Thursday, October 3, 2024
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जब देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब ठा.बांकेबिहारी पहली बार स्वर्ण हिंडोला में हुए विराजमान

मथुरा। जब पूरा भारतवासी देश को आजाद होने का जश्न मना रहे थे। उस वक्त वृंदावन के सुप्रसिद्ध बाँकेबिहारी और उनके भक्तों ने भी आजादी का जश्न भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया। जहां देशवासी खुशी से झूम रहे थे वहीं बाँके बिहारी के एक भक्त ने उन्हें स्वर्ण जड़ित हिंडोला अर्पित किया और पहली बार ठा. बांकेबिहारी 15 अगस्त 1947 को स्वर्ण हिंडोला में विराजमान हुए। इसलिए ठा बांकेबिहारी महाराज और देश की आजादी मिलने पर पहले स्वतंत्रता दिवस के बीच गहरा संयोग है।


कलकत्ता के मारवाड़ी सेठ और ठा. बाँकेबिहारी के अनन्य भक्त सेठ हरगूलाल ने जन-जन के आराध्य बांकेबिहारी महाराज के लिए 20 किलो सोना और 100 किलो चांदी से जड़ित विशाल हिंडोला बनवाया। काबिलेगौर बात यह है कि आज से 74 साल पहले ठा. बांकेबिहारी महाराज के हिंडोला के साथ ही बरसाना में राधारानी मंदिर में विराजमान श्रीजी के लिए भी चांदी और सोने का हिंडोला बना था। जिसमें बाँकेबिहारी मंदिर में ठाकुरजी और बरसाना के राधारानी मंदिर में श्रीजी सावन माह में प्रतिवर्ष विराजमान होते हैं।

15 अगस्त पर पहली बार स्वर्ण हिंडोला में विराजे बाँकेबिहारी

वृंदावन के ठा. बांकेबिहारी भी उसी दिन श्रावण मास की हरियाली तीज तिथि के अवसर पर सोने व चांदी से बने अनुपम हिण्डोलों प्रतिवर्ष विरजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। कलकत्ता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पूर्व ही ये हिण्डोले मंदिर प्रशासन को भेंट किए थे। जिन्हें हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुरजी की सेवा में प्रयोग किया जाना था और उस दिन संयोग से 15 अगस्त था।

20 किलो सोना व एक कुंतल चांदी से बना हिंडोला

ठाकुरजी के परम सेवक एवं मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास ने अपने समय में ही झूलोत्सव की परंपरा की शुरुआत कर दी थी, किंतु तब लता-पताओं के बने हिण्डोले में बांकेबिहारी को झुलाया जाता था। हरियाणा के बेरी गांव के मूल निवासी कोलकाता के बेरीवाल परिवार ने 1942 में सोने-चांदी का झूला बनवाने का संकल्प लिया था। सेठ हरगुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं कि उनके पिता ठाकुरजी के परमभक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया था कि उस जमाने में सोने-चांदी के हिण्डोले बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी तथा हिण्डोलों के निर्माण में 25 लाख रुपए की लागत आई थी।

दो साल तक सुखाई गई थी लकड़ी

हिण्डोलों को तैयार करने के लिए बनारस के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था, जिन्होंने टनकपुर (पिथौरागढ़) के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटवाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिण्डोलों के निर्माण का कार्य शुरु किया गया। इसके लिए बीस उत्कृष्ट कारीगरों ने लगभग पांच वर्ष तक कार्य किया। तब जाकर हिण्डोलों का निर्माण संभव हो पाया। हिण्डोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए।

बरसाना के राधारानी मंदिर के लिए भी बनवाया था झूला

मारवाड़ी सेठ हरगुलाल ने इसी प्रकार का झूला बरसाना के राधारानी मंदिर के लिए भी बनवाया। इससे पूर्व उन्होंने भरतपुर के जाट एवं मध्य भारत के मराठा राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। वहां भी इसी दिन हिण्डोला डाला गया जिस पर आज भी राधारानी परम्परागत रूप से झूला झूलती हैं।

ठा. बांकेबिहारी मंदिर के सह प्रबंधक उमेश सारस्वत ने बताया हरियाली तीज के दिन ठा. बांकेबिहारी स्वर्ण जड़ित हिंडोला में विराजमान होंगे। हरियाली तीज पर लाखों श्रद्धालु स्वर्ण हिंडोला में विराजित बाँकेबिहारी के दर्शन करने के लिए आता है। जिसकी तैयारियों की जा रही है। पिछले वर्ष कोरोन महामारी के कारण भक्तों को ठाकुरजी के विशेष दर्शन नहंीं हो पाए थे। लेकिन इस बार भक्तों को कोविड की गाइड लाइन का पालन करते हुए दर्शन कराए जाएंगे।

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