मानव सहित पृथ्वी लोक पर जितने भी जीव हैं, सबका शरीर पंच तत्वों से बना है। जो कि एक समय आने पर पंचतत्व में ही विलीन हो जाना है। यानि जन्म के बाद मृत्यु का होना निश्चित है। लेकिन देश-विदेश में मृत्य के बाद उसे पार्थिव शरीर को वह पंच तत्व में किस तरह विलीन करते हैं यानि उसका अंतिम संस्कार करने के तरीके अलग-अलग हैं। इसी अंतिम संस्कार के साथ सभी जाति, धर्मों में अपनी-अपनी परंपराएं अपना ली हैं।
लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि हर जगह अंतिम संस्कार करने की प्रथाएं अलग अलग होती है। ऐसे में कई जगहों पर तो शरीर को जलाया जाता है और कई जगहों पर उसे दफनाया जाता है। हम सबने देखा है की जो भी शख्स अंतिम संस्कार की यात्रा के साथ श्मशान तक जाता है तो उसको नहाना जरुरी होता है।
महिलाओं का दिल कोमल होता है। वो छोटी सी बात को लेकर भी उनके मन में डर बैठ जाता है। श्मशान में मृत शरीर का अंतिम संस्कार करते समय शोक का माहौल होता है। उस समय लोग रोते हैं जिसका असर महिलाओं और छोटे बच्चों के मन पर पड़ सकता है।
इसलिए उन्हें श्मशान घाट जानें से रोका जाता है। समाज के लोगों ने महिलाओं व छोटे बच्चों को श्मशाम में जाने से रोका जाता है।और आज के लोगों कि विज्ञान कहती है कि मृत शरीर के अंदर किटाणु आ जाते है शरीर को जलाते समय वो किटाणु आसपास में फेल जाते है।
और हमारे भी अंदर आ जाते है।इसलिए श्मशान से आते समय हम स्नान करके घर लोटते है वो किटाणु इंसान के बालो में चले जाते है ओर पुरुष के बाल छोटे होते है ओर महिला के बडे होते है इसलिए नहाने से भी महिलाओं के बालो में से वो नहीं निकलते है।