विजय कुमार गुप्ता
मथुरा । हिंदूवादी नेता एवं वरिष्ठ भाजपाई गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने कहा है कि आज कल गुरुओं के नाम पर गुरु घंटालों की बाढ़ आई हुई है। इन गुरु घंटालों का ऊपरी जीवन तो सात्विक दिखाई देता है किंतु निजी जीवन राक्षसी है।
श्री चतुर्वेदी ने कहा है कि मैं वृंदावन के कई कथा वाचकों को जानता हूं जो कथा वाचन के शुरु में और कथा वाचन के पश्चात् भी पैग लेते हैं। इनकी अय्याशी किसी से छिपी नहीं है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे ऐसे वाचाल कथा वाचकों की कथा तक ही सीमित रहें। कथा श्रवण करें और भागवत भक्ति में लीन रहें। बस यहीं तक अपने को बनाये रखें। इनसे ज्यादा लिपटें-चिपटें नहीं।
श्री चतुर्वेदी ने वरिष्ठ साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार देवकी नंदन कुम्हेरिया के उस बयान का भी समर्थन किया है जिसमें उन्होंने अंग्रेजियत में लिपटे-चिपटे बाबाओं की पोल खोली है, जो जन्मदिन पर केक काटते हैं, औरतों से माई डियर कहते हैं, सुंदर लड़कियों का चुम्बन कर लेते हैं तथा उन्हें गले से लगाने से भी नहीं चूकते जबकि संत महात्माओं द्वारा महिलाओं को माँ, बहन, बेटी कहकर संबोधित करना चाहिये तथा उनका स्पर्श भी नहीं करना चाहिये। स्वामी नारायण सम्प्रदाय में तो संत महात्मा औरतों की तरफ देखते भी नहीं, उनके सत्संग में महिलायें ओट लेकर बैठती हैं। उन्होंने इसके लिये श्री कुम्हेरिया को फोन करके बधाई दी।
श्री चतुर्वेदी कहते हैं कि धनपतियों के ये बाबा प्रतिवर्ष 31 दिसम्बर व 1 जनवरी के मध्य की रात्रि में जोर शोर से नववर्ष का स्वागत करते हुए खुशी मनाते हैं। उन्होंने कहा है कि हमारा नव वर्ष तो संवत्सर है। संवत्सर पर नव वर्ष का स्वागत करते हुए खुशी मनानी चाहिये जो हमारी संस्कृति के अनुरूप है। पाश्चात्य संस्कृति में ढल जाना भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने जैसा है जो उचित नहीं है। हो सकता है आगे चलकर ये क्रिसमस मनाने लग जायें।
अंत में उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो किसी मठ के मठाधीश हो चाहे प्रवचनकर्ता के रूप में हों, अथवा भागवत या अन्य किसी भी कथा वाचक के रूप में हों। वे संत नहीं अभिनेता कहलाने चाहिये। क्योंकि अभिनेताओं का अपनी असल जिंदगी में कोई और रूप होता है और अभिनय की जिंदगी में कोई और रूप। ये ही लोग असली एक्टर हैं।