Wednesday, October 2, 2024
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सालों बाद यशोदा और गोपाल मंदिर में एक दिन एक समय जन्मेंगे नंदलाल

आठ साल बाद इंदौर के राजवाड़ा स्थित 230 साल पुराने यशोदा माता और 189 साल पुराने गोपाल मंदिर में एक ही दिन 30 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। वैष्णव और स्मार्त मत को मानने वाले एक दिन, एक समय पर बाल गोपाल की जन्म आरती कर पालने में झूलाएंगे। ऐसा सालों बाद सूर्योदय से लेकर अर्धरात्रि व्यापनी अष्टमी तिथि, रोहणी नक्षत्र और वृषभ राशि के चंद्रमा के एक दिन होने से हुआ है। इसके चलते ज्योतिर्विद इस जन्माष्टमी पर द्वापर में बने कृष्ण जन्म जैसे संयोग का बनना बता रहे हैं।

ज्योतिषविदों का कहना है कि 29 अगस्त रविवार को 11.27 बजे से अष्टमी तिथि शुरू होगी जो 30 अगस्त सोमवार को रात 1.57 बजे तक रहेगी। सोमवार को अष्टमी उदया तिथि के साथ मध्यरात्रि को 12 बजे भी रहेगी। इसके चलते स्मार्त और वैष्णव दोनों मतों को मानने वाले मंदिर एक ही दिन जन्माष्टमी मनाएंगे। इसके पहले वर्ष 2014 में भी ऐसा ही संयोग आया था। रोहणी नक्षत्र 30 अगस्त को सुबह 6.40 बजे से शुरू होकर 31 अगस्त सुबह 9.44 बजे तक रहेगा। 30 अगस्त को कार्य में सिद्धि देने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6.41 बजे से 31 अगस्त को 6.11 बजे तक रहेगा।

यशोदा माता मंदिर के पुजारी मनीष दीक्षित बताते हैं कि इस बार दोनों मंदिरों में एक दिन त्योहार मनाया जा रहा है। ऐसा आमतौर पर नहीं होता। मंदिर में विराजित मूर्ति में यशोदा माता की गोद में कन्हैया अठखेलियां कर रहे हैं। यह मूर्ति जयपुर में बनवाई गई थी। उस समय इसे बैलगाड़ी से इंदौर लाने में 40 दिन लगे थे। मंदिर 230 साल पुराना है। यहां संतान प्राप्ति के लिए गोद भराई की रस्म भी जन्माष्टमी पर होती है। जन्माष्टमी पर महापूजा, महाआरती के अलावा नंदोत्सव भी मनाया जाएगा।

होल्करकालीन रीति-रिवाजों का होता पालन

गोपाल मंदिर के पुजारी बालमुकुंद शर्मा बताते हैं कि गोेपाल मंदिर का निर्माण 1832 में हुआ था। आज भी मंदिर में होलकरकालीन परंपरा का निर्वहन किया जाता है। सुबह अभिषेक पूजन, रात में अभिषेक व रात 12 बजे जन्म आरती की जाती है। प्रसाद में पंजीरी और माखन-मिश्री का वितरण होता है। त्योहार प्रशासन द्वारा तय गाइडलाइन के अनुसार मनाया जाएगा।

कब बनता है द्वापर जैसा संयोग

भाद्र मास में अष्टमी तिथि, रोहणी नक्षत्र और वृषभ राशि का चंद्रमा आने पर द्वापर युग में कृष्ण जन्म के समय जैसा संयोग बनता है। जन्माष्टमी सोमवार व बुधवार को आने पर इसका महत्व बढ़ जाता है। इस दिन कार्य में सिद्धि देने वाला सर्वार्थ सिद्ध योग के बनने से इस दिन की महत्ता और भी बढ़ गई है।

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