कमल यदुवंशी
गोवर्धन। शरद पूर्णिमा पर आसमान से बिखरी चांदनी में गिरिराज प्रभु तेजोमय नजर आए। गिरिराज का सफेद पोशाक व आभूषणों से श्रृंगार किया गया। शरद पूर्णिमा पर तिरछी चितवन से मुस्कराते प्रभु का विशेष श्रृंगार हुआ और प्रभु के समक्ष खीर का भोग अर्पित किया गया।
सुबह की बेला में वरिष्ठ सेवायत मथुरा दास कौशिक (लाला पंडित) ने प्रभु का पंचामृत से अभिषेक किया। शाम की बेला में सेवायत पवन कौशिक ने पुष्प और रजत आभूषणों से गिरिराज प्रभु का श्रृंगार किया। प्रभु के बालभोग में माखन मिश्री, मीठा दूध का भोग लगाया गया। सेवायत मथुरा दास कौशिक ने बताया की शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है, यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में गोपियों संग महारास किया था।
शरद की रात जब ठाकुरजी को चंद्रमा की रोशनी में विराजमान कराया जाता है, तो उन्हें खीर का भोग अर्पित करते हैं। ये खीर जब चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है, तो औषधि बन जाती है। चांद की चांदनी में औषधीय तत्वों का समावेश होता है। इससे नेत्र ज्योति बढ़ने के साथ शरीर के कई रोगों से मुक्ति मिलती है।