राघव शर्मा की रिपोर्ट
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षयनवमी के रुप में मनाया जाता है। सोमवार 23 नवंबर यानि आज सभी भक्त अक्षयनवमी को पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं। आइए जानें शास्त्रों में इसका महत्व और पूजन की विधि-
धार्मिक मान्यता है की आंबले के वृक्ष मैं सभी देवी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। चरक संहिता के अनुसार कार्तिक कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी महर्षि च्यवन को आंबला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था।
प्रात: काल स्नान कार आंबले के वृक्ष की पूजा की जाती है पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर ्षोड्षोचार से पूजन कर वृक्ष के तने मैं दूध चढ़ाएं कपूर वर्तिका से आरती करें तथा परिक्रमा कर वृक्ष के नीचे भोजन कराएं तथा दान करें। आंवले के वृक्ष की पूजा तथा आंवले का सेवन करने से निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
प्राचीन काल में वणिक की पत्नी को को कोढ रोग हो जाने से उसे पति तथा देश से निकाल दिया था। वणिक की पत्नी जंगल जंगल भटकने लगी थी। एक ऋषि द्वारा उसे उपाय के रूप में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष नवमी को बताया गया की आंवले का सेवन करें तथा आंबले का पूजन कर उसके नीचे नीचे ही भोजन बनाकर ग्रहण करें। उसके तेल का सेवन करने से उसको रोग से मुक्ति प्राप्त होकर स्वस्थ एवं सुंदर काया प्राप्त होगी वणिक पत्नी से यथास्थिति उपाय किया और रोग मुक्ति से प्राप्त किया।