उत्तराखंड के चार धामों में से यात्रा के क्रम में दूसरा धाम उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री है, जिसकी ऊँचाई लगभग 3415 मीटर है । यहीं पर भगीरथ ने गँगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिये तपस्या की थी । भागीरथी नदी का उद्गम गंगोत्री से लगभग 18 km पीछे गोमुख से है । गंगोत्री में माँ गँगा का मंदिर है, जिसे नेपाल के जनरल अमर सिंह थापा ने 18वीं शताब्दी में बनवाया, मंदिर के पुजारी स्थानीय सेमवाल हैं । मंदिर के पट अक्षय तृतीया को खुलते हैं और शीतकाल के लिए गोवर्धन पूजा पर बंद होते हैं । मकरवाहिनी माँ गँगा का शीतकालीन प्रवास मुखवा में रहता है ।
यह क्षेत्र गंगोत्री नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है, यहाँ घुरल (ibex, blue mountain goat) बहुतायत में हैं । आस पास घूमने के लिये धराली में कल्पकेदार, हरसिल, भोटिया गाँव बगोरी, अभी अभी पुनरोद्धार के बाद खोली गयी गरतांग गली, मुखबा आदि हैं । ट्रैकिंग के लिये भी अनेकों स्थान हैं यथा गोमुख, तपोवन, केदारताल, सातताल (धराली से), क्यारकोटी बुग्याल आदि । एडवांस ट्रैकिंग में गंगोत्री से बद्रीनाथ का ट्रैक है जो कालिंदीखाल और घसतोली से जाता है इसके अलावा गंगोत्री से केदारनाथ का ट्रैक ऑडन कोल और मयाली पास होकर जाता है । हरसिल से चितकुल (हिमाचल) के लिये भी ट्रैक है जो लमखगा पास से जाता है ।

गंगोत्री धाम मंदिर का खूबसूरत दृश्य
बर्फबारी में हिम से आच्छादित गंगोत्री धाम मंदिर परिसर खूबसूरती से और भी अधिक सुंदरता को बिखेरे हुए लग रहा हैं।
उत्तराखंड के चार धामों में एक गंगोत्री धाम मंदिर उत्तरकाशी जिले में स्थित हैं।
गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है
पंच प्रयाग
विष्णु प्रयाग में अलकनंदा धौली गंगा से मिलती है, नंद प्रयाग में नंदाकिनी से, कर्ण प्रयाग में पिंडर से, रुद्र प्रयाग में मंदाकिनी से अंत में देव प्रयाग में भागीरथी से । यहाँ के बाद ही हम सम्मिलित नदी को माँ गँगा कहते हैं ।
अन्य प्रयाग
भटवारी (सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध) में भाष्कर प्रयाग है जहाँ भागीरथी, नवला और शंखधारा से मिलती है । माना के निकट केशव प्रयाग में अलकनंदा सरस्वती से मिलती है । सोनप्रयाग में मंदाकिनी वासुकी से मिलती है ।
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे,
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।
श्री गंगा स्तोत्रम् (1): आदि शंकराचार्य विरचित
अन्य प्रयाग
भटवारी (सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध) में भाष्कर प्रयाग है जहाँ भागीरथी, नवला और शंखधारा से मिलती है । माना के निकट केशव प्रयाग में अलकनंदा सरस्वती से मिलती है । सोनप्रयाग में मंदाकिनी वासुकी से मिलती है ।
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे,
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।
श्री गंगा स्तोत्रम् (1): आदि शंकराचार्य विरचितगंगा मंदिर
गंगा अवतरण स्थली
उत्तराखंड के चार धामों में से यात्रा के क्रम में दूसरा धाम उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री है, जिसकी ऊँचाई लगभग 3415 मीटर है । यहीं पर भगीरथ ने गँगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिये तपस्या की थी । भागीरथी नदी का उद्गम गंगोत्री से लगभग 18 km पीछे गोमुख से है । गंगोत्री में माँ गँगा का मंदिर है, जिसे नेपाल के जनरल अमर सिंह थापा ने 18वीं शताब्दी में बनवाया, मंदिर के पुजारी स्थानीय सेमवाल हैं । मंदिर के पट अक्षय तृतीया को खुलते हैं और शीतकाल के लिए गोवर्धन पूजा पर बंद होते हैं । मकरवाहिनी माँ गँगा का शीतकालीन प्रवास मुखवा में रहता है । यह क्षेत्र गंगोत्री नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है, यहाँ घुरल (ibex, blue mountain goat) बहुतायत में हैं । आस पास घूमने के लिये धराली में कल्पकेदार, हरसिल, भोटिया गाँव बगोरी, अभी अभी पुनरोद्धार के बाद खोली गयी गरतांग गली, मुखबा आदि हैं । ट्रैकिंग के लिये भी अनेकों स्थान हैं यथा गोमुख, तपोवन, केदारताल, सातताल (धराली से), क्यारकोटी बुग्याल आदि । एडवांस ट्रैकिंग में गंगोत्री से बद्रीनाथ का ट्रैक है जो कालिंदीखाल और घसतोली से जाता है इसके अलावा गंगोत्री से केदारनाथ का ट्रैक ऑडन कोल और मयाली पास होकर जाता है । हरसिल से चितकुल (हिमाचल) के लिये भी ट्रैक है जो लमखगा पास से जाता है ।
गंगोत्री धाम मंदिर का खूबसूरत दृश्य
बर्फबारी में हिम से आच्छादित गंगोत्री धाम मंदिर परिसर खूबसूरती से और भी अधिक सुंदरता को बिखेरे हुए लग रहा हैं।
उत्तराखंड के चार धामों में एक गंगोत्री धाम मंदिर उत्तरकाशी जिले में स्थित हैं। गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है। गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश अत्यंत आकर्षक एवं मनोहारी है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था। प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है
पंच प्रयाग
विष्णु प्रयाग में अलकनंदा धौली गंगा से मिलती है, नंद प्रयाग में नंदाकिनी से, कर्ण प्रयाग में पिंडर से, रुद्र प्रयाग में मंदाकिनी से अंत में देव प्रयाग में भागीरथी से । यहाँ के बाद ही हम सम्मिलित नदी को माँ गँगा कहते हैं ।
अन्य प्रयाग
भटवारी (सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध) में भाष्कर प्रयाग है जहाँ भागीरथी, नवला और शंखधारा से मिलती है । माना के निकट केशव प्रयाग में अलकनंदा सरस्वती से मिलती है । सोनप्रयाग में मंदाकिनी वासुकी से मिलती है ।
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे,
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।
श्री गंगा स्तोत्रम् (1): आदि शंकराचार्य विरचित
अन्य प्रयाग
भटवारी (सूर्य मंदिर के लिये प्रसिद्ध) में भाष्कर प्रयाग है जहाँ भागीरथी, नवला और शंखधारा से मिलती है । माना के निकट केशव प्रयाग में अलकनंदा सरस्वती से मिलती है । सोनप्रयाग में मंदाकिनी वासुकी से मिलती है ।
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे,
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।
श्री गंगा स्तोत्रम् (1): आदि शंकराचार्य विरचित