के.डी. मेडिकल कालेज में जैविक कचरा प्रबंधन पर हुआ सेमिनार
मथुरा। के.डी. मेडिकल कालेज-हास्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर में सोमवार को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट (अस्पतालों में जैविक कचरा प्रबंधन) विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में चिकित्सकों ने अस्पतालों में जैविक कचरा प्रबंधन को समय की जरूरत बताते हुए अपने-अपने विचार व्यक्त किए। सेमिनार का शुभारम्भ डीन डा. रामकुमार अशोका और निदेशक एकेडमिक एण्ड रिसर्च डा. अशोक कुमार धनविजय ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलित कर किया।
निदेशक एकेडमिक एण्ड रिसर्च डा. अशोक कुमार धनविजय के साथ सेमिनार में अपने विचार साझा करने वाले चिकित्सक।
एक दिवसीय सेमिनार में चिकित्सकों ने बायोमेडिकल वेस्ट हैंडलिंग व मैनेजमेंट, तरल अपशिष्ट कीटाणु शोधन उपचार प्रणाली, सीवरेज संयंत्र खरीद और रिकार्ड रखाव के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। डीन डा. रामकुमार अशोका ने कहा कि आज कचरा किसी भी रूप में हो, वह देश और दुनिया के लिये बहुत बड़ा पर्यावरणीय संकट बनता जा रहा है। हर शहर में प्रतिदिन सैकड़ों टन चिकित्सकीय कचरा निकलता है। यह बायोमेडिकल कचरा हमारे-आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इससे न केवल बीमारियां फैलती हैं बल्कि जल, थल और वायु सभी दूषित होते हैं।
यह कचरा भले ही एक अस्पताल के लिये मामूली कचरा हो लेकिन भारत सरकार व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के लिए बहुत गम्भीर विषय है। ऐसे कचरे से इंफेक्शन, एचआईवी, महामारी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होने का भी डर बना रहता है। डा. अशोका ने कहा कि मानव विकास के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आधुनिक तरीके से अनुसंधान एवं विकास हो रहे हैं, परंतु उससे उत्पन्न कचरे का समुचित प्रबंधन न होने के कारण समस्या बढ़ती जा रही है और लोग अनचाही बीमारी की जद में आ रहे हैं।
निदेशक एकेडमिक एण्ड रिसर्च डा. अशोक कुमार धनविजय ने कहा कि हमारे देश में लगभग 484 टन प्रतिदिन बायो-मेडिकल वेस्ट उत्पन्न होता है जिसमें से लगभग 477 टन प्रतिदिन संयंत्रित होता है और बाकी ऐसे ही पर्यावरण में फेंक दिया जाता है जोकि काफी जोखिम भरा साबित हो रहा है। जब इस बायो-मेडिकल वेस्ट को वैज्ञानिक तरीके से निपटाया जाता है, तब इसका स्वास्थ्य कर्मियों और वातावरण पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। इससे कोई इंफेक्शन फैलने का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।
डा. धनविजय ने बताया कि अस्पताल से निकलने वाले जैविक कचरे में 85 फीसदी खतरनाक नहीं होते लेकिन 15 फीसदी जैविक कचरे से जानवरों और इंसानों में कई प्रकार की बीमारियां फैल सकती हैं। अस्पतालों से निकलने वाले जैविक कचरे में उपयोग की गई सूईयां, ग्लूकोज की बोतलें, एक्सपाइरी दवाएं, दवाइयों के रैपर, आईवी सेट, एक्सरे फिल्म, दस्तानों के साथ-साथ कई अन्य सड़ी-गली वस्तुएं होती हैं।
डा. धनविजय ने कहा कि बायोमेडिकल कचरे का सही ढंग से निपटान करने के लिये कानून तो बने हैं लेकिन उनका पालन ठीक से नहीं हो रहा। इसके लिये केंद्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिये बायोमेडिकल वेस्ट (प्रबंधन व संचालन) नियम, 1998 बनाया है। बायोमेडिकल वेस्ट अधिनियम 1998 के अनुसार निजी व सरकारी अस्पतालों को इस तरह के चिकित्सीय जैविक कचरे को खुले या सड़कों पर नहीं फेंकने के सख्त निर्देश हैं। इस जैविक कचरे को खुले में डालने पर अस्पतालों के खिलाफ जुर्माने व सजा का भी प्रावधान है। कूड़ा निस्तारण के उपाय नहीं करने पर पांच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। डा. धनविजय ने बायोमेडिकल वेस्ट (मैनेजमेंट एण्ड हैंडलिंग) रूल्स, 2016 पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
सेमिनार में डा. विजय प्रकाश सिंह, डा. कांधा कुमारी, डा. देवेश शर्मा, डा. वरुणा गुप्ता आदि ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए। सेमिनार की आयोजन प्रमुख डा. गगनदीप कौर ने चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा पर विस्तार से प्रकाश डाला।