मथुरा। मेरे एक भाई हैं, नाम है उनका शैलेंद्र कुमार सिंह। किसी जमाने में वे मथुरा में सिटी मजिस्ट्रेट रहे बाद में यहां जिला मजिस्ट्रेट बनकर आए उसके बाद अब आगरा के मंडलायुक्त बन चुके हैं। लोग सोचने लग गए होंगे कि यह बनिया और वे ठाकुर फिर भाई होने का क्या मतलब।? शायद विजय कुमार गुप्ता की मति मारी गई है या फिर इतने बड़े पद पर बैठे शैलेंद्र जी के साथ भाई चारा दिखा कर अपनी शेखी बघार रहा है।
हो सकता है सोचने वालों की बात में दम हो किंतु मेरे साथ जो घटनाक्रम घटित हो रहे हैं और हाल ही में एक नया घटनाक्रम घटित हुआ है, उससे स्पष्ट हो जाएगा कि मेरी बात में दम है या नहीं? बात कुछ दिन पहले की है एक अप्रैल का दिन और समय रात साढ़े आठ बजे का। मुझे ऊधम बाजी सूझी मैंने फोन मिला दिया शैलेंद्र सिंह जी को, उधर से प्रसन्नचित लहजे में उन्होंने कुशलछेम पूछी मैंने मुरझाई आवाज में कहा कि मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं। आपके सहयोग की सख्त जरूरत है। वे चौंक से गए और बोले कि बताइए क्या बात हो गई और मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? मैंने कहा कि आपको याद होगा एक बार आपने मुझसे कहा था कि यदि मेरे लायक कोई काम हो तो अवश्य बतावें, मुझे प्रसन्नता होगी कि मैं आपके किसी काम आ सकूं। उन्होंने हल्का सा इशारा यह भी किया कि यदि आर्थिक रूप से भी कभी मेरी मदद की जरूरत पड़े तो संकोच न करें। इसके बाद उन्होंने कहा कि हां मैंने कहा था। अब आप बताइए कि आप किस मुसीबत में फंस गए हैं और मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं? मैंने बड़ी मरगिल्ली सी आवाज बनाते हुए कहा कि शैलेंद्र जी इस समय मुझे पचास लाख रुपए की सख्त जरुरत पड़ गई है, क्या आप मेरी मदद कर देंगे? इस पर वे चौंक से गये और बोले कि पचास लाख तो बहुत ज्यादा होते हैं। फिर बोले कि यह तो बताइए कि आपको पचास लाख की किस लिए जरूरत पड़ गई?
इस पर मैंने कहा कि यह बात तो मैं बाद में बताऊंगा किंतु आप पहले यह बताइए कि क्या इस संकट के समय आप मेरी मदद कर पाएंगे या नहीं? इस पर उन्होंने जो शब्द इस्तेमाल किये उन्हें सुनकर मैं अवाक रह गया। शैलेंद्र जी ने कहा कि "भाई साहब पचास लाख की तो नहीं पर हां अपनी सामर्थानुसार जो कुछ संभव हो सकेगा करूंगा अंत में उन्होंने जो शब्द इस्तेमाल किये वे ये थे कि "हमारा जो कुछ है वह आपका ही है"। उनके इन शब्दों से मुझे जो प्राप्ति हुई उसका मूल्य पचास लाख तो क्या अरबों खरबों से भी ऊपर का है। "हमारा जो कुछ है वह आपका ही है" उनका यह वाक्य सुनने के बाद फिर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने पूछा कि जरा यह बताइए कि आज तारीख कौन सी है? इस पर उन्होंने कहा कि एक। तब मैं यह कहने वाला ही था कि महीना कौन सा है? इस पर वे तुरंत भांप गए कि माजरा क्या है? और झट से बोले कि अच्छा तो आपने हमें अप्रैल फूल बना दिया इसके बाद तो हम दोनों खूब हंसे।
अब मुझे कोई बताऐ कि आज के इस घनघोर कलयुग में जब भाई भाई की मदद करना तो दूर, उसके खून के प्यासे तक हो रहे हैं, तब शैलेंद्र जी ने मेरे साथ जो भाईचारा निभाया है उसके लिए मैं क्या कहूं क्या न कहूं कुछ समझ में नहीं आ रहा। मैंने उनसे कहा कि शैलेंद्र जी मैंने मर्यादा और शालीनता की सारी सीमाओं को लांघकर आपके साथ यह नालायकी की है। इस पर वे बोले कि यह आपका अधिकार है। अब और ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता सिर्फ इतना कहूंगा कि मैं बड़ा भाग्यशाली हूं जो मुझे दो भाई बड़े दुर्लभ मिले। एक छोटे भाई संत शैलेंद्र कुमार सिंह और दूसरे बड़े भाई संत शैलजाकांत। मैं उनके अनमोल प्रेम से अभिभूत हूं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि घर-घर में शैलजाकांत और शैलेंद्र कुमार जन्मे तथा दुनिया में भाईचारे की गंगा बहे।