Saturday, November 23, 2024
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अजा एकादशी की कथा एवं पूजन विधि, जानिए पद्मपुराण अजा एकादशी का क्या है उल्लेख

राजा हरिश्चंद्र के विषय में एक कथा आती है जिसमें बताया गया कि राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में देखा कि उन्होंने अपना सारा राज्य महर्षि विश्वामित्र को दान में दे दिया है। जब राजा के दरबार में सुबह महर्षि विश्वामित्र आए तो सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने उन्हें अपने स्वप्न के अनुसार अपना पूरा राज्य सौंप दिया। कभी भी आप किसी को दान देते हैं तो दक्षिणा भी देनी पड़ती है। तो विश्वामित्र ने राजा से कहा कि मुझे दक्षिणा में 500 स्वर्ण मुद्राएं देनी पड़ेगी। अब हरिश्चंद्र के पास कुछ भी शेष नहीं था। हरिश्चंद्र को अपने पुत्र, पत्नी और स्वयं को बेचना पड़ा तब जाकर वह दक्षिणा दे पाए। जिस चांडाल ने राजा हरिश्चंद्र को खरीदा उन्होंने ,उन्हें शमशान का कर वसूलने का काम दिया अर्थात जो भी व्यक्ति श्मशान में अपने परिजनों के शव को जलाने आता है उस व्यक्ति से उनको कर लेना था।


कथा ऐसी आती है कि एक रात में वहां एक स्त्री आती है जिसके पुत्र का दासंस्कार करना था। निर्धनता के कारण उसके पास कफन तक के पैसे नहीं थे। शव को ढकने के लिए उसने अपनी धोती तक फाड़ दी थी। उससे भी राजा हरिश्चंद्र ने श्मशान का कर मांगा। एक तो पुत्र की मृत्यु हो चुकी थी उसका शौक था ऊपर से उसका अंतिम संस्कार ना कर पाने के कारण शव की दुर्दशा की चिंता से वह बेचारी बिलख बिलख कर रोने लगी फिर भी सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने उसे दाह संस्कार करने की आज्ञा प्रदान नहीं की। इस बीच वहां बिजली चमकने लगी बारिस भी होने लगी उस चमकती हुई बिजली में राजा हरिश्चंद्र ने देखा कि जो स्त्री अपने बच्चे के शव को जलाने आई थी वह कोई ओर नहीं उनकी अपनी पत्नी थी और वह सव उनके अपने पुत्र का ही था।


अपनी पत्नी तारामती को और मरे पुत्र को देखकर वह चौक पड़े, अत्यधिक दुख से पीड़ित हो गए और उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे। पूछने पर पता चला कि पुत्र को सांप ने काट लिया है। इस परीक्षा की घड़ी में अपने को संभालते हुए राजा ने कहा जिस सत्य की रक्षा के लिए मैंने अपना राज्य त्याग दिया, स्वयं को बेच दिया, उसी सत्य की रक्षा के लिए मै इस घड़ी सत्य के नहीं छोड़ सकता , मुझे सत्य पर डटे रहना है ,कर्तव्य नहीं छोड़ पाऊंगा। अतः कर बिना लिए मैं तुमको अंतिम संस्कार की अनुमति नहीं दे पाऊंगा।


तारामती ने संयम से काम लिया और अपनी आधी धोती को फाड़ कर कर के रूप में देने के लिए उसने जैसे ही राजा की ओर हाथ बढ़ाया तत्काल ही वहां पर श्रीहरि प्रकट हो गए और भगवान ने राजा हरिश्चंद्र से कहा कि तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा धन्य है, तुमने सत्य को जीवन में धारण करके उच्चतम आदर्श स्थापित किया है, अतः तुम इतिहास में सदा याद रखे जाओगे। फिर भगवान हरि ने उन्हें आशीर्वाद दिया, पुत्र को पुनः जीवित कर दिया और राजा को उसका पूरा राजपाट भी लौटा दिया। इस कथा के विषय में ऐसा वृतांत मिलता है कि राजा हरिश्चंद्र को दुखों से चिंतित देखकर गौतम ऋषि ने उन्हें भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधि विधान अनुसार करने को कहा था। जब राजा ने इस एकादशी का व्रत किया तो उसके प्रभाव से राजा अपने दुखों से छूट पाए थे। पत्नी और पुत्र के साथ वापस मिल पाए थे और राज्य भी वापस प्राप्त कर पाए थे। पापों से मुक्त होकर अंत में स्वर्ग भी गए थे।
महत्ता
अजा एकादशी देही कष्टों से मुक्ति दिलाता है यहां तक कि पुनर्जन्म से भी छुटकारा दिलाता है। इस एकादशी का सबसे बड़ा महत्व यह है कि अगर इसे विधि पूर्वक किया जाए तो समस्त कष्ट समाप्त होते ही हैं साथ में इच्छित फल की भी प्राप्ति होती है। व्यक्ति पुनर्जन्म के आवागमन से भी मुक्त हो जाता है। पूर्व जन्म की बाधाएं भी दूर हो जाती है अंत में परमधाम को भी प्राप्त होता है।


श्री कृष्ण का वचन है की इस व्रत को सात्विक मन से विधि पूर्वक अगर प्राणी करता है तो वह आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है। इस एकादशी के व्रत का फल अद्भुत है। श्री हरि विष्णु भगवान की पूजा करके इस व्रत का महत्व पढ़ना चाहिए और सुनने से अश्वमेध यज्ञ तक का फल प्राप्त हो जाता है।

पूजा करने की विधि
यह व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। प्रात काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके लक्ष्मी मां, विष्णु भगवान की श्रद्धा से पूजन व आरती करें भोग लगाएं और प्रसाद भक्तों में बांटे। पूरे दिन के व्रत में अन्न का सेवन ना करके केवल एक बार फलाहार करें और पूरी रात जागकर भजन कीर्तन करें।

  • डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
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