किशन चतुर्वेदी
हिंदी फिल्मी दुनिया के एक युग का अंत हो गया। मुझे याद है आगरा के मुगल होटल में विधाता की शूटिंग चल रही थी। मैं उन दिनों आज अखबार में कल्चरल रिपोर्टिंग करता था। इस शानदार कलाकार से मुलाकात का मुझे मौका मिला था। मुगल की शानदार लाबी में घुमावदार सीढियों से उतरते हुए दिलीप साहब पर कैमरा घूम रहा था और बड़ी ठसक के साथ एक-एक कदम उतर रहे इस कलाकार की अदा पर वहां मौजूद हर व्यक्ति फिदा हो रहा था। इस फिल्म का वह डायलाग, ‘बड़ा आदमी अगर बनना है तो छोटी हरकतें मत करना’। सच में ये डायलाग कोई और कलाकार बोलता तो शायद आज याद भी न होता। उन्हें चाहने वाले कहते हैं कि दिलीप कुमार की संवाद अदायगी फिल्म में उनके करेक्टर को बहुत बड़ा बना देती थी। मात्र 60 हिंदी फिल्मों में काम करके यह कलाकार हिंदी सिनेमा का बेताज बादशाह बन गया। अभिनय की ऐसी मिसाल बनाई कि उनके समकक्ष और बाद में आने वाले बड़े-बड़े कलाकारों ने इनकी कापी कर प्रसिद्धी पा ली।
लंबे समय से बीमार चल रहे दिलीप कुमार अक्सर अस्पताल से स्वस्थ होकर लौट आते थे लेकिन इस बार नहीं लौट सके। दुनिया में उनको चाहने वाले करोड़ों लोग उनके निधन की सूचना से शोक में डूब गए। दिलीप साहब के बारे में आज तमाम माध्यमों से बारीक से बारीक जानकारी उनके चाहने वालों को मिल रही है। दिलीप साहब का आम आदमी वाला चेहरा लोगों को ऐसा भाया कि वे उनके बहुत करीबी हो गए। उनके परिवार में कोई भी अभिनय क्षेत्र से नहीं था और वे स्वयं भी कभी किसी अभिनय की पाठशाला में अभिनय सीखने नहीं गए लेकिन अपने बूते वे स्वयं अभिनय की पाठशाला बन गए। आज जब हम बालीवुड की ओर निगाह घुमाते हैं तो हर कलाकार किसी न किसी विवाद से घिरा नजर आता है लेकिन दिलीप कुमार जैसा कलाकार जिसने वर्षों हिंदी सिनेमा पर राज किया निर्विदाद ही रहा। लोग उनसे प्यार करते थे, और करते रहेंगे चाहे वे इस दुनिया में रहें या न रहें। बैराग फिल्म में उनके द्वारा बोला गया डायलाग, ‘प्यार देवताओं का वरदान है जो केवल भाग्यशालियों को मिलता है’, उनपर ही अमल हो गया।
बाम्बे टाकीज की मालकिन देविका राय को फलों की एक दुकान पर फल बेचते यूसुफ सरवर खान में कुछ ऐसा नजर आ गया कि उन्होंने इस युवक को अपने यहां भर्ती कर लिया और वही युवक फिर आगे चलकर अभिनय की दुनिया का चमकता सितारा दिलीप कुमार बन गया। मशाल फिल्म में दिलीप कुमार ने किस अदा से बोला था, ‘हालात, किस्मतें, इंसान, जिंदगी, वक्त के साथ-साथ सब बदल जाता है’। सच कहा था। दिलीप कुमार के साथ भी यही हुआ। पहली फिल्म ज्वार-भाटा (जो उस समय नही चली थी) के बाद उन्होंने एक के बाद एक यादगार हिट फिल्में दीं, जिनमें उनके काम को आज भी लोग भूले नहीं हैं। आम आदमी के चेहरे वाला यह कलाकार अपनी अभिनय की क्षमता से आम आदमी का चहेता बन गया। 25 वर्ष की ही उम्र में वे देश के पहले नंबर के अभिनेता बन गए थे।