Tuesday, March 25, 2025
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कुत्तों पर अत्याचार करने वाले भी कुत्ते और मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले तो महाकुत्ते

मथुरा। सभी जानते हैं कि कुत्ता वफादार जानवर है। वह मालिक की खातिर अपनी जान की बाजी लगाने से भी पीछे नहीं हटता। यह कुत्ते रात रात भर जाग कर हम लोगों की पहरेदारी करते हैं। पुराने समय से ही यह चलन रहा है कि पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते की, लेकिन बड़ी दुखद और शर्मनाक बात यह है कि आजकल इन्हीं के साथ न सिर्फ क्रूरता हो रही है बल्कि इनकी प्रजाति को ही समाप्त करने का कुचक्र रचा जा रहा है।
     मेरा मानना है कि कुत्तों पर अत्याचार करने वाले तो कुत्ते हैं ही पर मूक बनकर तमाशबीन बने रहने वाले हम लोग महाकुत्ते हैं। किसी को बुरा लगे या भला किंतु यह बात एकदम खरी है। आजकल नगर निगम द्वारा इन निरीह प्राणियों के ऊपर जो अत्याचार किए जा रहे हैं, वह अक्षम्य हैं।
     इन कुत्तों पर अत्याचारों का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ है यह तो लंबे समय यानी कई माह से चल रहा है। महाकुत्तों वाली श्रेणी में तो कुछ कुछ मैं अपने को भी मानता हूं, क्योंकि पिछली गर्मियों में मैंने कुत्तों को जाल में दबोच कर नगर निगम के सफाई कर्मियों को ले जाते हुए देखा था। तब से अब जाकर मेरा मुंह खुला है।
     जब मैंने होली गेट के पास कुत्तों को सुबह-सुबह जाल में फंसाते देखा तो जानकारी करने पर पता चला कि उनकी नसबंदी की जाएगी और बाद में जहां से पकड़ा जा रहा है वहीं लाकर छोड़ा जाएगा। तमाम तरह की समस्याओं के चलते में खाली सोचता ही रह गया किया कुछ नहीं। फिर कुछ दिन बाद हमारे निवास “नवल नलकूप” से मेरी अनुपस्थिति में कुत्तों के पूरे झुंड को पड़कर सुबह-सुबह ले गए सिर्फ दो कुतियाओं को कुछ लोगों ने छुपा लिया वह बच गईं बाकी सभी चले गए।
     रोजाना सुबह सूर्योदय से पूर्व गेट खुलने से पहले कुत्तों का झुंड हमारे दरवाजे पर खड़ा मिलता था क्योंकि उन्हें टोस्ट खिलाये जाते थे किंतु अब सिर्फ दो कुतिया ही आती हैं। इससे यह दावा झूठा सिद्ध हो गया कि जहां से कुत्तों को पकड़ कर ले जाया जाता है। नसबंदी के बाद उन्हें वापस वहीं छोड़ा जाता है।
     कुछ दिन पूर्व मैंने अपने संवाददाता दिनेश कुमार को इस बात का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी कि पकड़ कर ले जाने के बाद कुत्तों को कहां रखा जाता है और उनकी क्या गति होती है? दिनेश जी ने सहायक नगर आयुक्त श्री रामजी लाल जो इस कार्य के नोडल अधिकारी हैं, से बात की और पूंछा कि कुत्तों को कहां रखा जाता है? इस पर उन्होंने बताया कि मुझे नहीं पता। हमने तो एक एन.जी.ओ. (प्राइवेट संस्था) को यह जिम्मेदारी दे रखी है। राम जी लाल जी ने एक चिकित्सक का फोन नंबर दे दिया तथा कहा कि इनसे पता कर लो।
     जब चिकित्सक से बात की तो उन्होंने बताया कि डी.एम. निवास के पिछवाड़े में डेयरी फार्म के निकट यमुना किनारे पर इनका ठिकाना है। दिनेश जी जब वहां पहुंचे तो पता चला कि यहां का ठिकाना तो अभी निर्माणाधीन है। इस समय तो कुत्ते बाद के निकट राधा टाउन कॉलोनी के एक बाड़े में हैं। इसके बाद दिनेश जी राधा टाउन पहुंचे तो वहां कुत्तों की बड़ी दुर्गति हो रही थी। कुछ कुत्ते जाल में फंसे छटपटा रहे थे तथा कुछ एक बड़े पिंजरे में भयभीत से पड़े हुए थे। वहां के लोगों ने बताया कि कभी-कभी यह कुत्ते पिंजरे के अंदर आपस में बुरी तरह लड़ते झगड़ते हैं और घायल भी हो जाते हैं।
     इस सब घटनाक्रम से अंदाज लगाया जा सकता है कि कुत्तों के साथ कितनी क्रूरता हो रही है। कैसे इन्हें खिलाया पिलाया जाता होगा? क्या होता होगा भगवान ही जाने। जब हमारे घर के पास के कुत्तों का छ: माह से अभी तक आता पता नहीं तो फिर मथुरा वृंदावन क्षेत्र के सैकड़ो हजारों कुत्तों की क्या गति हुई होगी? कितने मरे होंगे कितने जिंदे बचे होंगे? क्या-क्या हुआ होगा? और क्या-क्या नहीं हुआ होगा? इस सब का अंदाजा लगाया जा सकता है। कहने का मतलब है कि सब कुछ अंधेरे में है और अखबारों में खबर ऐसी छपवाई जाती हैं जैसे इनकी मेहमानों की तरह खातिरदारी होती है और डॉक्टरों व कर्मचारियों की टीम हर समय कुत्तों की सेवा में लगी रहती है।
     अब इस सब माथा पच्ची से अलग हटकर मैं यह पूछना चाहता हूं कि कुत्तों को पड़कर उनकी नसबंदी का क्या औचित्य है? कुछ लोग कहेंगे कि कुत्ते बहुत ज्यादा हो गए हैं, लोगों को काट भी लेते हैं। आदि आदि। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या इंसानों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी नहीं बढ़ रही है? क्या यह लोग हिंसक होकर मार काट लूटपाट आदि घिनौने अपराध नहीं कर रहे? फिर तो इंसानों को भी पकड़ पकड़ कर उनकी भी नसबंदी होनी चाहिए।
     बताया गया है कि इन कुत्तों की नसबंदी के नाम पर प्रति कुत्ता लगभग एक हजार व्यय होता है। इसमें कितना खर्च होता होगा और कितने में बंदर बांट होती होगी यह तो राम जाने। पर इतना जरूर है कि इन बेचारों के साथ यह जघन्यता अक्षम्य है। इन बेजुबान निरीह प्राणियों के साथ यह क्रूर अत्याचार मथुरा वृंदावन ही नहीं देशभर में हो रहे हैं।
     ऐसा लगता है कि कुत्ता विरोधी विचारधारा वाले लोग इस प्रजाति को ही समाप्त करना चाहते हैं। मेरी सोच यह है कि जो लोग कुत्तों की बहु संख्या व उनके आक्रामक होने के नाम पर जुल्म ढाने के समर्थक हैं, उन्हें सबसे पहले अपनी और अपने परिवार के सभी सदस्यों की नसबंदी कर लेनी चाहिए क्योंकि इंसान भी तो कुकुरमुत्ते की तरह उगते चले जा रहे हैं, उनमें भी तो कुछ हिंसक होकर जघन्य अत्याचार कर रहे हैं।
     अंत में यह भी कहूंगा कि जो कुत्ता विरोधी विचारधारा के लोग हैं और उन पर हो रहे अत्याचारों में सहयोगी हैं। अगले जन्म में वे जरूर कुत्ते बनेंगे और जैसे जुल्म इन कुत्तों पर हो रहे हैं उससे भी अधिक जुल्म उन पर होंगे।
     एक बात और कहनी है वह यह कि अगर हम सभी लोग बगैर तनखा वाले इन पहरेदारों को कुछ न कुछ खिलाते रहेंगे तो फिर कोई भी कुत्ता हिंसक नहीं होगा। ये भूख प्यास से भी चिड़चिड़े और हिंसक हो जाते हैं। हम सभी को मिल जुल कर कुत्तों को नसबंदी के नाम पर पकड़ कर उन पर अत्याचार करने का विरोध करना चाहिए ना कि अपनी जुबान पर ताला लगा तमाशबीन बने रहकर महाकुत्ता वाली श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराना चाहिए।

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