मथुरा। कन्हैया की नगरी में जहां कभी शुद्ध और स्वादिष्ट दूध और घी की कोई कमी नहीं थी वहीं अब लगातार यह स्तर गिरता जा रहा है। वेंडरों और बड़े विक्रेताओं द्वारा सही कीमत न दिए जाने के कारण पशुपालक अपने दूध देने वाले जानवारों को आवश्यकता के अनुसार चारा नहीं दे पा रहे हैं। पशुपालकों का कहना है कि आवश्यक चारा और दाना न मिल पाने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता में निरंतर गिरावट होती जा रही है। उचित कीमत न मिलने के कारण दूध में मिलावट बढ़ती जा रही है। अगर सरकार ने ध्यान न दिया तो वो दिन दूर नहीं है कि यहां लोग अच्छे दूध के लिए तरस ही जाएंगे।
पशुपालकों से बड़ी मात्रा में दूध खरीदने वाले नगर के नामचीन व्यापारी के अनुसार पशुपालकों से 40 से 45 रुपये लीटर दूध खरीदा जा रहा है और इस दूध को 60 से 70 रुपये में बेचा जाता है। यह बात सही है कि इस कीमत पर आज की महंगाई में पशुपालक ठीक से जानवरों को पुष्टाहार नहीं खिला पा रहे। पशुपालकों के इस परेशानी की सबसे बड़ी वजह बने हुए हैं वेंडर, दलाल, जो पशुपालकों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए कीमत अपने अनुसार तय करते हैं। पशुपालक पशुओं को आकस्मिक होने वाली परेशानियों को लेकर कर्जे में डूबता चला जा रहा है। दूध उत्पादन और विक्रय से पशुपालकों की लागत भी वसूल नहीं हो पा रही है और पुष्टाहार न मिलने का सीधा प्रभाव पशुओं की संख्या पर पड़ रहा है, उनकी संख्या तो कम हो ही रही है, साथ ही उनकी दुग्ध देने की क्षमता भी कम हो रही है।
नगर के कुछ प्रगतिशील पशुपालकों ने सरकार तक इस समस्या को पहुंचाने की कोशिश भी की है लेकिन लगता नहीं कि सरकार तक उनकी बात पहुंची है। पशुपालकों ने सरकार से ग्रामीणों और व्यापारी के बीच की इस दलाल(वेंडरों) वाली कड़ी को समाप्त कर जगह-जगह कोआपरेटिव सेंटर खोलने की मांग की है। पशुपालकों का कहना है सरकार यदि हमारे दूध का न्यूनतम मूल्य 50-55 रुपये लीटर तय कर दे तो स्थितियां तेजी से सुधर जाएंगी।