
मथुरा। ब्रह्म ऋषि पूज्य देवराहा बाबा कहा करते थे कि प्रकृति के किसी भी कार्य की निंदा करना ईश्वर की निंदा के समान है। बाबा कहते थे कि चाहे भीषण गर्मी पड़े अथवा कड़ाके की ठंड या फिर मूसलाधार वर्षा ही क्यों न हो हमें इनकी आलोचना नहीं करनी चाहिए।
बाबा द्वारा कही गई बातों को संत शैलजाकांत द्वारा पिछले काफी दिनों पूर्व उस समय दोहराया जब मेरी उनसे फोन पर वार्ता हो रही थी। मैंने उनसे कहा कि मिश्रा जी ठंड बहुत कड़ाके की पड़ रही है पता नहीं कब इससे पिंड छूटेगा? मतलब मैंने ठंड की आलोचना सी की थी। शैलजाकांत जी कहते हैं कि सर्दी, गर्मी, वर्षा ही नहीं आंधी, तूफान, भूकंप आदि जो कुछ भी प्रकृति के कार्य हैं, वे सभी ईश्वर द्वारा संचालित हैं। उनका कथन है कि ईश्वर ने प्रकृति के हर कार्य को अपने नियंत्रण में रखा है।
वे कहते हैं कि प्रकृति सभी के साथ न्याय करती है। संत जी का कहना है कि जैसे मूसलाधार वर्षा होती है, उससे नदियों में बाढ़ आ जाती है। सब तरफ पानी ही पानी दिखाई देता है। उससे भी बहुत लाभ होता है क्योंकि ताल तलैया भर जाते हैं और धरती के नीचे भी जीवन है, उन जीवों के लिए भी पानी की जरूरत होती है। वे भी ईश्वर की कृपा पर निर्भर हैं।
शैलजाकांत जी कहते हैं कि ये सभी बातें बाबा मुझे बताया करते थे। उनका कथन था कि यदि प्रकृति के किसी भी कार्य से किसी को नफा नुकसान जो भी हो उसे उसको ईश्वरीय प्रसाद के रूप में स्वीकार करना चाहिए क्योंकि चाहे फायदा हो या नुकसान सब कुछ अपने कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है। हमें ईश्वर द्वारा दिए गए किसी भी भोग की आलोचना करके अपने पाप की गठरी को बढ़ाना नहीं चाहिए।
पूज्य देवराहा बाबा द्वारा कही गई गूढ़ रहस्य की ये दुर्लभ बातें बड़ी अनमोल हैं। इनका महत्व हम मोटी और क्षुद्र बुद्धि वाले स्वार्थी लोग अगर समझ लें तो मानो जीवन सफल हो गया। इसके अलावा एक और बहुत दुर्लभ बात शैलजाकांत जी ने मुझे बहुत समय पहले बताई थी। जिसे मैं पहले भी लिख चुका हूं अब पुनः बताता हूं।
बात कई वर्ष पूर्व की है उनसे मेरी फोन पर बात चल रही थी। वह बता रहे थे की किस्सा उस समय का है जब महान संत गया प्रसाद जी जीवित थे। देवराहा बाबा महाराज के देह त्याग के पश्चात शैलजाकांत जी कभी-कभी संत गया प्रसाद जी के पास जाया करते थे। एक बार वे लंबे समय तक नहीं जा पाए जब वे अरसे के बाद गया प्रसाद जी के पास पहुंचे तो गया प्रसाद जी ने पूछा कि बहुत दिन बाद आए हो क्या बात है? इस पर शैलजाकांत जी ने कहा कि महाराज जी मेरी तबीयत ज्यादा खराब हो गई इसलिए नहीं आ पाया।
इसके बाद शैलजाकांत जी ने गया प्रसाद जी से कहा कि महाराज जी अच्छा हुआ जो मेरी तबीयत खराब हो गई। हो सकता है मुझे कोई पाप हो गया होगा, जो कट गया। इतना सुनते ही गया प्रसाद जी बड़े जोर से हंसे और ताली बजाने लगे। जोर से हंसने और तड़ातड़ ताली बजाने के बाद बाबा बोले कि हां बिल्कुल ठीक कहा तुमने, पर लोग समझते कहां हैं इस बात को। कितनी गूढ़ और दुर्लभ बात थी जो इन दो संतों के मध्य हुए वार्तालाप से उपजी।
इन बातों के इस रहस्य को हम मूर्ख लोग अगर गहराई से समझ लें तब तो फिर बात ही क्या है। औरों की क्या कहूं मैं खुद इस कसौटी पर फैलियर महसूस करता हूं। भगवान करे मुझे सद्बुद्धि मिले। एक बात और जो मुझे बताने की इच्छा बलवती हो रही है, क्योंकि यह बात शायद आज तक किसी ने नहीं सुनी होगी। संत शैलजाकांत जी के मुंह से मैंने कई बार सुना है कि घर में कोई व्याधि आ जाए तो उसकी चर्चा ज्यादा नहीं करनी चाहिए। इससे व्याधि देवता प्रसन्न होकर वहीं जमे रहते हैं। वे कहते हैं कि इस घर में तो मेरी खूब आवभगत हो रही है। अतः वे लंबे समय तक जमे रहते हैं। इस बात को ऐसे समझो जैसे अचानक कोई आपदा आ गई अर्थात बीमारी लग गई या दुर्घटना हो गई तो हर समय हर किसी से उस बात का रोना मत रोओ कि हाय हाय से हाय यह हो गया वह हो गया। बस पूरे दिन वही एक ही राग अलापना। यह सब व्याधि देवता को प्रसन्न कर व्याधि को अपने घर में बनाए रखने के लक्षण हैं। संत जी कहते हैं कि यह सब रहस्यमयी बातें बाबा मुझसे कहा करते थे। उनका कथन है कि जो कुछ घटित हो रहा है उसे सहन करते हुए बुरे समय को निकालो फिर तो व्याधि देवता स्वयं ही चुपके से खिसक लेंगे।
हम लोगों का यह बड़ा सौभाग्य है कि ब्रजभूमि में एक से बढ़कर एक दुर्लभ संतों का समागम हुआ है। उनकी विलक्षण बातों के सार रूपी अमृत को यदि हम अपने जीवन में घोल लें तो जीवन की बगिया महक उठेगी। अर्थात 84 लाख योनियों के बाद मिला यह इंसानी जीवन सार्थक हो जाएगा। इससे भी बड़ा फायदा यह होगा कि देखा देखी हमारी अगली पीढ़ियां भी जिनकी खुशहाली के लिए हम लोग प्रयासरत रहते हैं, का भी लोक और परलोक आनंदमयी होगा।