मथुरा। एक महापुरुष थे लाला किशोरी लाल भार्गव, वे मथुरा में बड़े ही अजब गजब का कमाल कर गये। कमालों के बारे में आज की पीढ़ी बिल्कुल अनभिज्ञ है।उनके कमालों की श्रृंखला लंबी है। उस पुराने जमाने में जब अंग्रेजों का शासन हुआ करता था तथा पढ़ाई लिखाई के नाम पर मथुरा नगरी लगभग शून्य सी थी तभी से इन्होंने शिक्षा के मंदिरों व अन्य सामाजिक योगदानों की झड़ी लगा दी।
लाला किशोरी लाल भार्गव का जन्म 1814 में हुआ था। वे दिल्ली के बहुत बड़े जमींदार थे। उनके पास बेशुमार संपत्ति थी दुर्भाग्य की बात यह कि वे निसंतान थे। उनके गुरु वृंदावन के संत राधा रमण जी महाराज ने आज्ञा दी कि अपनी धन संपत्ति को ब्रजभूमि की सेवा में लगा दो। इसके बाद लाला किशोरी लाल भार्गव ने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सन 1878 में चौक बाजार स्थित लाल दरवाजे के निकट ठाकुर किशोरी रमण महाराज के मंदिर की स्थापना की। किशोरी रमण मंदिर के नाम में उन्होंने आधा नाम अपने नाम में से और आधा अपने गुरु राधा रमण जी के नाम में से लिया तब हुआ किशोरी रमण। इस मंदिर का उन्होंने एक ट्रस्ट बना दिया।
अब उनके कमालों की श्रृंखला शुरू हो गई। मंदिर के बाद उन्होंने किशोरी रमण नाम के विद्यालयों महाविद्यालयों से लेकर मोंटेसरी स्कूलों तक की झड़ी लगा दी। सबसे पहले उन्होंने चौक बाजार स्थित भार्गव गली के सामने आठवीं तक की किशोरी रमण पाठशाला बनाई उसके बाद 1936 में किशोरी रमन इंटर कॉलेज तथा बाद में 1947 में डिग्री कॉलेज व ट्रेनिंग अकादमी की स्थापना की किशोरी रमण डिग्री और इंटर लड़कों का अलग लड़कियों का अलग। 1944 में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने हेतु सिलाई कढ़ाई का ट्रेनिंग कॉलेज बनाया इसके अलावा बच्चों के लिए किशोरी रमण मोंटेसरी स्कूल भी बनाया। लाला किशोरी लाल ने जयसिंह पुरा में किशोरी रमण वाटिका की स्थापना भी की। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि सबसे पहले जो किशोरी रमण पाठशाला आठवीं तक की बनाई उसके मैनेजर द्वारकानाथ भार्गव तथा हेड मास्टर रामचंद्र भार्गव और अपने साले लक्ष्मी नारायण भार्गव व सलहज भगवान देवी के साथ "अमरनाथ विद्या आश्रम" की स्थापना गुरुकुल पद्धति के अनुसार की। इसकी जमीन खरीदने में पैसा लाला किशोरी लाल के साले व सलहाज ने लगाया। दरअसल किशोरी लाल जी के साले व सलहज का एक ही बेटा था उसका नाम था अमरनाथ। दुर्भाग्य से वह बालक अल्पायु में चल बसा उसी के नाम पर "अमरनाथ विद्या आश्रम" नाम रखा गया।
लाला किशोरी लाल भार्गव को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था और इन सभी मंदिर, वाटिका व शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लगभग 6 माह पश्चात वे चल बसे। उन्होंने उस जमाने में जब मथुरा में शिक्षा के नाम पर स्थिति लगभग नगन्य सी थी तब एक से बढ़कर एक अजब गजब के चमत्कारिक कार्य करके अपना नाम अमर कर दिया। यदि यौं कहा जाए कि कृष्ण की नगरी में शिक्षा का अलख उन्होंने ही जगाया तो गलत नहीं होगा। इन सभी शिक्षण संस्थाओं का संचालन किशोरी रमण मंदिर के ट्रस्ट द्वारा किया जाता है जिसके प्रबंधक राजीव भार्गव उर्फ गुड्डू भार्गव है।
लाला किशोरी लाल भार्गव ब्रजभूमि के लिए जो अद्भुत और अलौकिक कार्य कर गए उसके लिए यहां का कण-कण उनका कृतज्ञ रहेगा। भले ही उनकी कोई संतान नहीं थी किंतु लाखों बच्चों ने उनके द्वारा स्थापित शिक्षा के मंदिरों में जो ज्ञान प्राप्त किया उसका कोई मोल नहीं वह अनमोल है। ये लाखों बच्चे उनकी अपनी खुद की संतान से भी बढ़कर हैं। किशोरी लाल जी को भले ही आज के लोग न जानते हों किंतु ब्रजभूमि की रज के कण-कण में वे समाये हुए हैं।