर कोई डाक टिकट ही जारी किया और नाही कोई उनके जन्म स्थान पर कोई स्मारक ही बनाया। और पूरी तरह से उनके देश के प्रति सेवा और बलिदान को पूरी तरह भुला दिया है।