Saturday, November 23, 2024
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कब है हरतालिका व्रत? जानिए पूजन विधि एवं महात्म्य

पौराणिक कथा
भविष्य पुराण में हरतालिका व्रत के बारे में बताया गया है। एक समय की बात है जब देवर्षि नारद ने हिमालय से कहा कि आपकी कन्या ने अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की है और भगवान विष्णु इससे बहुत प्रसन्न हुए हैं और वह आप की पुत्री से विवाह करने की इच्छा रखते हैं इसलिए मैं आपके पास उनका संदेश लेकर आया हूं और आपकी इच्छा जानना चाहता हूं। क्या आपको यह विवाह प्रस्ताव स्वीकार है। नारद जी की ऐसी बात सुनकर भला कोई व्यक्ति कैसे इंकार कर सकता था। हिमालय ने मुदित हो कर कहा देवर्षि इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है।


हर्ष, उल्लास के साथ नारद जी विष्णु जी के पास पहुंचे और कहा कि हिमालय अपनी पुत्री का विवाह आपसे करने के लिए स्वीकृति दे चुके हैं। जब यह बात हिमालय की पुत्री पार्वती जी को पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने अपने प्राण त्यागने तक की सोच ली। जब उनकी सखी ने उन्हें इस तरीके से विलाप करते हुए देखा तो कहा कि एक काम करो तुम जंगल में चली जाओ और भगवान शंकर की तपस्या करनी चालू कर दो। सच्चे ह्रदय से अगर तुम भगवान शंकर को वर के रूप में पाने की कामना करोगी तो शिवजी से तुम्हारा विवाह अवश्य होगा। पार्वती जी अपनी सखी के साथ घनघोर जंगल में तपस्या करने के लिए चली गई। जब हिमालय को यह पता चला तो वह बहुत ही दुखी हुए कि उनका दिया हुआ वचन भंग हो जायेगा।


सभी राज्य कर्मचारी पार्वती जी को खोजने में लग गए। उधर एक नदी के किनारे पहुंचकर पार्वती जी ने भगवान शंकर की घोर तपस्या शुरू कर दी भाद्र शुक्ल की तृतीया को व्रत उपवास करके शिवलिंग का पूजन और रात्रि जागरण करके पार्वती जी ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर पूजा स्थल पर प्रकट हुए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। फिर वह कैलाश पर्वत चले गए। अगले दिन सुबह जब पार्वती जी पूजन सामग्री को नदी में प्रवाहित कर रही थी उसी समय हिमालय राज उन्हें वहां खोजते पर पहुंच गए। पुत्री के मन की बात जान कर उन्होंने शास्त्रोक्त विधि विधान अनुसार शिव पार्वती जी का विवाह करा दिया।


फिर शिव जी ने कहा -है पार्वती, इस व्रत को जो भी करेगी और मेरी आराधना पूरी करेगा में उस कुमारी को मनोवांछित फल दूंगा ,जो विवाहित स्त्री परम श्रद्धा पूर्वक इस व्रत को करेगी उसे तुम्हारे समान अचल सुहाग मिलेगा। तभी से यह व्रत को करने का प्रचलन शुरू हो गया। इसी प्रकार यह परंपरा बहुत प्राचीन समय से अभी तक चली आ रही है।

महात्म्य
हरतालिका व्रत कुमारी कन्या कर सकती है ,अपने भावी सुंदर पति के लिए। भगवान से प्रार्थना कर सकती है ताकि उनको मनचाहा पति मिले। सुहागिन औरतें इस व्रत को करती हैं ताकि उनके स्वामी की आयु लंबी हो, उन्हें अटल सौभाग्य मिले और वह सुहागन ही इस पृथ्वी पर से जाएं। ऐसी मान्यता है कि जो स्त्री इस व्रत को करती है वह सौभाग्यशाली होती है, संसार में जब तक रहती है तब तक सुखों को भोगती है और अंत में शिवलोक को प्राप्त होती है। व्रत के प्रभाव से स्त्री के सब पाप नष्ट हो जाते हैं और करोड़ों यज्ञों का फल मिलता है। व्रत की कथा सुनने मात्र से ही एक सहस्त्र अश्वमेघ यज्ञ तथा एक सो वाजपेई यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।

पूजन विधि –
यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को होती है यदि इस दिन हस्त नक्षत्र हो तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस व्रत को केवल स्त्रियां ही कर सकती है फिर चाहे वह कुमारी हो या विवाहित हो। शास्त्रों में सधवा व विधवा सभी के लिए इस व्रत को रखने का उल्लेख बताया गया है। तृतीया के दिन इस व्रत को करने से पहले स्त्रियाँ हाथों में मेहंदी लगाती है, तिल के पत्तों से अपना सिर भिगोती हैं और एक साथ एक समूह बना कर गीत गाती है। तृतीया के दिन प्रातकाल दैनिक कार्य करके, स्नान करके, निर्जल उपवास किया जाता है। स्त्रियाँ- गणेश जी की पूजा करकेष् उमा महेश्वर सायुज्य सिद्धये हरियालीका व्रतमह करिष्ये ष् से संकल्प करके सात जन्म तक राज्य और अखंड सौभाग्य प्राप्त करती है।


घर में केले के खम्बो लगाए, मंडप तोरण लगाए, दिन में भजन कीर्तन करे, शाम को शिव पार्वती की मूर्ति की पूजा की जाती है ,अर्चना विधि-विधान अनुसार करके उनकी आरती की जाती है। सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तुओं को रखकर मां पार्वती जी को चढ़ाया जाता है इसके पश्चात शिव पार्वती से अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना की जाती है और कुंवारी कन्याये अपने लिए मनचाहा वर की प्रार्थना करती है। ब्राह्मण अथवा पुरोहितों को भोजन कराया जाता है, दक्षिणा दिया जाता है, उन्हें प्रसन्न कर कर विदा किया जाता है। पति के साथ कथा सुनी जाती है फिर व्रत का पारण किया जाता है। जो स्त्रियाँ निर्जला व्रत नहीं करती है वह फलाहार कर सकती हैं। जो स्त्रियां निर्जला व्रत करती हैं वह अगले दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात ही व्रत पारायण करती है।

  • डॉ. सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता
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