Saturday, November 23, 2024
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रटंत सिद्धांत का ब्लूम टेक्सोनॉमी में कोई स्थान नहीं


राजीव एकेडमी में ब्लूम टेक्सोनॉमी पर हुआ अतिथि व्याख्यान

मथुरा। शिक्षण वह शैक्षिक कार्य है जिसके द्वारा छात्र-छात्राओं के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है। इसमें सबसे अधिक योगदान ब्लूम टेक्सोनॉमी का है। ब्लूम वर्गीकरण को मानसिक जीवन के तीन पक्षों ज्ञान, भावना और कर्म के आधार पर विकसित किया गया है। इसे ज्ञानात्मक, भावनात्मक एवं क्रियात्मक क्षेत्र कहते हैं। यह जानकारी शनिवार को राजीव एकेडमी फॉर टेक्नोलॉजी एण्ड मैनेजमेंट के बी.एड. विभाग द्वारा आयोजित आनलाइन अतिथि व्याख्यान में आर्मी इंस्टीट्यूट आफ एज्यूकेशन ग्रेटर नोएडा में असिस्टेंट प्रोफेसर (डॉ.) ज्योति तिवारी ने भावी शिक्षकों को दी।


डॉ. ज्योति तिवारी ने बताया कि ब्लूम टेक्सोनॉमी शिक्षण की व्यापक रूप से स्वीकृत रूपरेखा है जिसके माध्यम से सभी शिक्षकों को अपने छात्र-छात्राओं को संज्ञानात्मक सीखने की प्रक्रिया के माध्यम से मार्गदर्शन करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, शिक्षक इस फ्रेमवर्क का उपयोग उच्च-क्रम सोच कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए भी करते हैं।

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उन्होंने बताया कि शिक्षा में चल रहे विभिन्न नवाचारों की उपयोगिता ज्ञात करने तथा नवीन प्रविधियों की खोज में भी ब्लूम टेक्सोनॉमी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने बी.एड. के विद्यार्थियों को ब्लूम टेक्सोनॉमी की उपयोगिता समझाते हुए कहा कि अधिगम के तीन डोमेन होते हैं। काग्नेटिव अर्थात् सिर या मस्तिष्क से सम्बन्धित एवं इफेक्टिव यानी हार्ट से सम्बन्धित, साइको मोटर अर्थात् जो शरीर के अन्य अंगों से सम्बन्धित है।
डॉ. तिवारी ने विद्यार्थियों को समझाया कि रटने वाली परिपाटी का ब्लूम टेक्सोनॉमी में कोई स्थान नहीं है। स्वयं बेंजामिन ब्लूम एवं महात्मा गांधी ने भी शिक्षा में रटंत सिद्धांत का विरोध किया था। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि एक शिक्षक को कक्षा में अधिगम के समस्त छह स्तरों ज्ञान, अवबोध, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण, मूल्यांकन पर ध्यान देना अति आवश्यक है।

बेंजामिन के साथी एण्डरसन ने ब्लूम टेक्सोनॉमी में थोड़ा परिवर्तन करके ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग से संश्लेषण को हटाकर मूल्यांकन और सृजनात्मक कर दिया। छोटे बच्चे अपने अभिभावक को देखकर नकल करते हैं फिर अपने तरीके से कार्य करने की कोशिश करते हैं। धीरे-धीरे बिना किसी मदद के अपना कार्य करना सीख जाते हैं। साइकिल चलाना सीखना इसका पुष्ट उदाहरण है। अतिथि व्याख्यान के बाद संस्थान के निदेशक डॉ. अमर कुमार सक्सेना ने वक्ता डॉ. ज्योति तिवारी का आभार माना।

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