नई दिल्ली। हॉलीवुड में इन दिनों पॉर्न फिल्मों बनाने को लेकर भूचाल आ गया है। उद्योगपति राज कुंद्रा सहित कई अभिनेत्रियां कानूनी दांवपेचों में फंसे हुए हैं। इस बीच एक सवाल यह भी सामने आने लगा है कि क्या महिलाएं भी हस्तमैथुन करती हैं और पॉर्न देखती हैं? इसे लेकर लोकप्रिय वेबसाइट पोर्न हब के एक हालिया सर्वे के अनुसार पोर्न देखने वालों में एक-तिहाई महिलाएं हैं, और यह अनुपात बढ़ रहा है। पोर्न देखने वाले देशों में भारत चौथे नंबर पर है, और महिलाएं भी ज्यादा पीछे नहीं हैं। सर्वे के मुताबिक 30 फीसदी नियमित पोर्न कंज्यूमर महिलाएं ही हैं। लेकिन महिला कामोन्माद के बारे में न पुरुष चर्चा करते हैं, न महिलाएं।
स्त्रीवादी लेखिका मेघना पंत कहती हैं, “30 फीसदी का आंकड़ा दुनिया के सर्वाधिक में शुमार है। इसका मतलब है कि ब्राजील और फिलिपींस के बाद हमारी महिलाएं दुनिया के अन्य किसी भी देश की तुलना में ज्यादा पोर्न देखती हैं। फिर भी काम साहित्य लिखने वाले कई लोगों ने बताया कि छोटे शहरों में अब भी महिलाएं जी-स्पॉट का मतलब गोल्ड स्पॉट समझती हैं, और वीट ब्लीच को फेसियल का हिस्सा मानती हैं। दशकों से शादी-शुदा होने के बावजूद इनमें अनेक महिलाओं को नहीं मालूम कि कामोन्माद क्या होता है।” वे कहती हैं, हमें इस बात को सामान्य रूप से लेना चाहिए कि महिलाएं न सिर्फ पोर्न देखती हैं, बल्कि उनमें महिला कामोन्माद की अनदेखी किए जाने से हताशा भी होती है। क्या इसके लिए पुरुषों की सोच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है? क्यों न महिलाओं के लिए पोर्न तैयार किया जाए?
फिल्म और थियेटर कलाकार आहना कुमरा ने पहली बार पोर्न उत्सुकतावश देखा था। वे बताती हैं, “मैं कॉलेज में थी। मेरी उम्र 16 साल थी। मैंने और मेरी एक सहेली ने एक लड़के से सीडी मंगवाई। मेरे माता-पिता कहीं बाहर जाने वाले थे, लेकिन सीडी देखकर हम परेशान हो गए। हमने तत्काल देखना बंद कर दिया।” लेकिन जब कुमरा विदेश दौरे करने लगीं तो उन्होंने नई चीजें देखीं। वे कहती हैं, “मैं फ्रांस में माउलिन राउज गई। वहां स्टेज पर कम से कम एक सौ नग्न महिलाएं नृत्य कर रही थीं। शुरुआती झटके के बाद मैंने महसूस किया कि ये तो बस खूबसूरत शरीर हैं। उसमें कला का पुट था। फिर जब मैं एम्सटर्डम गई तो वहां सेक्स के लिए महिलाओं को घर से बाहर जाते देखा। पोर्न एक विशाल और फलती-फूलती इंडस्ट्री है। भारत में इसे देखने वाले बहुत हैं, बस हम इस बात को स्वीकार नहीं करते।”
कुमरा को लगता है कि उन्हें ज्यादा पोर्न देखने का मौका नहीं मिला क्योंकि उनके दोस्त दकियानूसी थे। इरोटिका (काम साहित्य या दृश्य) के बारे में उनका कहना है कि अंतर सिर्फ इतना है कि यह अभिजात्य वर्ग के लिए है और पोर्न सबके लिए। वे कहती हैं, “इरोटिका कला है। माउलिन राउज में उसे देखने के लिए मैंने पैसे दिए। जब आप पैसे देकर इस तरह के यौन दृश्य देखते हैं तो वह इरोटिका है। लेकिन जब आप उसे ऑनलाइन देखते हैं तो वह सबके लिए उपलब्ध है।”
महिलाओं के लिए पोर्न तक पहुंच उतनी ही आसान है जितनी पुरुषों के लिए। अनेक महिलाओं को तो लगता है कि आप पोर्न देखें या न देखें, इसमें बड़ी बात क्या है, और देखने में बुराई ही क्या है? लेकिन यह विचार भारत में स्त्री यौनिकता और उसके दमन की परंपरा के खिलाफ है। जैसे ही आप इस विषय पर चर्चा शुरू करते हैं, लोग असहज हो जाते हैं। दूर क्यों जाएं, अपनी फिल्मों पर ही नजर दौड़ा लीजिए। इनमें महिलाओं को आइटम सॉन्ग तक सीमित कर दिया गया है। हम उसे तो खुले में देखते और आनंद लेते हैं लेकिन महिलाओं के पोर्न देखने से हमें समस्या है। यह अजीब नहीं है?
कुमरा कहती हैं, “जब मेरी फिल्म लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का पर प्रतिबंध लगाया गया तो मुझे लगा कि हमारे समाज को महिलाओं की यौन आजादी के बारे में चर्चा करने में परेशानी है। फिल्मों में सेक्स को बड़े घटिया तरीके से दिखाया जाता है। अनेक ओटीटी प्लेटफॉर्म पोर्नोग्राफिक कंटेंट दिखा रहे हैं। फिर भी हम सेक्स के बारे में बात नहीं करते। यह हैरान करने वाला है।”
हैरानी इसलिए भी होती है क्योंकि भारतीय संस्कृति में महिलाओं की हैसियत बराबरी की रही है। अगर आप मंदिरों के बाहर कलाकृतियां देखें तो उनमें महिलाओं के हाथ में सेक्स खिलौने जैसी चीजें दिखती हैं। कामसूत्र में महिला सर्फ आनंद देने वाली नहीं बल्कि आनंद लेने के लिए खुद भी पहल करती है। कोलकाता की इरोटिका लेखिका श्रीमोइ पिउ कुंडू कहती हैं, “हमने पर्दा प्रथा, अंदर महल-बाहर महल की प्रथा देखी, विक्टोरियन कॉरसेट (अंदर पहनने का कसा हुआ वस्त्र) भी देखा, लेकिन अगर हम अतीत में देखें तो पाएंगे कि भारतीय महिलाएं अपने स्तन को ढंकती नहीं थीं।”
लेकिन अब वैसा नहीं है। कुंडू कहती हैं, “दुर्भाग्यवश पोर्न सिर्फ पुरुष के नजरिए से दिखाया जाता है। ज्यादातर पोर्न में आपको पुरुष गुदा मैथुन करते और अंत में महिला के चेहरे पर वीर्य स्खलित करते नजर आएंगे। ज्यादातर भारतीय पुरुषों की यही फैंटेसी होती है। उनकी मनोविकृति इसी का नतीजा है। पुरुषों को इस बात का इल्म ही नहीं होता कि महिलाएं क्या चाहती हैं। सहमति की अवधारणा का पाठ उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाता। आप द्विअर्थी भारतीय गानों और ओटीपी शो को देखें, सेक्स हमेशा हमारे सामने रहता है। तो हम ऐसा भान क्यों करते हैं कि पोर्न का अस्तित्व ही नहीं है। महिलाएं भी पोर्न देखती हैं। मेरी कई दोस्त हैं जो पोर्न देखकर हस्तमैथुन करती हैं। दुर्भाग्यवश लोगों को महिलाओं को यौन वस्तु के रूप में देखने का विचार पोर्न से आता है।”
मुंबई स्थित लेखिका और ओमपुरी फाउंडेशन की चेयरपर्सन नंदिता पुरी कहती हैं, “मुझे पोर्न अंतर्निहित रूप से अपमानजनक नहीं लगता। अगर उसमें दिखने वाली कोई महिला स्वेच्छा से ऐसा करती है तो उसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए। लेकिन हमारे पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों का अपने फायदे के लिए महिलाओं का इस्तेमाल स्वाभाविक है। हमें इस बात को समझना चाहिए कि 90 फीसदी ग्रामीण महिलाएं दमित हैं। शहरों में भी जो 10 फीसदी महिलाएं स्वतंत्र हैं, वे वास्तव में स्वतंत्र नहीं हैं।
मुंबई स्थित पत्रकार और लेखिका अनिंदिता घोष के अनुसार, “कुछ पोर्न महिलाओं के लिए अपमानजनक होते हैं, लेकिन यह कहना ठीक नहीं कि समूचा पोर्न ही महिलाओं के लिए अपमानजनक है। ऐसा कहने का मतलब यह होगा कि महिलाओं का कोई यौन जीवन नहीं होता। पोर्न इंडस्ट्री की अलग समस्याएं हैं। वहां अभिनेता-अभिनेत्रियों, खासकर अल्पवयस्कों का शोषण होता है। यह बात जगजाहिर है और इस समस्या का समाधान होना चाहिए। लेकिन अगर आप पोर्न देखने की नैतिकता के बारे में पूछेंगे तो मैं कहूंगी कि मुझे इससे कोई समस्या नहीं- जब तक इसमें बाल शोषण या अन्य कोई अपराध शामिल न हो।”
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष अपनी वासना के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करते हैं, जबकि महिला यौन इच्छाएं कमोवेश अतृप्त रह जाती हैं रही बात इरोटिका की, तो कुछ महिलाएं इसे कामुकता, पैशन और वासना का मिलाजुला रूप मानती हैं, जो सहमति से होता है। इसमें पारस्परिकता और प्रेम का एक वातावरण तैयार किया जाता है, वास्तविक सेक्स शायद ही दिखाया जाता हो। कुंडू कहती हैं, “भारत का पहली स्त्रीवादी काम-साहित्य सीताज कर्स (सीता का अभिशाप) की लेखिका होने के नाते मेरा मानना है कि इरोटिका सिर्फ रोमांच नहीं। हमारी भूमि कामसूत्र और खजुराहो की रही है, जिसमें प्रेम करने की खूबसूरत तस्वीरें हैं। हमने ही दुनिया को बताया कि इरोटिका क्या होता है।”
पोर्न देखने पर पता चलता है कि ये कितना पुरुष प्रधान होते हैं। यह पुरुषों को बलात्कार करने या दूसरे तरीके से आक्रामक होने की फैंटेसी देता है। कोलकाता स्थित पत्रकार अर्शिया धर कहती हैं, “पोर्न में अक्सर महिलाओं को पुरुषों की सामग्री के तौर पर दिखाया जाता है। इससे निपटने का एकमात्र तरीका ज्यादा से ज्यादा स्त्रीवादी पोर्न बनाना है।” अनेक तरीके हैं जिससे लोग पोर्न देख सकते हैं, उसमें महिलाओं को सम्मानजनक तरीके से दिखाया जाए और दोनों पक्षों के कामोन्माद पर फोकस किया जाए। अब शाइन लुइस हॉस्टन, कर्टनी ट्रबल, ट्रिस्टन ताओरमिनो, मेडिसन यंग जैसी महिलाएं स्त्रीवादी पोर्न बना रही हैं। घोष कहती हैं, “मुझे कई महिला पोर्न अभिनेत्रियां पसंद हैं। उनमें एक टेरा पैट्रिक हैं। वह बहुत अच्छा परफॉर्म करती हैं। पोर्न में मेरे लिए आवाज महत्वपूर्ण है और टेरा पैट्रिक वह बहुत अच्छा करती हैं।”
महिलाओं के पोर्न देखने का चलन बढ़ने से उनके कामोन्माद को दिखाने वाले कंटेंट तैयार होने लगे हैं। उनमें न उनका गला दबाया जाता है, न थप्पड़ मारा जाता है, न उनके बाल खींचे जाते हैं न ही उन्हें गालियां दी जाती हैं। मुंबई स्थित मनोचिकित्सक डॉ. अंजलि छाबरिया कहती हैं, “भारतीय पोर्न में महिलाओं को पुरुषों की इच्छाएं पूरी करने और उन्हें खुश करते दिखाया जाता है। मुझे नहीं लगता कि आज की महिलाएं ऐसा देखना पसंद करती हैं। प्रेम करने में भी समानता आवश्यक है। पुरुष को भी समझना चाहिए कि उसे भी महिला को खुश करना है।”