Sunday, November 24, 2024
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भगवान शिव के वरदान से शनिदेव बने ग्रहों के स्वामी, पढ़ें शनि की जन्म कथा, जानिए कैसे प्रसन्न करें

शनिदेव न्याय के देवता कहे जाते हैं। भक्तजन आज शनिवार के दिन शनि देव की पूजा अर्चना कर रहे हैं। शनि देव ने भगवान शिव से वर मांगा था, ‘मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें। इस पर भगवान शिव ने कहा कि तुम नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वाेच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे।’ मान्यता के अनुसार, शनिवार के दिन शनि देव शनिदेव को तेल और एक रुपये चढ़ाने से उनकी कृपा मिलती है। आइए जानते हैं शनिदेव के जन्म की कथा…

पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी स्वर्णा (छाया) की कठोर तपस्या से ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि का जन्म हुआ। माता ने शंकर जी की कठोर तपस्या की। तेज गर्मी व धूप के कारण माता के गर्भ में स्थित शनि का वर्ण काला हो गया. पर इस तप ने बालक शनि को अद्भुत व अपार शक्ति से युक्त कर दिया।

एक बार जब भगवान सूर्य पत्नी छाया से मिलने गए तब शनि ने उनके तेज के कारण अपने नेत्र बंद कर लिए। सूर्य ने अपनी दिव्य दृष्टि से इसे देखा व पाया कि उनका पुत्र तो काला है जो उनका नहीं हो सकता। सूर्य ने छाया से अपना यह संदेह व्यक्त भी कर दिया। इस कारण शनि के मन में अपने पिता के प्रति शत्रुवत भाव पैदा हो गए। शनि के जन्म के बाद पिता ने कभी उनके साथ पुत्रवत प्रेम प्रदर्शित नहीं किया। इस पर शनि ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया।


जब भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो शनि ने कहा कि पिता सूर्य ने मेरी माता का अनादर कर उसे प्रताड़ित किया है। मेरी माता हमेशा अपमानित व पराजित होती रही। इसलिए आप मुझे सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें। तब भगवान आशुतोष ने वर दिया कि तुम नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधिकारी रहोगे। साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे।


कथानुसार लंकापति रावण ने अपनी अपार शक्ति से न केवल देवताओं का राज्य छीन लिया बल्कि उसने सभी ग्रहों को भी कैद कर लिया था। जब मेघनाद का जन्म होने वाला था तब रावण ने सभी ग्रहों को उनकी उच्च राशि में स्थापित होने का आदेश दिया। उसके भय से ग्रस्त ग्रहों को भविष्य में घटने वाली घटनाओं को लेकर बड़ी चिंता सताने लगी। पर मेघनाद के जन्म के ठीक पहले शनिदेव ने अपनी राशि बदल दी। इस कारण मेघनाद अपराजेय व दीर्घायुवान नहीं हो सका। रावण ने क्रोध में आकर शनि के पैर पर गदा से प्रहार किया। इस कारण शनि की चाल में लचक आ गई।

नोट : इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। नियो न्यूज इनकी पुष्टि नहीं करता है।

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