मथुरा। एक बार की बात है देवराहा बाबा के पास दो लोग दर्शनार्थ आये, उन दोनों की एक ही समस्या। एक की लड़की को लड़का नहीं मिल रहा था और दूसरे के लड़के के लिए लड़की की व्यवस्था नहीं बन पा रही थी। बाबा को पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने कहा कि तुम दोनों ही अपने लड़के और लड़की की शादी आपस में कर दो। बाबा की आज्ञा को उन्होंने तुरंत मान लिया और रिश्ता पक्का कर डाला। इसके बाद लड़की के पिता ने बाबा से कहा कि महाराज हमारी बहुत बड़ी समस्या का समाधान आपने कर दिया किंतु एक और कृपा कर दें कि दहेज में क्या देना है? वह भी आपके सामने ही तय हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा। बाबा ने कहा कि ठीक है वह भी किये देता हूं। इसके बाद उन्होंने अपनी मचान के पास से मिट्टी का एक ढेला उठवाकर मंगाया और उसे स्पर्श करके लड़की के पिता को दिलवाकर कह दिया कि इसे लड़के के पिता को दहेज स्वरूप दे दो। लड़की के पिता ने ठीक वैसा ही किया तब बाबा ने कहा कि अब तुम्हारे बेटे बेटी की शादी हो गई और दहेज की समस्या भी निपट गई। बाबा ने कहा कि अब तुम लोग अपने घर जाओ और सात फेरे आदि की सांसारिक परंपराओं की औपचारिकताओं को पूरा कर लो। इसके बाद वे दोनों हंसी-खुशी वहां से अपने-अपने घरों को चले गये।
यह बात मुझे पूज्य देवराहा बाबा महाराज के परम प्रिय शिष्य और उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी संत शैलजाकांत ने विगत दिनों दहेज के बारे में हुई चर्चा के दौरान बताई। बाबा के द्वारा शादी और दहेज के अनोखे अनुष्ठान का संदेश स्पष्ट है। मेरा मानना है कि दहेज प्रथा तो सती प्रथा से भी ज्यादा अनिष्टकारी है क्योंकि सती प्रथा के दौरान तो लाखों में एकाध की जान जाती थी किंतु अब तो कोढ़ से भी बुरी इस बीमारी के कारण पूरे देश में रोजाना सैकड़ो अवलाओं की जान जा रही है, और हजारों उत्पीड़ित होते हुए नारकीय जीवन जी रही हैं। दहेज या अन्य किसी प्रकार से लड़का व लड़की पक्ष में हो रहे लेने-देन तथा विवाह शादियों में हो रही फिजूल खर्ची को देखकर मेरा मन तो जलता भुनता रहता है। मैंने अपनी शादी बगैर दहेज बगैर बारात की निकासी तथा बगैर किसी दावत के की। सिर्फ लगुन में जलपान रखवाया। शादी में कुल 10-12 लोग लड़की वालों के यहां गये और फेरे डलवा कर वापस आ गये।
लगभग 5 दशक पूर्व दहेज के प्रति उस दिन बड़ी जबरदस्त घृणा हुई जब मैंने एक समाचार पत्र की प्रथम पृष्ठ पर दिल दहलाने वाली एक खबर व फोटो देखा, जिसमें कानपुर की तीन सगी बहनों ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी तीनों बहनें शादी योग्य थीॅ तथा माता-पिता गरीब थे। वह बेचारे रात दिन अपनी बेटियों की शादी के लिए चिंतित रहते। उनकी चिंता दूर करने के लिए तीनों बहनों ने यह आत्मघाती कदम उठाया। पंखे से लटकी तीनों बहनों का फोटो देखकर तो मेरी आत्मा रो उठी। इस दहेज खोरी के चक्कर में ही गर्भ में कन्याओं की हत्या हो रही है। आज अष्टमी का दिन है दिखावट के लिए कन्याओं की पूजा हो रही है किंतु सच्चाई में कन्याओं की पूजा का ढोंग करने वाले ये दहेज खोर ही अधिकांशतः कन्या हत्यारे हैं। इन चांडाल नर पिशाचों को अपने कर्मों का फल जन्म-जन्मांतर तक भुगतना पड़ेगा और मृत्यु पर्यंत भी उनकी मुक्ति सैकड़ो हजारों साल तक नहीं होगी और उनकी आत्मा तड़पती ही रहेंगी।