बुजुर्ग महिलाओं की व्यथा सुन छलके आंसू
मथुरा। जो बातें हम पुस्तकों में पढ़कर नहीं समझ सकते, वह हम बुजुर्गों के बीच कुछ पल रहकर आसानी से समझ सकते हैं। वृद्धावस्था जहां जीवन का सत्य है वहीं बुजुर्ग अनुभव की खान होते हैं। हम इनके बताए रास्ते पर चलकर जीवन में कभी धोखा नहीं खा सकते। जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस, मथुरा छात्र-छात्राओं को सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि उन्हें समाज से जुड़े रखने में भी मदद करता है। मंगलवार को यहां के छात्र-छात्राएं अपने गुरुजनों के साथ वृन्दावन स्थित कृष्णा कुटीर वृद्धाश्रम पहुंचे और वहां कुछ पल ही रुके लेकिन एक नसीहत लेकर जरूर लौटे।
डॉ. शिखा गोविल (अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ), मोहम्मद मोहसिन (इवेंट कोऑर्डिनेटर), डॉ. नक्षत्रेश कौशिक और प्रज्ञा द्विवेदी के साथ संस्थान के बीटेक और एमबीए के लगभग दो दर्जन छात्र-छात्राओं ने वृद्धाश्रम में ठहरे बुजुर्गों के साथ सेल्फी ली और उनकी बहुत सी बातों को गम्भीरता से सुना तथा आत्मसात भी किया। कृष्णा कुटीर वृद्धाश्रम, वृंदावन के भ्रमण को लेकर विद्यार्थियों में खासा उत्साह देखा गया। उन्होंने स्वेच्छा से इस आयोजन की सारी जिम्मेदारी ली थी।
इस शैक्षिक भ्रमण पर छात्र-छात्राओं का कहना है कि जब हमने वृद्धाश्रम में प्रवेश किया, तो हमें आश्चर्य हुआ क्योंकि वहां उम्मीद से कहीं अधिक वृद्ध माताएं मौजूद थीं। शांत और धैर्य की प्रतिमूर्ति उन वृद्ध माताओं ने हम लोगों को जो कुछ बताया, उससे हमारी आंखों में आंसू आ गए। उनकी खुशी भरी हंसी, उनकी बिना दांत वाली मुस्कान, उनके साथ गुदगुदाती हंसी से जो संतोष मिला, उसे बयां करना मुश्किल है।
संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी का कहना है कि इस शैक्षिक भ्रमण का उद्देश्य छात्र-छात्राओं को समाज में आ रहे बदलावों से अवगत कराना था। जी.एल. बजाज का उद्देश्य है कि युवा पीढ़ी अपने बुजुर्गों सम्मान करे, उन्हें कभी अकेला न छोड़े तथा उनके अनुभवों का लाभ उठाए। प्रो. अवस्थी कहती हैं कि उपभोक्तावादी संस्कृति, बदलते सामाजिक मूल्यों, नई पीढ़ी की सोच में आए परिवर्तन, महंगाई बढ़ने तथा व्यक्ति का अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाना ही बड़े-बूढ़ों के लिए समस्याएं खड़ी कर रहा है। बुजुर्ग हमारे प्रेरणास्रोत हैं, इनके अनुभव समाज को नई दिशा दे सकते हैं। बुजुर्गों को कुछ नहीं सिर्फ थोड़े से प्यार, अपनत्व और सामाजिक परिवेश की जरूरत है।
प्रो. अवस्थी ने कहा कि यदि समाज के इस अनुभवी स्तम्भ को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहा तो युवा उस अनुभव से भी दूर हो जाएंगे जो उनके पास है। जरूरी है कि हमारी युवा पीढ़ी सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जनजागृति का माहौल निर्मित करे, वृद्धों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के साथ-साथ समाज में उनको उचित स्थान देने की भी कोशिश करे।