मारे गए दोनों लोगों और तीनों घायलों का इस सबसे कोई लेना-देना नहीं
इतना जरूर है कि मृतक सुंदर का इनमें से एक के साथ उठना बैठना था, जिस कारण वह हमलावरों के निशाने पर आ गया।
यही नहीं, हथियारों की तस्करी और चौथ वसूली को लेकर बाजार पर वर्चस्व के लिए चलने वाली इस खींचतान से इलाका पुलिस भी कभी अनभिज्ञ नहीं रही क्योंकि इसकी जड़ें करीब डेढ़ दशक से कोतवाली क्षेत्र में जमी हुई हैं।
कल हुए घटनाक्रम की वजह चाहे आरोपी पक्ष (सब्जी वाले) से कुछ दिन पूर्व हुई कहासुनी को बताया जा रहा हो परंतु सच तो यह है कि आरोपी पक्ष सब्जी की दुकान सिर्फ दिखावे के लिए चलाता था, हकीकत में वह एक बड़े गैंग से जुड़ा है और उसी गैंग से पनपी रंजिश के कारण कल दुस्साहसिक वारदात को अंजाम दिया गया। मौके पर मिला प्रतिबंधित बोर का हथियार इस बात की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है कि कोई मामूली गुंडा या सड़क छाप बदमाश वैसा हथियार इस्तेमान करने की हैसियत नहीं रखता।
कुछ दिन पूर्व कोतवाली के सामने ‘खारन’ कहलाने वाले मौहल्ले में आरोपी के साथ कहासुनी भी हथियारों की किसी डील और चौथ वसूली के लिए बाजार पर वर्चस्व को लेकर हुई थी, न कि सब्जी के पैसों को लेकर।
सच तो यह है कि शहर कोतवाली क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा लंबे समय से हथियारों एवं मादक पदार्थों की तस्करी के साथ सट्टेबाजी का केन्द्र बना हुआ है और इस सबको हर दौर में पुलिस का संरक्षण भी मिलता रहा है।
पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि टीलों पर बसे तमाम गली-मौहल्लों सहित छत्ता बाजार से लेकर चौक बाजार से संचालित होने वाले कई गैंग एक खास व्यापारी वर्ग को अपने कब्जे में रखने के लिए डेढ़ दशक से टकरा रहे हैं और इस टकराव में कई जानें पहले भी जा चुकी हैं लेकिन हर बार पुलिस इनका मुकम्मल इंतजाम करने में नाकाम रही है क्योंकि पुलिस के लिए वो ‘दुधारु गाय‘ से कम साबित नहीं होते।
याद कीजिए होलीगेट अंदर मयंक ज्वैलर्स के यहां हुए उस दोहरे हत्याकांड और करोड़ों रुपए की लूट का जिसने नई नवेली योगी सरकार तक को बेशक हिलाकर रख दिया था किंतु इलाका पुलिस ने वही किया, जो उसे अपने हिसाब से करना था।
कल की घटना के जिस हमलावर को जिला अस्पताल से पकड़ा गया, वो भी वहां इलाका पुलिस के इशारे पर ही क्रॉस केस दर्ज कराने के मकसद से मेडीकल कराने पहुंचा था।
ये बात अलग है कि मौके पर मौजूद पीड़ित पक्ष ने उसे पहचान कर जब पुलिस के सुपुर्द किया तो पुलिस ने उसे भी गुडवर्क की तरह पेश करके वाहवाही लूटने की कोशिश की।
बताया जाता है कि कोतवाली से ही अपना काम करने वाली पुलिस की लोकल इंटेलीजेंस यूनिट यानी एलआईयू तक इस पूरे खेल से भलीभांति परिचित है किंतु कभी उसने इसके बारे में किसी उच्च अधिकारी को अपनी कोई रिपोर्ट दी हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आया। यह सब क्यों होता रहा, इसका कारण समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने की जरूरत नहीं रह जाती।
जहां तक सवाल कल एक भीड़ भरी गली में गोलीबारी करके दो लोगों की जान लेने तथा तीन लोगों को घायल करने वालों का है, तो उनके साथ मौके पर कुछ ऐसे सफेदपोश भी थे जो वर्षों से मोहरे लड़ाते रहे हैं। उनके लिए हर मारने वाला और मरने वाला एक चेहराभर होता है, इससे अधिक कुछ नहीं।
यही कारण है कि न कभी इस इलाके से गैंगवार खत्म हो पाई और न गैंग। खत्म हुए तो बस कुछ नाम और कुछ चेहरे।
संभवत: इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि सफेदपोश सरगनाओं का नाम सामने लाने की हिम्मत कोई नहीं करता। इस मामले में भी भले ही कुछ अज्ञात लोगों के नाम सामने आ रहे हैं परंतु तय समझिए कि उनका खुलासा नहीं होने वाला।
होगा तो सिर्फ इतना कि हमेशा की तरह लकीर पीटकर कानूनी कार्यवाही पूरी कर दी जाएगी ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए।