दिवाली की रात जब सब लोग दीपोत्सव की खुशियां मना रहे थे, घरों में मां लक्ष्मी और गणपति के आह़्वान के लिए पूजा-पाठ चल रहा था। लोग एकदूसरे को दिवाली की बधाई दे रहे थे और मिठाई खिला रहे थे, तब एक ऐसी जगह भी थी, जहां कोरोना से निजात के लिए तांत्रिक और तपस्वियों के जुटने का सिलसिला चल रहा था। मोक्ष नगरी काशी यानी वाराणसी में दिवाली की रात तंत्र साधक कोरोना से निजात के लिए शव साधना कर रहे थे।
वाराणसी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच साधकों ने वैश्विक महामारी कोरोना को भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया शव साधना की। बताया जाता है कि तंत्र साधक दिवाली की रात महाश्मशान पहुंचते हैं और तांत्रिक सिद्धियों के लिए देवी काली और बाबा भैरव के साथ ही बाबा मशान नाथ की उपासना करते हैं। सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तांत्रिक पूरी रात बाबा मशान नाथ के मंदिर से लेकर जलती चिताओं तक, तंत्र क्रियाएं करते हैं।
अघोरी दिवाली की रात को कहते हैं महानिशा काल
इस तंत्र साधना के संबंध में अघोरी कहते हैं कि दिवाली की रात को महानिशा काल कहा जाता है। इसलिए तामसिक साधना करने वाले को चमत्कारी सिद्धियां मिलती हैं। महाश्मशान पर साधना कर रहे अघोरी बाबा मणिराम बताते हैं कि तामसिक क्रिया करने के लिए शराब और मांस के साथ ही नरमुंड चाहिए होता है। जलती चिताओं के बीच बैठकर बलि दी जाती है और इस बार ये तंत्र साधना हुई। उन्होंने कहा कि यह साधना कोरोना से मुक्ति को लेकर की गई है।
कैसे होती है शव साधना
शव साधना में श्मशान पर बैठ कर महाकाली की उपासना और शक्ति का आह्वान किया जाता है। इस क्रिया को तामसी क्रिया कहा जाता है। यहां भी बलि दी गई, लेकिन मुर्गे या बकरे की जगह नींबू की। इस तांत्रिक क्रिया को करने वाले एक साधक की मानें तो इस महाश्मशान पर वैसे तो हमेशा ही भगवान शंकर रहते हैं, लेकिन दिवाली की रात काली निशा में महाकाली भी मौजूद रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि दिवाली की रात साधना से भगवान तुरंत प्रसन्न होते हैं।